सार

लालू की गैरमौजूदगी की वजह से एक तरफ महागठबंधन में शामिल दल तेजस्वी यादव पर दबाव बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी और परिवार के अंदर के कई फैसले अनुभवहीनता का शिकार हो रहे हैं। 

पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा तो नहीं हुई है मगर इसे लेकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया। ये घमासान पार्टियों के अंदर भी है और बाहर भी दिख रहा है। चुनाव से पहले ही रघुवंश सिंह की आरजेडी नेताओं से नाराजगी चर्चा के केंद्र में है। उनके जेडीयू में जाने की भी अटकलें शुरू हैं। विवाद की वजह लोक जनशक्ति पार्टी के पूर्व सांसद रामा सिंह हैं जिन्हें आरजेडी नेतृत्व पार्टी में शामिल कराना चाहता है। रघुवंश ने इसी का विरोध करते हुए सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि लालू यादव ने इस्तीफे को अब तक मंजूर नहीं किया है। 

लालू इस वक्त जेल में हैं। उनके न होने की वजह से आरजेडी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लालू की गैरमौजूदगी की वजह से एक तरफ महागठबंधन में शामिल दल तेजस्वी यादव पर दबाव बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी और परिवार के अंदर के कई फैसले अनुभवहीनता का शिकार हो रहे हैं। अब आरजेडी के अंदर के इस घमासान की एक दूसरी कहानी सामने आ रही है।

कहानी यह कि लालू के बिना चुनाव में उनके दोनों बेटों की जीत कैसे सुनिश्चित की जाए? पार्टी के लिए तेज प्रताप और तेजस्वी यादव का जीतना उसके अस्तित्व का भी सवाल है। दोनों की हार का मतलब बिहार की राजनीति में आरजेडी का सिमट जाना भी होगा। 

 

तेजप्रताप सीट बदलेंगे, चाहिए लालू की मंजूरी 
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि तेजप्रताप यादव अपनी सीट बदलना चाहते हैं। 2015 के चुनाव में महुआ विधानसभा सीट से जीतकर पहली बार विधायक बने थे। तब उन्हें जेडीयू का भी सपोर्ट था। ससुर चंद्रिका राय और पत्नी ऐश्वर्या से घरेलू विवाद की वजह से तेजप्रताप को इस सीट पर अंदेशा नजर आ रहा है। चंद्रिका जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। चर्चा यह भी है कि पति के खिलाफ ऐश्वर्या को खड़ा करके एनडीए महुआ में लालू परिवार को घेरने की प्लानिंग कर सकता है। लालू के किसी बेटे की हार का आरजेडी की राजनीति पर असर पड़ेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक तेजप्रताप इस बार हसनपुर सीट से लड़ना चाहते हैं। वो जेल में बंद पिता से अप्रूवल लेने के लिए रांची निकल चुके हैं। 

तेजस्वी के कंधे पर सारा दारोमदार 
इसी तरह तेजस्वी यादव वैशाली जिले की राघोपुर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे। ये लालू परिवार की पारंपरिक सीट है। यहां से लालू और राबड़ी देवी विधायक बन चुकी हैं। राघोपुर हालांकि यादव बहुल सीट है मगर 2010 में राबड़ी देवी को भी यहां से हार का मुंह देखना पड़ा था। आरजेडी की मुश्किल यह है कि पूरे चुनाव का दारोमदार तेजस्वी के कंधे पर होगा। ऐसे में वो राघोपुर में कैम्पेन के लिए वक्त नहीं दे पाएंगे। जबकि यह तय है कि राघोपुर में एनडीए मजबूत घेराबंदी की कोशिश करेगा। 

 

तेजस्वी के लिए रघुवंश-रामा सिंह कितने जरूरी? 
कहा जा रहा है कि रामा सिंह यहां से सांसद रह चुके हैं। इलाके में उनकी अच्छी पकड़ है। यहां तेजस्वी के सक्रिय हुए बिना किसी भी हालत में ये सीट जीतने के लिए उन्हें पार्टी में लाया जा रहा है। लालू यादव ने इसकी मंजूरी भी दी है। जबकि लालू को रघुवंश और रामा सिंह की अदावत के बारे में पहले से ही जानकारी है। पार्टी नहीं चाहती कि तेजस्वी की हार से भविष्य में राजनीतिक नुकसान हो। इस सीट पर यादव-मुस्लिम निर्णायक हैं, मगर ठाकुर मतदाताओं का एकतरफा झुकाव भी किसी भी पार्टी की हार-जीत सुनिश्चित कर सकता है। लालू ने इन्हीं वजहों से अभी तक वैशाली के जमीनी नेता रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। वो चाहते हैं दोनों नेता पार्टी में रहें। दो मजबूत ठाकुर नेताओं की आरजेडी में मौजूदगी से तेजस्वी की सीट पूरी तरह सेफ हो जाएगी। 

जेल से ही लालू रख रहे नजर 
लालू यादव भले झारखंड की जेल में बंद हैं पर बिहार के हर घटनाक्रम पर लगातार उनकी नजर है। वो किसी भी सूरत में नहीं चाहते कि रघुवंश पार्टी छोड़कर बाहर जाए। लालू लगातार रघुवंश को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि रघुवंश की हैसियत की आलोचना करने वाले तेजप्रताप ने पिता की वजह से बाद में अपने बयान के लिए माफी मांगी।