
Pakistan Afghanistan Border Conflict: पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर हाल ही में बढ़ती झड़पों ने पूरे क्षेत्र की राजनीति को हिला दिया है। पाकिस्तान के काबुल, खोस्त, जलालाबाद और पक्तिका क्षेत्रों में हमले, और इसके जवाब में अफगानिस्तान के सीमा चौकियों पर किए गए ताबड़तोड़ हमलों ने स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया है। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, इन झड़पों में कम से कम 12 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और कई घायल हुए हैं। साथ ही, पाकिस्तानी सेना के एक टैंक को भी अफगानिस्तान ने कब्जे में ले लिया।
सितंबर 2025 में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए रणनीतिक रक्षा समझौते को लेकर यही शंका पैदा हो रही है। इस समझौते के तहत किसी देश पर हमला होने को दूसरे पर हमला माना जाएगा। लेकिन क्या यह वाकई में युद्ध की स्थितियों में लागू होगा?
सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान की सुरक्षा चिंता महत्वपूर्ण है, लेकिन सऊदी की रणनीति सीधे युद्ध में शामिल होने की नहीं है। इसका कारण है कि सऊदी का ध्यान आर्थिक विकास और क्षेत्रीय स्थिरता पर केंद्रित है।
सऊदी अरब इन दिनों अपने विजन 2030 प्रोजेक्ट पर फोकस कर रहा है। इसका मतलब है तेल से बाहर अन्य सेक्टरों में निवेश बढ़ाना, पर्यटन और विदेशी निवेश को आकर्षित करना। सीधे युद्ध में शामिल होने से यह आर्थिक लक्ष्य प्रभावित हो सकता है।
सऊदी अरब ने पहले यमन में लंबा और महंगा सैन्य हस्तक्षेप किया था, लेकिन परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। इस अनुभव ने नेतृत्व को सिखाया कि सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचना ही बेहतर रणनीति है।
हाल ही में सऊदी ने ईरान के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की है। चीन की मध्यस्थता में 2023 का समझौता इस बात का सबूत है। अगर सऊदी इस नए संघर्ष में शामिल होगा, तो नाज़ुक संतुलन बिगड़ सकता है।
NATO के आर्टिकल 5 के अनुसार अगर किसी सदस्य देश पर हमला होता है तो सभी देशों पर हमला माना जाता है। लेकिन सऊदी-पाक समझौता में ऐसा स्पष्ट नहीं है। इसे ज्यादातर विशेषज्ञ राजनीतिक एकजुटता और रणनीतिक सहयोग का संकेत मानते हैं, न कि बिना शर्त युद्ध में एंट्री की गारंटी। इसका मतलब यह है कि सऊदी अरब अगर पाकिस्तान की मदद करेगा तो वो शायद सीमित सैन्य सहायता, खुफिया सहयोग या आर्थिक प्रोत्साहन के जरिए करेगा, सीधे लड़ाई में नहीं।
लेकिन यह सीधे युद्ध की एंट्री नहीं होगी, बल्कि पाकिस्तान को दबाव और संकट से बाहर निकालने का मध्यम स्तर का समर्थन होगा।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच यह झड़प मुख्यतः:
इसकी वजह से हुई है। फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि सऊदी या कोई अन्य देश सीधे इसमें कूदेगा।
सऊदी-पाक समझौता अभी लिटमस टेस्ट के दौर में है। सीधे युद्ध में सऊदी एंट्री की संभावना कम है। लेकिन सीमित आर्थिक, राजनयिक और सैन्य सहायता के जरिए पाकिस्तान को मदद मिल सकती है। इसलिए इस संघर्ष का असली परिणाम तभी दिखेगा जब दोनों पक्ष बातचीत या अंतरराष्ट्रीय दबाव के तहत शांति स्थापित करने का रास्ता अपनाएंगे।
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