अज्ञातवास में रहने वाली माशको पिरो जनजाति का दुलर्भ Video आया सामने...

लकड़ियों और विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने दुनिया के तमाम जनजातियों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। पेरु के अमेज़न में अज्ञात जगह पर दुनिया से अलग-थलग रहने वाली Mashco Piro जनजाति भी जंगलों से बाहर निकल रहे हैं। 

Dheerendra Gopal | Published : Jul 18, 2024 4:29 PM IST / Updated: Jul 19 2024, 03:23 AM IST

Mashco Piro rare photos: पेरु के अमेज़न में अज्ञातवास में रहने वाली जनजाति माशको पिरो समुदाय की दुलर्भ फोटोज सामने आई है। यह जनजाति हमेशा से ही संपर्क से दूर रहती है। सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक एक संस्था ने माशको पिरो जनजाति की दुलर्भ तस्वीरें जारी की है। फोटोज में माशको पिरो जनजाति के सदस्यों को नदी के किनारे आराम करते हुए दिखाया गया है। संस्था ने माशको पिरो समुदाय के अस्तित्व को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच इस तस्वीर को जारी किया है।

स्थानीय स्वदेशी अधिकार समूह FENAMAD के अनुसार, क्षेत्र में बढ़ती लकड़ी की गतिविधियों की वजह से संभवतः माशको पिरो जनजाति को उनकी पारंपरिक भूमि से बाहर आने को मजबूर कर दिया है। माशको पिरो भोजन और सुरक्षित शरण की तलाश में बस्तियों के करीब जा रहे हैं।

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सर्वाइवल इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि माशको पिरो जनजाति के लोगों की फोटोज जून के अंत में ब्राज़ील की सीमा से लगे दक्षिण-पूर्वी पेरू प्रांत माद्रे डी डिओस में एक नदी के किनारे ली गई थीं। सर्वाइवल इंटरनेशनल की निदेशक कैरोलीन पीयर्स ने कहा कि ये अविश्वसनीय तस्वीरें दिखाती हैं कि बड़ी संख्या में अलग-थलग पड़े माशको पिरो लोग, जहां लकड़हारे अपना काम शुरू करने वाले हैं, वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर अकेले रहते हैं।

माशको पिरो लोग कई जगह दिखाई दिए

रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल के दिनों में 50 से ज़्यादा माशको पिरो लोग, यिन लोगों के गांव मोंटे साल्वाडो के पास दिखाई दिए। इसके अलावा 17 लोगों का एक और ग्रुप पास के गांव प्यूर्टो नुएवो में दिखाई दिया। पेरू सरकार ने 28 जून को बताया कि स्थानीय निवासियों ने लास पिएड्रास नदी पर माश्को पिरो को देखने की सूचना दी है जो माद्रे डी डिओस की राजधानी प्यूर्टो माल्डोनाडो शहर से 150 किलोमीटर (93 मील) दूर है। ब्राजील में सीमा पार ब्राजील में भी माश्को पिरो को देखा गया है। ब्राजील के कैथोलिक बिशप की स्वदेशी मिशनरी परिषद में रोजा पैडिल्हा ने बताया कि माशको पिरो पेरू की तरफ़ से लकड़हारों से भागते हैं। साल के इस समय में वे समुद्र तटों पर ट्रैकाजा (अमेज़ॅन कछुए) के अंडे लेने के लिए दिखाई देते हैं। तभी हमें रेत पर उनके पैरों के निशान मिलते हैं। वे अपने पीछे बहुत सारे कछुए के खोल छोड़ जाते हैं।

कौन हैं माशको पिरो जनजाति?

Mashco Piro (माशको पिरो) एक अदिवासी जनजाति है जो पेरू के अमेज़न रेनफॉरेस्ट में रहती है। यह माद्रे डी डिओस में दो प्राकृतिक रिजर्व के बीच स्थित एक क्षेत्र में रहते हैं। ये जनजाति 'अनकांटैक्टेड' यानी बाहरी दुनिया से संपर्क से दूर रहती है। ये लोग किसी भी बाहरी से कोई संवाद नहीं करते हैं। माशको पिरो वे मुख्य रूप से मात्सेगेंका भाषा बोलते हैं।

लकड़ी निकालने पहुंचे बाहरी लोगों के डर से इधर-उधर भाग रहे

सर्वाइवल इंटरनेशनल के अनुसार, कैनालेस ताहुआमानू नामक एक कंपनी ने लकड़ी निकालने के लिए अपने लॉगिंग ट्रकों के लिए 200 किलोमीटर (120 मील) से अधिक सड़कें बनाई हैं। कंपनी को फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल द्वारा प्रमाणित किया गया है जिसके अनुसार उसके पास देवदार और महोगनी निकालने के लिए माद्रे डी डिओस में 53,000 हेक्टेयर (130,000 एकड़) जंगल हैं। इस कंपनी की बढ़ी गतिविधियों से डरे माशको पिरो लोग भाग रहे हैं।

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