पाकिस्तान इस समय एक बड़े राजनीतिक ड्रामे के दौर से गुजर रहा। अगर बात सिर्फ पाकिस्तान में खेलों की स्थिति पर करें, तो यहां खेलों के साथ 'खेला' हो गया है। यानी खिलाड़ियों के पास न तो प्रैक्टिस के लिए क्लब हैं और न दूसरी अन्य सुविधाएं।
इस्लामाबाद. पाकिस्तान में राजनीतिक ड्रामे (political drama) ने उसकी हालात 'गरीबी में आटा गीला' जैसी कर दी है। अगर बात सिर्फ पाकिस्तान में खेलों की स्थिति पर करें, तो यहां खेलों के साथ 'खेला' हो गया है। यानी खिलाड़ियों के पास न तो प्रैक्टिस के लिए क्लब हैं और न दूसरी अन्य सुविधाएं। ये मामला जिम्नास्टिक खिलाड़ियों की दुर्गति से जुड़ा है। पाकिस्तान में जिम्नास्टिक खिलाड़ियों की पीड़ा को लेकर dawn ने एक स्टोरी पब्लिश की है। इसमें कराची बेस्ड फ्रीलांस जर्नलिस्ट जफर अहमद खान(Zafar Ahmed Khan) ने जिम्नास्टिक क्लबों की दुर्दशा बयां की है।
न बिजली, न पानी, क्लबों की दुर्दशा की कहानी
जफर लिखते हैं कि कराची में शाम होते ही कुछ फुर्तीले युवकों को ल्यारी में प्रसिद्ध चील चौक(Cheel Chowk in Lyari) के पास गैबोल पार्क की ओर जाते देखा जा सकता है। वहां स्ट्रीट लाइट की नारंगी चमक में आप उन्हें कॉटन के गद्दे पर जिम्नास्टिक की प्रैक्टिस करते देख सकते हैं। ये खिलाड़ी मुजाहिद मेमोरियल जिम्नास्टिक क्लब(Mujahid Memorial Gymnastics Club) से जुड़े हैं। यह क्लब 1988 में लियाकत शान ने स्थापित किया था। वे ल्यारी के एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय जिमनास्ट हैं। लेकिन इन दिनों क्लब की हालत बेहद खराब है। इसमें न बिजली है, न पानी है और न ही चारदीवारी है। लगभग 500 वर्ग गज में फैले इस क्लब में प्रैक्टिस के लिए जमीन भी समतल नहीं है। यानी ऊबड़-खाबड़। सीमेंट का फर्श क्षतिग्रस्त और धूल भरा है। जिससे चारों ओर कचरा उड़ता रहता है। जिम्नास्टिक के जो भी उपकरण थे, उन्हें इलाके में नशा करने वालों ने चुरा लिया और बेच दिया।
क्लब को कोई मदद नहीं
जफर आगे लिखते हैं कि इस क्लब को प्रांतीय खेल विभाग या पाकिस्तान स्पोर्ट्स बोर्ड (PSB) से कोई फंडिंग नहीं मिलती है। उपकरण, सुविधाओं और धन के अभाव के बावजूद क्लब में जिमनास्ट करने वालों की कोई कमी नहीं है। ल्यारी के 42 वर्षीय वरिष्ठ जिमनास्ट शब्बीर हुसैन कहते हैं-''हम यहां ल्यारी के गरीब बच्चों को प्रशिक्षण देने आए हैं। हम उनसे कोई शुल्क नहीं लेते हैं।"
बता दें कि 1997 में जब शब्बीर महज 17 वर्ष के थे, तब वे सिंध के शीर्ष जिमनास्ट थे। उन्होंने भी इसी क्लब में जिम्नास्टिक सीखना शुरू किया था। उसे 1988 में स्थापित किया गया था। यानी पाकिस्तान में जिम्नास्टिक के सैकड़ों उत्साही लोगों का भविष्य इन्फ्रास्ट्रक्चर के अभाव और खेल प्रशासकों के बीच अंदरूनी कलह के कारण अंधकारमय बना हुआ है।
ल्यारी के बारे में
ल्यारी को खेल प्रेमियों का अखाड़ा कहा जाता है। यहां फुटबॉलर, बॉक्सर और जिमनास्ट हैं। यहां की अधिकांश आबादी आर्थिक रूप से कमजोर है। शब्बीर की आय का भी कोई जरिया नहीं है। वे एक निजी स्कूल में खेल शिक्षक हैं। उन्हें 18,000 रुपये सैलरी मिलती है। वे इसे अपर्याप्त मानते हैं। एक समय था जब ल्यारी में 12 जिमनास्टिक क्लब थे, लेकिन उनमें से केवल चार इस समय काम कर रहे हैं।
39 वर्षीय जिमनास्ट मोहम्मद ताहिर बताते हैं कि सभी क्लब बहुत खराब स्थिति में हैं। वे ग्रीन फ्लैग जिम्नास्टिक क्लब चला रहे हैं। उनके यहां जो भी उपकरण हैं, वे खराब हैं। गद्दे फटे हुए हैं और बिजली बहुत पहले काट दी गई थी। ताहिर के पास नियमित नौकरी नहीं है। वे डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी में बच्चों के पर्सनल ट्रेनर हैं, जिसके लिए मैं प्रति क्लाइंट 3,000 या 4,000 रुपये चार्ज करते हैं। वे इस तरह हर महीने करीब 40,000 रुपये कमा रहे हैं। फिर भी गुजारा पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
45 वर्षीय मोहम्मद रफीक एक अन्य अनुभवी जिमनास्ट हैं, जो पाकिस्तान जिमनास्टिक क्लब के प्रमुख हैं। वे कहते हैं-"मैं 1991 से 1996 तक अनुबंध के आधार पर पाकिस्तान रेलवे का प्रतिनिधित्व करता था। मुझे किसी भी सरकारी या निजी संगठन में कोई स्थायी नौकरी नहीं दी गई।"