इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देश में हिंसाक घटनाएं काफी बढ़ गई हैं, जिसके बाद देश में मार्शल लॉ लगने की चर्चाएं तेज हो गई हैं।
इस्लामाबाद: इमरान खान को इस्लामाबाद हाईकोर्ट से शुक्रवार को जमानत मिल गई है, जिसके बाद इमरजेंसी की अटकलें लग रही हैं। दरअसल, शहबाज शरीफ कैबिनेट के कई मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से देश में इमरजेंसी लगाने की सिफारिश की है। उनकी गिरफ्तारी के बाद पूरे पाकिस्तान में हुए प्रदर्शनों ने उनकी ताकत दिखाई। ऐसे में उन्हें जमानत मिलने के बाद स्थिति और भी बिगड़ने की आशंका है, जिसे रोकने के लिए पाकिस्तान इमरजेंसी की ओर बढ़ सकता है।
इसे देखते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कैबिनेट की मीटिंग करेंगे। इसमें वह इस बात का फैसला करेंगे कि पाकिस्तान में इमरजेंसी लगनी चाहिए या नहीं। PDM के नेताओं से मीटिंग के बाद अंतिम फैसला होगा। इमरान को जमानत मिलने से कुछ देर पहले शहबाज शरीफ ने कैबिनेट मीटिंग की थी। इस मीटिंग में वह इमरान खान पर बरसे थे। शहबाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान में 9 मई को जो हुआ है, वैसा बांग्लादेश बनने के बाद भी नहीं हुआ। पाकिस्तानी सेना पर इमरान के समर्थकों ने हमला किया, जो बेहद शर्मनाक है।
पाकिस्तान में लग सकता है मार्शल लॉ
इसके साथ ही इस बात की भी चर्चा तेज हो गई कि हिंसा की आग में जल रहे पाकिस्तान में जल्द ही मार्शल लॉ न लग जाए। गौरतलब है कि सशस्त्र बल पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली संस्था बनी हुई है, जहां तीन बार तख्तापलट हो चुका है और 75 साल के पाकिस्तान के इतिहास में आधा समय सेना का शासन रहा है।
पाकिस्तान में 1958 में पहली बार आया सैन्य शासन
पाकिस्तान में सैन्य शासन की शुरुआत भारत से अलग होने के 11 साल बाद हुई थी। उस समय राष्ट्रपति सिंकदर मिर्जा ने 1958 में मार्शल लॉ लगाया था। उस समय हो रही राजनीतिक उथल-पुथल और अशांति के जवाब में ये कदम उठाया गया था। पाकिस्तान में मार्शल लॉ दो साल तक चला और 1960 में इसे हटा लिया गया।
1969 में पाकिस्तान में फिर लगा मार्शल लॉ
दूसरी बार साल 1969 में पाकिस्तान में एक बार फिर मार्शल लॉ लागू हुआ। इस बार जनरल जिया उल हक ने इसे लागू किया और 5 जुलाई 1977 तक शासन किया। जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी के लोगों को गिरफ्तार कर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था।
1999 जनरल परवेज मुशरर्फ ने संभाली सत्ता
12 अक्टूबर 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार भंग कर सेना ने एक बार फिर से मोर्चा संभाला। इस बार जनरल परवेज मुशरर्फ ने सत्ता अपने हाथ में ले ली थी।