चीन में सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने अपने कोर लीडर शी जिनपिंग को राष्ट्रपति (President) का तीसरा कार्यकाल सौंपने पर मुहर लगा दी है। जिनपिंग, माओ के बाद पार्टी के इकलौते कोर लीडर हैं।
बीजिंग। माओ की तरह ताकतवर बन चुके चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) अब इतिहास पुरुष के रूप में जाने जाएंगे। जिनपिंग की कहानी अब चीन के बच्चे कोर्स की किताबों में पढ़ेंगे। जिनपिंग, माओ के बाद पार्टी के इकलौते कोर लीडर (core leader) हैं। 100 साल पुरानी पार्टी (Communist Party of China) के इतिहास में तीसरा संकल्प पत्र भी चार दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश किया गया। बंद कमरे में गुप्त तरीके से हो रहे अधिवेशन में शी यहां के सबसे शक्तिशाली लीडर होकर उभरे हैं।
शी के तीसरे कार्यकाल पर मुहर लगी
चीन में सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने अपने कोर लीडर शी जिनपिंग को राष्ट्रपति (President) का तीसरा कार्यकाल सौंपने पर मुहर लगा दी है। जिनपिंग, माओ के बाद पार्टी के इकलौते कोर लीडर हैं। 100 साल पुरानी पार्टी के इतिहास में तीसरा संकल्प पत्र भी चार दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश किया गया। बंद कमरे में गुप्त तरीके से हो रहे अधिवेशन में शी यहां के सबसे शक्तिशाली लीडर होकर उभरे हैं। एक तानाशाह की भांति शी जिनपिंग के खिलाफ अब चीन में आवाज उठाना गुनाह होगा, ऐसे लब की आजादी पर पहरा बिठा दिया गया है और राष्ट्रपति के खिलाफ एक भी शब्द बोलने पर सलाखों के पीछे धकेल दिया जाएगा।
370 मेंबर शामिल हैं अधिवेशन में
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे हो गए हैं। सौ साल के उपलक्ष्य में पार्टी चार दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन की है। इस अधिवेशन में पार्टी के 370 सीनियर मेंबर शामिल हुए जो बडे़ फैसले लेंगे। इसी अधिवेशन में पार्टी की सौ साल की उपलब्धियों पर चर्चा के साथ शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल का रास्ता प्रशस्त किया जाएगा।
माओ से भी आगे निकलेंगे शी?
चीन पर राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की स्थापना जुलाई 1921 में की गई थी। अपने स्थापना के सौ साल पूरे होने पर पार्टी इस बार तीसरा संकल्प पत्र जारी कर रही है। इसके पहले 1945 और दूसरी बार 1981 में संकल्प पत्र पढ़ा गया था। पहले संकल्प पत्र में माओत्से तुंग (Mao Tse Tung) और दूसरे में देंग जियाओपिंग (Deng Jia Oping) की शक्तियों को बढ़ाया गया था। अब तीसरे संकल्प पत्र से शी जिनपिंग को सबसे शक्तिशाली बनाया जा रहा है। वह माओ के बाद पार्टी के कोर लीडर भी चुने जा चुके हैं।
चीन के तानाशाह बन चुके हैं शी
शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन में मानवाधिकारों का सबसे अधिक हनन हुआ। उइगरों के कत्लेआम पर तो पूरी दुनिया में किरकिरी हुई लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अपने पड़ोसियों की जमीन को हथियाने के लिए शी प्रशासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। भारत-चीन के मध्य एलएसी विवाद इसी का नतीजा है। चीन डिजिटल क्रांति में भी काफी पीछे है। यहां इंटरनेट की आजादी नहीं है। ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में भी यह काफी पीछे होने के साथ मीडिया यहां की स्वतंत्र नहीं है। सबसे अधिक मौत की सजा भी यहीं दी जाती है।
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