रूस ने कहा- प्रतिबंधों से रक्षा संबंध नहीं होंगे प्रभावित, भारत निभा रहा वैश्विक शक्ति की भूमिका

रूस की ओर से कहा गया है कि प्रतिबंधों का असर भारत के साथ रक्षा संबंध पर नहीं होगा। रूस ने कहा है कि पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से डर और अविश्वास बढ़ेगा।

Asianet News Hindi | Published : Feb 23, 2022 11:55 PM IST

मास्को। रूस द्वारा यूक्रेन (Russia Ukraine Conflict) के लुहान्स्क और डोनेट्स्क को नया देश घोषित करने और यूक्रेन में सेना भेजने के चलते अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा समेत कई देशों ने रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए हैं। भारत रूस से बड़ी मात्रा में हथियार खरीदता है। रूस से एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 की आपूर्ति अभी शुरू ही हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ लगाए जा रहे प्रतिबंधों से भारत और रूस के बीच हुए रक्षा सौदे कितने प्रभावित होंगे। 

इस संबंध में रूस की ओर से कहा गया है कि प्रतिबंधों का असर भारत के साथ रक्षा संबंध पर नहीं होगा। रूस ने कहा है कि पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से डर और अविश्वास बढ़ेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली भी प्रभावित होगी। मॉस्को भारत के साथ रक्षा के क्षेत्र में अपनी "बड़ी योजनाओं" के कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। रूस भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा करने में "ईमानदार" है।

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यह दावा करते हुए कि यूक्रेन के अलग-अलग क्षेत्रों को मान्यता देने की मास्को की कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप है, रूस के रक्षा मामलों के प्रभारी रोमन बाबुश्किन ने कहा कि भारत सुरक्षा परिषद में "एक वैश्विक शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका" निभा रहा है। इसकी गतिविधियां भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के संबंध में पूरी तरह से "योग्यता" को दर्शाती हैं। मास्को अभी भी इस मुद्दे को हल करने के लिए बातचीत का पक्षधर है। 

एस-400 वायु मिसाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति सहित भारत के साथ रूस की रक्षा साझेदारी को प्रभावित करने वाले प्रतिबंधों की किसी भी संभावना से संबंधित प्रश्नों के जवाब में बाबुश्किन ने भारत की "स्वतंत्र" नीति की सराहना करते हुए कहा कि रूस और भारत एक-दूसरे के सुरक्षा हितों और चिंताओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं। हमारे पास रक्षा के क्षेत्र में बड़ी योजनाएं हैं और हम इन सभी को लागू करने की उम्मीद करते हैं। 

भारत की स्वतंत्र स्थिति का स्वागत करते हैं
बाबुश्किन ने कहा कि हम भारत की स्वतंत्र और संतुलित स्थिति का स्वागत करते हैं, जिसे यूएनएससी में घोषित किया गया था। यह जिम्मेदार वैश्विक शक्ति की भारतीय स्थिति को दर्शाता है। हमारी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी आपसी समझ और विश्वास के साथ-साथ आपसी हितों और चिंताओं का सम्मान के अद्वितीय स्तर पर आधारित है। 

उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के ताजा प्रतिबंध उबाऊ हैं। हम संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय कानून की केंद्रीय भूमिका के साथ न्यायसंगत और समान बहुध्रुवीयता की स्थापना के लिए दृढ़ता से खड़े हैं। सभी बहुपक्षीय मंचों पर इस संबंध में घनिष्ठ समन्वय कर रहे हैं। रूस का भारत के साथ संबंध वैश्विक शांति और स्थिरता का एक मजबूत कारक बन गया है।

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भारत ने नहीं की है रूस की निंदा
भारत ने अब तक रूस के कार्यों की निंदा नहीं की है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को पेरिस में एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर जो कुछ हो रहा है, वह सोवियत राजनीति और रूस-पश्चिम की गतिशीलता के साथ-साथ नाटो विस्तार के चलते प्राप्त हुआ है। फ्रांस द्वारा आयोजित यूरोपीय संघ के इंडो-पैसिफिक मंत्रिस्तरीय बैठक में जयशंकर ने चीन द्वारा "वैश्विक कॉमन्स" की चुनौती पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की। इस बैठक में यहां तक ​​कि जापानी विदेश मंत्री योशिमासा हयाशी जैसे अन्य लोगों ने रूस को यूक्रेन के खिलाफ देश के सैन्य दुस्साहसवाद के रूप में देखा। 

भारत ने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में सभी देशों की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने का आह्वान किया था। इसके साथ ही भारत ने रूस के खिलाफ वोट नहीं दिया था। भारत वोटिंग से दूर हट गया था। दोनों देशों ने पिछले साल सैन्य-तकनीकी सहयोग के लिए 10 साल के समझौता को नवीकृत (Renewed) किया था। भारत अफगानिस्तान में खतरनाक सुरक्षा स्थिति से निपटने के लिए भी मास्को के साथ मिलकर काम कर रहा है।

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यह है विवाद की वजह
रूस यूक्रेन की नाटो की सदस्यता का विरोध कर रहा है। लेकिन यूक्रेन की समस्या है कि उसे या तो अमेरिका के साथ होना पड़ेगा या फिर सोवियत संघ जैसे पुराने दौर में लौटना होगा। दोनों सेनाओं के बीच 20-45 किमी की दूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन पहले ही रूस को चेता चुके हैं कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया, तो नतीजे गंभीर होंगे। दूसरी तरफ यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं था। उसके सैनिकों को नाटो की सेनाएं ट्रेनिंग दे रही हैं। अमेरिका को डर है कि अगर रूस से यूक्रेन पर कब्जा कर लिया, तो वो उत्तरी यूरोप की महाशक्ति बनकर उभर आएगा। इससे चीन को शह मिलेगी। यानी वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा।

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