
PM Modi-Xi Jinping Tianjin Meeting: चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ऐतिहासिक द्विपक्षीय बैठक ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है। दोनों नेताओं की यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है और भारत-चीन संबंध दुनिया की सबसे चर्चित कूटनीतिक पहेली बने हुए हैं। बैठक के बाद विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक बयान में कहा गया कि दोनों देशों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन "विकास साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं"। यह संदेश न केवल सीमा विवाद के तनावपूर्ण इतिहास को नई दिशा देता है, बल्कि आने वाले वर्षों में व्यापार, रणनीतिक साझेदारी और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा तय कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने स्पष्ट कहा कि भारत-चीन के बीच मतभेदों को विवाद का रूप नहीं लेना चाहिए। दोनों नेताओं ने सीमावर्ती क्षेत्रों में "शांति और सौहार्द" की अहमियत दोहराई। पिछले कुछ वर्षों में गलवान घाटी (जून 2020) की घातक झड़प और सीमा विवादों ने रिश्तों को ठंडा कर दिया था। हालांकि, अक्टूबर 2024 में हुए समझौते के तहत डेमचोक और देपसांग जैसे अंतिम विवादित क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी के बाद रिश्तों में नरमी आई।
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बैठक में मोदी और शी जिनपिंग ने न केवल सीमा विवाद बल्कि वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। दोनों देशों ने स्वीकार किया कि विश्व व्यापार को स्थिर रखने में भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इस संदर्भ में व्यापार घाटा कम करने, निवेश बढ़ाने और नए आर्थिक अवसरों की खोज पर विशेष जोर दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि यह बैठक ऐसे समय पर हुई है जब भारत-अमेरिका संबंधों में शुल्क विवाद के चलते तनाव देखा जा रहा है। अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% टैरिफ लगाने और चीन-अमेरिका वार्ताओं में गतिरोध के बीच भारत-चीन साझेदारी पर दुनिया की नजरें टिकी हैं।
बैठक का मानवीय पहलू भी खास रहा। मोदी और शी ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को पुनः बहाल करने और पर्यटक वीज़ा सुविधा में सुधार की दिशा में काम करने पर सहमति जताई। इसके साथ ही सीधी उड़ानों को बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव रखा गया, जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ते और मजबूत हो सकें।
मोदी का बयान, "रिश्तों को किसी तीसरे देश की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए", एक स्पष्ट संदेश है कि भारत और चीन अब अपने हितों के अनुसार कूटनीतिक नीतियां बनाएंगे। यह संकेत इस बात का है कि भारत-चीन संबंधों का भविष्य केवल द्विपक्षीय दृष्टिकोण से तय होगा, न कि अमेरिका या अन्य शक्तियों के प्रभाव से।
प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति को अगले वर्ष भारत में होने वाले BRICS शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया। यह आमंत्रण दर्शाता है कि भारत-चीन रिश्तों में नए युग की शुरुआत हो सकती है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह मुलाकात सिर्फ औपचारिक कूटनीति है या वाकई एक भू-राजनीतिक क्रांति की नींव रख रही है?
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