सार
एलजेपी नेता चिराग पासवान के तेवर काफी तल्ख होते जा रहे हैं। वो चुनाव में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का संकेत दे रहे हैं। पार्टी ने दिल्ली में संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई है।
पटना। विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। मगर अब गठबंधन में शामिल दलों का कलह छिपा नहीं रहा और सतह पर दिखने लगा है। आज जेडीयू, बीजेपी और एलजेपी के साथ जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा भी गठबंधन का हिस्सा बनने जा रही है। इस बीच एलजेपी नेता चिराग पासवान के तेवर काफी तल्ख होते जा रहे हैं। वो चुनाव में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का संकेत दे रहे हैं।
अब 7 सितंबर से नीतीश कुमार के वर्चुअल अभियान की शुरुआत से पहले एलजेपी आरपार की लड़ाई के मूड में है। पार्टी ने दिल्ली में संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई है। कहा यह भी जा रहा है कि चिराग बिहार में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार भी उतार सकते हैं। चिराग ने बीजेपी चीफ जेपी नड्डा से बात की और नीतीश के रुख को लेकर असहमति दर्ज कराई। इससे पहले बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम सुशील मोदी के बयान से साफ हो गया था कि एनडीए में कई दिन से कलह जारी है और जेडीयू-एलजेपी के रिश्ते काफी तल्ख हैं। यही वजह है कि एनडीए सीटों के बंटवारे को अनाउंस नहीं कर पाया है।
जेडीयू और एलजेपी का झगड़ा क्या है?
एनडीए में सीटों के बंटवारे का जो फॉर्मूला सामने आया उसके मुताबिक 243 विधानसभा में जेडीयू को 110, बीजेपी को 100 और एलजेपी को 33 सीटें देने की चर्चाएं थीं। जेडीयू और एलजेपी के बीच झगड़ा सीटों के बंटवारे को लेकर ही शुरू हुआ था। चिराग एनडीए में दलित और महादलित वोटों पर राजनीति करने वाली अपनी पार्टी एलजेपी के लिए बड़ी भूमिका की मांग कर रहे थे। वो चुनाव में 40 से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे थे। लेकिन नीतीश कुमार को ये मंजूर नहीं था। जेडीयू और एलजेपी के दिग्गज नेताओं की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ लगातार बयानबाजी हुई।
(चिराग और नीतीश कुमार)
एनडीए में मांझी के आने के पीछे की कहानी
इस बीच नीतीश कुमार ने एलजेपी को सबक सिखाने के लिए महादलित वोटों पर राजनीति करने वाली हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा को आरजेडी के महागठबंधन से तोड़ लिया। हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा का जेडीयू में विलय भी नहीं हो रहा। बल्कि वह एक स्वतंत्र दल की हैसियत से एनडीए में शामिल है। सीटें जेडीयू कोटे से मिलेंगी या सभी दलों के खाते से यह साफ नहीं हो पाया है। लेकिन एक बात जो साफ है वह यह कि नीतीश के कदम से एलजेपी की परेशानी और बढ़ गई। जेडीयू में उसका विलय होता तो एलजेपी की चिंताएं शायद वैसी नहीं रहती। अब पेंच ये है कि सीटों का फॉर्मूला मांझी के आने से गड़बड़ हो गया। एलजेपी को ज्यादा सीटें भी नहीं मिलेंगी और उसकी महादलित राजनीति के सामने नीतीश ने मांझी के रूप में एक तगड़ा विकल्प भी खड़ा करने की कोशिश की है।
पूरे मामले में बीजेपी-एलजेपी साथ दिख रहे
सीटों के बंटवारे को लेकर जो विवाद है उसमें साफ दिख रहा है कि एलजेपी की चिंता मांझी और एनडीए में उसकी भूमिका कोलेकर है। यही वजह है कि उसके निशाने पर सिर्फ जेडीयू है। चिराग और रामविलास पासवान ने नीतीश और उनके काम की आलोचना की है मगर बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना नहीं की है। चिराग ने उल्टे बीजेपी के दिग्गज नेताओं से पूरे मामले में हस्तक्षेप की अपील भी की। बुधवार को सुशील मोदी के बयान के बाद यह साफ भी हुआ कि बीजेपी, एलजेपी के साथ है।
(चिराग, रामविलास और नीतीश कुमार)
एलजेपी को मिल रहा बीजेपी का साथ
हालांकि बीजेपी नहीं चाहती कि एनडीए का कोई भी घटक चुनाव में अलग रास्ता पकड़े। सुशील मोदी ने इसीलिए इशारों में नीतीश को सलाह दी थी कि बिहार की मौजूदा सियासत को लेकर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किसी मुगालते में नहीं है। कोई अकेले सरकार नहीं बना सकता और सरकार बनाने के लिए मजबूत गठबंधन का होना जरूरी है। जेडीयू-एलजेपी के बीच मतभेद को स्वीकारते हुए उन्होंने इसे जल्द ही ठीक कर लेने की बात भी की। वैसे इस पूरे विवाद में जिस तरह बीजेपी और एलजेपी साथ हैं उसे देखते हुए यह संभावना कम ही है कि एलजेपी एनडीए से बाहर जाएगी। लेकिन यह खत्म कैसे होगा इस बारे में अभी साफ-साफ कुछ कहा नहीं जा सकता।
एनडीए के बाहर एलजेपी को लेकर क्या चर्चाएं
उधर, चर्चा यह भी है कि नीतीश कुमार के रुख से बेहद नाराज एलजेपी, चुनाव में एनडीए के बाहर भी अपनी भूमिका तलाश रही है। जन अधिकार पार्टी चीफ पप्पू यादव छोटे दलों को लेकर राज्य में तीसरा मोर्चा बनाने के इच्छुक हैं। हाल ही में उन्होंने कहा भी कि उनकी ओर से राज्य में सीएम का चेहरा कोई दलित या ओबीसी होगा। इससे पहले लगातार अटकलें रहीं कि चिराग खुद को सीएम पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं और पप्पू यादव के साथ तीसरा मोर्चा भी बना सकते हैं। जो भी हो, चुनाव नजदीक आते-आते बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है।