लेबनान सिर्फ कहने को लोकतांत्रिक देश, जानें क्यों बोलती है हिजबुल्लाह की तूती

लेबनान में हुए पेजर अटैक के बाद से दहशत का माहौल है। हिजबुल्लाह ने इसके लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराया है। बता दें कि लेबनान भले ही खुद को लोकतांत्रिक देश बताता है, लेकिन वहां असली ताकत हिजबुल्लाह के पास है। आखिर क्यों, जानते हैं। 

Ganesh Mishra | Published : Sep 19, 2024 9:29 AM IST

Pager Attacks on Lebanon and Hezbollah: लेबनान और हिजबुल्ला पिछले 2 दिनों से डर के साए में जी रहे हैं। दरअसल, 18 सितंबर को पेजर अटैक के बाद अब लेबनान में वॉकी-टॉकी, लैपटॉप और सोलर पावर से चलने वाले उपकरणों में धमाके हुए हैं। इन हमलों में अब तक 32 लोग जान गवां चुके हैं, जबकि 3500 से ज्यादा घायल हैं। लेबनान में रहने वाले ईरान समर्थित आतंकी संगठन हिजबुल्लाह ने इसके लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि हम इसका बदला जरूर लेंगे। बता दें कि लेबनान भले ही खुद को एक लोकतांत्रिक देश कहता है, लेकिन हकीकत में वहां प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति से कहीं ज्यादा पावर हिजबुल्लाह के पास है।

लेबनान में क्यों प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति के पास ज्यादा पावर नहीं?

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लेबनान में आतंकी संगठन हिजबुल्लाह आखिर क्यों प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति से ज्यादा पावरफुल है, इसका जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि वहां मेजर पॉलिटिकल और मिलिट्री पोस्ट कुछ खास मजहबी लोगों के लिए रिजर्व हैं। लेबनान में राष्ट्रपति की पोस्ट मैरोनाइट कैथोलिक के लिए, जबकि प्रधानमंत्री का पद सुन्नी मुसलमान और पार्लियामेंट प्रेसिडेंट का पद शिया मुस्लिम के लिए रिजर्व रखा गया है। इसके अलावा पार्लियामेंट के वाइस-प्रेसिडेंट और डिप्टी प्राइम मिनिस्टर की पोस्ट ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन के लिए आरक्षित है।

लेबनान की आर्म्ड फोर्सेस के चीफ की पोस्ट पर भी आरक्षण

लेबनान में आर्म्ड फोर्सेस के चीफ का पद ड्रूज के लिए रिजर्व रखा गया है। वहां, प्रमुख पोस्ट का बंटवारा संख्याबल के आधार पर किया जाता है। यानी जिसकी जितनी आबादी, उसे उतना रिजर्वेशन। इससे लेबनान में रहने वाले सभी समुदाय के लोगों को भले ही मानसिक खुशी मिले, लेकिन हकीकत में इन चीजों का गलत असर पड़ता है।

लेबनान में कितनी है मुस्लिम आबादी?

लेबनान में मुस्लिमों की आबादी करीब 67 प्रतिशत है, जिसमें 32 प्रतिशत सुन्नी, 31 प्रतिशत शिया और अलावा के अलावा कुछ हिस्सा इस्माइली लोगों का है। ईरान वहां शिया बहुल इस्लामी संगठन हिजबुल्लाह को सपोर्ट करता है। मुस्लिम बहुल आबादी होने की वजह से हिजबुल्लाह जैसा संगठन वहां हर पॉलिटिकल और सैन्य मामलों में दखल रखता है। लेबनान में चुनाव सिर्फ नाम के लिए होते हैं, लेकिन हकीकत में असली पावर चुने गए मेंबर्स के पास नहीं, बल्कि हिजबुल्लाह और उसके लड़ाकों के पास होती है।

लेबनान में हिजबुल्लाह सरकार और ज्यूडिशरी से भी ज्यादा ताकतवर

लेबनान में हिजबुल्लाह की तूती बोलती है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां सरकार, एडमिनिस्ट्रेशन और ज्यूडिशरी से भी ज्यादा पावर ईरान समर्थित शिया संगठन हिजबुल्लाह के पास है। हिजबुल्लाह के सर्वोच्च नेता नसरल्लाह की बात को काटने की ताकत किसी के पास नहीं है। भले ही नसरल्लाह किसी संवैधानिक पद पर नहीं है, लेकिन उसके फैसलों को राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री भी नहीं बदल सकते। हिजबुल्लाह प्रमुख ही ये तय करता है कि देश कैसे चलेगा?

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