PM Modi की पापुआ न्यू गिनी यात्रा: क्यों छोटे से द्वीप की पहली यात्रा कर रहे भारतीय पीएम? मोदी के लिए कौन सी परंपरा तोड़ेगा यह देश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) पहले भारतीय पीएम होंगे जो पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) की यात्रा कर रहे हैं। इससे पहले कोई भी भारतीय पीएम इस द्विपीय राष्ट्र की धरती पर कदम नहीं रखा है।

PM Modi Visits Papua New Guinea. जापान के हिरोशिमा में जी-7 की बैठक और क्वाड की महत्वपूर्ण मीटिंग के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पापुआ न्यू गिनी की यात्रा पर पहुंचे हैं। जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ही इस छोटे से द्विपीय देश की यात्रा करना कई सवाल खड़े करता है। वह भी तब जब इस रीजन में चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को लागू करने पर आमादा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है और यह बड़ी इसलिए है क्योंकि पीएम मोदी रणनीतिक तौर पर इस देश की यात्रा कर रहे हैं।

अपनी ही परंपरा को तोड़ देगा पापुआ न्यू गिनी

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पापुआ न्यू गिनी में सूर्यास्त के बाद किसी भी राजनेता का औपचारिक स्वागत नहीं किया जाता है लेकिन पीएम मोदी की अगवानी के लिए इस देश ने यह परंपरा तोड़ दी है। यहां पूरे पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत सत्कार किया जाएगा और पीएम जेम्स मरापे खुद मोदी के स्वागत के लिए मौजूद रहेंगे। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों प्रधानमंत्री को इस देश की यात्रा करने की जरूरत पड़ी। जवाब सीधा है क्योंकि प्रशांस महासागर में चीन अपनी विस्तारवादी नीति लागू कर रहा है और पापुआ न्यू गिनी भी उसकी चपेट में है।

बेहद महत्वपूर्ण है FIPIC शिखर सम्मेलन

पापुआ न्यू गिनी में FIPIC शिखर सम्मेलन होना है जिसमें यहां के पीएम मरापे सहित प्रशांत महासागर के 14 द्विपीय देश हिस्सा लेंगे। इनमें फिजी, कुक आईलैंड्स, किरिबाती, सामोआ, तुआलु, वानुअतु जैसे देश हिस्सा लेंगे। मामला यह है कि चीन इन सभी 14 द्वीपों पर नजर गड़ाए हुए है, यही कारण है कि पीएम मोदी की इस छोटे से देश की यात्रा बड़ा मकसद लेकर सामने आएगी।

पापुआ न्यू गिनी में सोने-तांबे का भंडार

प्रशांत महासागर के देश पापुआ न्यू गिनी में सोने और तांबे का अकूत भंडार है। यहां की आबादी मात्र 1 करोड़ है। यह 4.62 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा द्विपीय देश है। चीन की मंशा यहां पर मिलिट्री बेस बनाने की है। अगर ऐसा होता है तो ऑस्ट्रेलिया ही नहीं न्यूजीलैंड और अमेरिका के लिए भी मुश्किलें हो सकती हैं।

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