सार

बिहार का राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ा हुआ है। नीतिश कुमार की जदयू और बीजेपी के बीच तकरार सामने आ चुकी है। आरसीपी सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद अंदरूनी तौर पर भी कई प्रकार की हलचल तेज हो चुकी है। बिहार की सत्ता पर अपना पूरा प्रभाव जमाने के लिए नीतीश तो सक्रिय हो ही चुके हैं, बीजेपी के अंदरखाने में भी हलचल तेज हो चुकी है।

पटना। बिहार में पिछले कई दिनों से राजनीतिक पारा लगातार चढ़ रहा है। बीजेपी-जदयू के बीच तनातनी की खबरों के बीच मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के सभी विधायकों व सांसदों की मीटिंग बुलाई है। शनिवार को जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने पार्टी छोड़ने के साथ नीतीश कुमार पर निशाना साधा था। जबकि रविवार को पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह ने साफ तौर पर यह ऐलान किया कि वह लोग पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में शामिल नहीं होंगे। 

आरसीपी सिंह को लेकर है अधिक सरगर्मी

दरअसल, नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन तो हैं लेकिन इस बार उनकी पार्टी की सीटें कम होने की वजह से लगातार दबाव में हैं। उधर, पार्टी में ही बीजेपी के प्रतिनिधि के रूप में विख्यात रहे आरसीपी सिंह से उनकी तल्खी ने अंदरखाने की तल्खी को और बढ़ा दिया है। आरसीपी सिंह 2019 में नीतीश कुमार के न चाहने के बाद भी केंद्र में मंत्री पद की शपथ ले ली थी। हालांकि, पार्टी ने आरसीपी सिंह को दुबारा राज्यसभा में नहीं भेजा, इस वजह से उनको केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था।

आरसीपी पर भ्रष्टाचार का भी लगा आरोप

पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह पर नौ साल में बिहार के विभिन्न जिलों में 58 प्लॉट्स खरीदने का आरोप है। जदयू ने आरसीपी को नोटिस करके पिछले दिनों पूछा था कि उन्होंने 58 प्लॉट्स, 40 बीघा जमीन को खरीदा, उसका स्रोत क्या है? हालांकि, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पार्टी फोरम में जवाब देने की बजाय पार्टी ही छोड़ दी। 

शाह लगातार मंत्री पद के लिए बना रहे दबाव

उधर, अमित शाह लगातार नीतीश कुमार की पार्टी से केवल एक मंत्री को शामिल करने का दबाव बना रहे हैं। सूत्रों की मानें तो बीजेपी चाह रही कि आरसीपी को केंद्रीय सरकार में शामिल किया जाए। हालांकि, नीतीश कुमार, चाहते हैं कि बिहार का प्रतिनिधित्व जो केंद्र में मिला है, उसमें भी उनकी राय हो। ऐसा बीजेपी अगर करेगी तो उसकी बिहार में पकड़ कमजोर पड़ सकती है। नीतीश को शाह मनाने के लिए लगे हैं लेकिन वह पार्टी को केंद्र सरकार से दूर रखना चाहते हैं। रविवार को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी ऐलान किया कि पार्टी केंद्र सरकार में शामिल नहीं होने जा रही है। जदयू का कोई सांसद मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं होगा। 

ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की क्या जरूरत है? मुख्यमंत्री ने 2019 में फैसला किया था कि हम केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि जद (यू) निकट भविष्य में भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगा। जदयू अध्यक्ष ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि बिहार में दूसरा चिराग मॉडल सफल नहीं होने वाला है। 

विजय कुमार सिन्हा को हटाने पर अड़े सीएम

नीतीश कुमार, बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को हटाने पर अड़े हुए हैं। वह चाहते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष को बदला जाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले श्री सिन्हा पर एक से अधिक बार अपना आपा खो चुके हैं। श्री कुमार ने अपनी सरकार के खिलाफ सवाल उठाकर संविधान का खुले तौर पर उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।

जातिगत जनगणना और एक साथ चुनाव पर भी मतभेद

नीतीश कुमार ने बीते दिनों राज्य में जातिगत जनगणना का आदेश देते हुए विपक्ष का साथ दिया। हालांकि, बीजेपी इसको नहीं चाहती थी। उधर, पीएम मोदी के इस प्रस्ताव कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव सारे एक साथ कराए जाने के खिलाफ भी नीतीश कुमार हैं। वह इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ हैं। 

पीएम की मीटिंग में भी लगातार दो बार नहीं गए

रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नीति आयोग की मीटिंग हुई। इसमें मुख्यमंत्रियों को शामिल होना था। बीजेपी की घोर विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत 23 मुख्यमंत्री शामिल हुए लेकिन नीतीश कुमार नहीं गए। हालांकि, उन्होंने मीटिंग में शामिल न होना स्वास्थ्य कारणों को वजह बताया जा रहा है। इसके पहले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए गठबंधन दलों की डिप्लोमेटिक मीट में भी नीतीश शामिल नहीं हुए। यह बैठक भी पीएम की अध्यक्षता में हुई। नीतिश कुमार का यह रूख, बीजेपी के प्रति उनके गुस्से के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है।

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