सीरिया में सत्ता पलट: भारत पर क्या होगा असर, जानें विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

सीरिया में असद शासन के अंत का भारत पर गहरा असर होगा। मध्य पूर्व में भारत की स्थिति और आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं। नए समीकरणों से क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ सकती है।

सीरिया संकट: सीरिया में विद्रोहियों द्वारा बसर अल असद को सत्ता से हटाए जाने के साथ ही गृहयुद्ध खत्म हो गया है। सत्ता में हुए इस बदलाव का असर मध्यपूर्व में भारत की स्थिति पर भी होगा।

सीरिया में आए बदलाव को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दमिश्क स्थित भारतीय दूतावास भारतीय समुदाय के संपर्क में है। भारत ने उसने सीरिया की एकता और संप्रभुता का सम्मान करने का आग्रह करते हुए शांतिपूर्ण, समावेशी सत्ता हस्तांतरण का आह्वान किया है।

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विदेश मंत्रालय ने सोमवार को बयान जारी कर कहा, "हम सीरिया की स्थिति पर नजर रख रहे हैं। हम इस बात पर जोर देते हैं कि सभी पक्षों को सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए। हम सीरियाई समाज के सभी वर्गों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण और समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करते हैं।"

सीरिया में असद शासन के पतन का भारत के लिए क्या है मतलब है?

भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं। यह संबंध पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुआ है। असद के कार्यकाल के दौरान दोनों देश करीब आए थे। अब सीरिया में बदले राजनीतिक समीकरण मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत ने असद शासन और विपक्षी विद्रोहियों दोनों द्वारा की गई हिंसा की निंदा की है। नई दिल्ली ने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दमिश्क का समर्थन किया है। इसमें फिलिस्तीनी मुद्दा और गोलान हाइट्स पर सीरिया का दावा शामिल है। सीरिया ने कश्मीर विवाद पर भारत की स्थिति का समर्थन किया है। कहा है कि यह भारत का आंतरिक मुद्दा है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सीरिया के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करने से इनकार किया था। कोविड महामारी के दौरान भारत ने मानवीय चिंताओं का हवाला देते हुए प्रतिबंधों में ढील देने की मांग की थी। भारत ने सीरिया में विदेशी ताकतों द्वारा हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत की भी वकालत की है।

2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध के चरम पर जब कई देशों ने सीरिया को अलग-थलग कर दिया था भारत ने अपने संबंध जारी रखे। भारत ने दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा। भारत ने सीरिया के विकास में मदद की है। बिजली संयंत्र के लिए 240 मिलियन अमरीकी डालर का कर्ज दिया है। इसके साथ ही आईटी बुनियादी ढांचे में निवेश किया है। यहां के इस्पात संयंत्र के आधुनिकीकरण में सहायता की है। भारत ने सीरिया को चावल, फार्मास्यूटिकल्स और कपड़ों का निर्यात किया है।

असद सरकार के पतन से भारत पर क्या असर पड़ेगा?

असद सरकार के पतन से सीरिया में अनिश्चितता का दौर शुरू हो सकता है। यह मध्य पूर्व में भारत के राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए चिंता का विषय है। एक प्रमुख खतरा हयात तहरीर अल-शाम (HTS) को लेकर है। यह कट्टरपंथी इस्लामी समूह है। इसके संबंध आतंकवादी संगठन अल-कायदा से रहे हैं। अगर सीरिया में अनिश्चितता रही तो ISIS को फिर से ताकत जुटाने का मौका मिल जाएगा। इससे क्षेत्र में अस्थिरता आ सकती है।

सीरिया के तेल क्षेत्र में भारत के दो महत्वपूर्ण निवेश हैं। तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के लिए ओएनजीसी और आईपीआर इंटरनेशनल के बीच 2004 में समझौता हुआ था। सीरिया में काम कर रही एक कनाडाई कंपनी में 37 प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए ओएनजीसी और चीन की सीएनपीसी ने संयुक्त निवेश किया है।

भारत ने तिशरीन थर्मल पावर प्लांट परियोजना के लिए 240 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्ज दिया है। इसके साथ ही आईटी और उर्वरक क्षेत्र में निवेश किया है। भारत की योजना भारत-खाड़ी-स्वेज नहर-भूमध्यसागरीय/लेवेंट-यूरोप कॉरिडोर के निर्माण में भारी निवेश की है। इसमें सीरिया भी शामिल है।

तुर्की ने विद्रोहियों का समर्थन किया है। सीरिया में सत्ता परिवर्तन के साथ ही क्षेत्र में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन का असर बढ़ा है। हाल ही में पहली बार एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे का उल्लेख नहीं किया। यह भारत के प्रति उनके रुख में बदलाव का संकेत है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में भारत और तुर्की के संबंध बेहतर होंगे। इस समय सीरिया का राजनीतिक परिदृश्य अस्पष्ट है। विद्रोही ताकतों का गठबंधन है। इनके बीच आंतरिक मतभेद हैं। भारत स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है।

यह भी पढ़ें- विद्रोहियों ने सत्ता छीनी तो रूस क्यों भागे बशर अल-असद, उनके पास क्या थे विकल्प?

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