पाकिस्तान से लड़ने के लिए बढ़े 15 हजार तालिबान लड़ाके, जानें क्यों किया पलटवार?

पाकिस्तान ने वर्षों तक तालिबान को पाला-पोसा, अब वही तालिबान उसके लिए खतरा बन गया है। पाकिस्तान के हवाई हमलों के बाद 15 हजार तालिबान लड़ाके सीमा पर जमा हो रहे हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है।

वर्ल्ड डेस्क। पाकिस्तान ने दशकों तक तालिबान को अपने रणनीतिक कारणों के चलते पाला। तालिबान को हथियार, पैसे से लेकर हर तरह की मदद दी। अब तालिबान उसी हाथ को काट रहा है जिसने उसे खिलाया था। अफगान तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की ओट में पाकिस्तान की परेशानियां बढ़ा रहा है। पाकिस्तान द्वारा किए गए हवाई हमले के बाद 15 हजार तालिबान लड़ाके पाकिस्तान से लड़ने के लिए सीमा की ओर बढ़ रहे हैं।

2011 में हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तान के बारे में कहा था, "आप अपने घर के पिछवाड़े में सांप पाल कर यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे केवल आपके पड़ोसियों को ही काटेंगे। अंत में वे सांप आपको भी काटेंगे।" पाकिस्तान के मामले में यह बात 100 फीसदी सच साबित हुई है। पाकिस्तान की वायु सेना द्वारा अफगानिस्तान में हवाई हमले किए गए हैं। इसके चलते 46 लोगों की मौत हुई है। अफगानिस्तान के तालिबान शासन की ओर से इसपर कड़ी प्रतिक्रिया आई है। जवाबी कार्रवाई की कसम खाई गई है।

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2021 में तालिबान ने जब अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे इमरान खान बहुत खुश हुए थे। अब यही तालिबान पाकिस्तान के खिलाफ हो गया है। आइए जानते हैं पाकिस्तान द्वारा वर्षों तक पाले पोसे जाने के बाद तालिबान अब क्यों उसका ही खात्मा करने के लिए तैयार है। पाकिस्तान को अब तालिबान की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। एक तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है। यह अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से लगे इलाकों से पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करता है। दूसरा तालिबान है जो अफगानिस्तान में सत्ता में है।

पाकिस्तान ने किया हवाई हमला, तालिबान ने दी जवाबी कार्रवाई की धमकी

पाकिस्तान की वायुसेना ने पूर्वी अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में कई जगहों पर टीटीपी के ठिकानों पर बमबारी की है। तालिबान अधिकारियों के अनुसार इन हवाई हमलों में 46 लोग मारे गए। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। वहीं, एक पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा है कि आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया।

काबुल में तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने हमले का बदला लेने की कसम खाई है। काबुल में अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी दूत को तलब किया और हमलों पर कड़ा विरोध दर्ज कराया। पाकिस्तान पर हमला करने के लिए करीब 15,000 तालिबान लड़ाके काबुल, कंधार और हेरात से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से सटे मीर अली सीमा की ओर बढ़ रहे हैं। इससे आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ने का खतरा है।

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान में बढ़े आतंकवादी हमले

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ गईं हैं। पाकिस्तान में आतंकी हमलों में तेजी आई है। अफगानिस्तान की नई सरकार ने टीटीपी को बढ़ावा दिया है। टीटीपी का लक्ष्य पाकिस्तान में एक इस्लामी अमीरात स्थापित करना है। ठीक वैसे ही जैसे काबुल में तालिबान की सरकार है।

इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज की रिपोर्ट के अनुसार 2022 की तुलना में 2023 में पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में होने वाली मौतों में 56% की वृद्धि हुई। 500 सुरक्षाकर्मियों सहित 1,500 से अधिक लोग मारे गए।

पाकिस्तान ने सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए अफगान तालिबान पर आरोप लगाया। इसके बाद से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंध और तनावपूर्ण हो गए हैं। इस्लामाबाद ने व्यापार प्रतिबंध लगाए हैं। करीब 5 लाख अवैध अफगान प्रवासियों को देश से निकाल दिया है। सख्त वीजा नीति लागू की है। इसके साथ ही टीटीपी पर सैन्य कार्रवाई की जा रही है। इन बातों से तालिबान बौखला गया है।

कुछ दिनों पहले टीटीपी ने पाकिस्तान से लगी सीमा पर स्थित एक चौकी पर हमला किया था। इसके चलते 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। इसके जवाब में पाकिस्तान ने हवाई हमले किए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंधों में खटास क्षेत्र में आतंकवादी समूहों को समर्थन देने की पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही नीति का नतीजा है।

पाकिस्तान ने तालिबान को पनपने में मदद की

तालिबान 1990 के दशक के मध्य में अस्तित्व में आया था। उस समय अफगानिस्तान में सोवियत संघ के समर्थन वाली सरकार थी। इस सरकार को हटाने और रूस को अफगानिस्तान की धरती से बाहर करने के लिए अमेरिका ने तालिबान को खड़ा किया। इस काम में पाकिस्तान ने बड़ी मदद की। कुख्यात पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने दशकों तक तालिबान के गठन और उसे बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। तब पाकिस्तान उन तीन देशों में से एक था जिसने तालिबान के इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान को वैध सरकार के रूप में मान्यता दी थी। कई विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान ने तालिबान को सैन्य सलाहकार, विशेषज्ञ और यहां तक ​​कि सैनिक भी मुहैया कराए हैं।

अल-कायदा द्वारा अमेरिका पर 9/11 का आतंकी हमला करने के बाद स्थिति बदली। अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान की सरकार खत्म की। इसके बाद भी पाकिस्तान तालिबान की मदद करता रहा। अंतरराष्ट्रीय दबाव और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के बावजूद पाकिस्तान तालिबान की सहायता करता रहा।

पाकिस्तान ने दशकों तक कट्टरपंथी आतंकवादियों को अपनी उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर पनपने दिया। इनमें से कई ने बाद में तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों से हाथ मिला लिया।

पाकिस्तान ने भारत में आतंक फैलाने के लिए तालिबान का किया इस्तेमाल

पाकिस्तान ने भारत में आतंक फैलाने के लिए तालिबान के लड़ाकों का इस्तेमाल किया। तालिबान के लड़ाकों ने पाकिस्तान के रास्ते कश्मीर में घुसपैठ की। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे आतंकी संगठनों ने तालिबान के लड़ाकों को भर्ती किया और उन्हें कश्मीर भेजा।

पाकिस्तान की यह चाल उल्टी साबित हुई है। पाकिस्तान तालिबान या तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे संगठन का उदय अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद हुआ। अब पाकिस्तान को उन्हीं आतंकियों से लड़ना पड़ रहा है जिनकी वह मदद करता रहा है। कूटनीतिक प्रयासों के बाद भी पाकिस्तान को लगता है कि अफगान तालिबान ने सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) काबुल में मौजूद आतंकी समूह से अलग है, लेकिन अफगान तालिबान से उसे मौन सहमति मिली हुई है। पाकिस्तान का दावा है कि काबुल तालिबान अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। इससे स्थिति जटिल हो रही है।

यह भी पढ़ें- अफगानिस्तान में घुसकर पाकिस्तान ने बिछा दीं 46 लाशें, तालिबान का खतरनाक चैलेंज

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