
काबुल। तालिबान का अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण हो चुका है। इसी के साथ भारत की चिंताएं भी बढ़ चुकी हैं। सोमवार को तालिबान के प्रेस कांफ्रेंस ने भारत की चिंताओं को और बढ़ा दिया, साथ ही चीन व पाकिस्तान को खुशी का मौका दे दिया। तालिबान ने चीन के प्रस्ताव को मान लिया है जिसमें चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में अफगानिस्तान को भी शामिल करने का ऑफर था। यह करीब 60 अरब डॉलर की परियोजना है।
सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस में तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में अफगानिस्तान के भी शामिल होने का ऐलान किया। तालिबान ने इस परियोजना के लिए सभी प्रकार के सहयोग का वादा भी किया।
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तालिबान ने की एशिया के विकास की बात
तालिबानी प्रवक्ता ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में अफगानिस्तान के शामिल होने और हर प्रकार के सहयोग का वादा करते हुए कहा कि एशिया के विकास के लिए यह परियोजना महत्वपूर्ण है। जबीहुल्ला मुजाहिद ने घोषणा की कि अफगानिस्तान परियोजना के अपने हिस्से को लागू करने के लिए दृढ़ है।
चीन को बताया सबसे महत्वपूर्ण साझेदार
तालिबान के प्रवक्ता ने चीन को अपना सबसे महत्वपूर्ण साझेदार बताते हुए कहा कि तालिबान अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और उसके समृद्ध तांबे के भंडार का दोहन करने के लिए बीजिंग के साथ काम करने के लिए तत्पर है।
दरअसल, तालिबान के समर्थन के बाद चीन की वन बेल्ट, वन रोड इनिशिएटिव को बल मिला है जिसके तहत शिपिंग बंदरगाहों, औद्योगिक पार्कों, सड़कों और रेलवे लाइनों के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से चीन को अफ्रीका, एशिया और यूरोप से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
CPEC, बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की एक द्विपक्षीय परियोजना है। इसमें एक बड़ा नेटवर्क है जिसमें सड़कों, रेलवे लाइनों और 3,000 किमी में फैली पाइपलाइन शामिल हैं जो चीन, पाकिस्तान और क्षेत्र के अन्य देशों के बीच व्यापार को सुगम बनाएगी।
यह भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं
तालिबान की चीन के साथ मिलकर दो घोषणाएं भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है। भारत अफगानिस्तान को अपनी अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांजिट कॉरिडोर परियोजना में शामिल करने की कोशिश कर रहा था, जिसका उद्देश्य मुंबई बंदरगाह को ईरान में चाबहार और आगे कैस्पियन सागर से जोड़ना है।
यह बता दें कि भारत अफगानिस्तान पर वेट एंड वॉच की नीति अपनाता रहा है। जबकि चीन युद्धग्रस्त देश में नए शक्ति केंद्र के साथ आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए तालिबान के साथ पहले से खड़ा नजर आ रहा है।
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