रूस-यूक्रेन विवाद: युद्ध टालने की दिशा में आखिरी पहल; शिखर सम्मेलन के लिए तैयार हुए पुतिन-बिडेन

रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine conflict) विवाद को लेकर एक उम्मीद की किरण जागी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन (Emmanuel Macron) ने सभी पक्षों के साथ यूक्रेन शिखर सम्मेलन(Ukraine summit) का प्रस्ताव रखा था, जिसे अमेरिका और रूस से स्वीकार कर लिया है।
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 21, 2022 3:04 AM IST

वर्ल्ड न्यूज डेस्क. रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine conflict) विवाद को लेकर एक उम्मीद की किरण जागी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन (Emmanuel Macron) ने सभी पक्षों के साथ यूक्रेन शिखर सम्मेलन(Ukraine summit) का प्रस्ताव रखा था, जिसे अमेरिका और रूस से स्वीकार कर लिया है। इससे पहले रविवार को मैक्रॉन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन(Vladimir Putin)  के बीच फोन पर बातचीत हुई। इसमें किसी ने भी यह स्वीकार नहीं किया कि इस हालात के लिए कौन जिम्मेदार है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी(Jen Psaki, Press Secretary, The White House) के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन(US President Joe Biden) पुतिन के साथ 'सैद्धांतिक रूप से' मिलने के लिए सहमत हैं, यदि कोई आक्रमण नहीं हुआ है। इस बीच खबर है कि रूस बेलारूस में अपना सैन्य अभ्यास जारी रखेगा। यह रविवार को समाप्त होने वाला था।

यह है विवाद की वजह
रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। दोनों सेनाओं के बीच 20-45 किमी की दूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन पहले ही रूस को चेता चुके हैं कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

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नाटो क्या है
नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य   उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस, बेल्जियम,लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली,नार्वे, पुर्तगाल, अमेरिका, पूर्व यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल हैं।

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