सार
अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म द कश्मिर फाइल्स शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म एक सच्ची त्रासदी पर आधारित इमोशनल रूप से आपको हिला कर रख देगी। ये फिल्म 1990 में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को दिखाती है, जिन्हें आतंकियों द्वारा अपने घरों से भागने के लिए मजबूर कर किया दिया था।
मुंबई. अनुपम खेर (Anupam Kher) और मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty) की फिल्म द कश्मिर फाइल्स (The Kashmir Files) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म एक सच्ची त्रासदी पर आधारित इमोशनल रूप से आपको हिला कर रख देगी। ये फिल्म 1990 में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को दिखाती है, जिन्हें आतंकियों द्वारा अपने घरों से भागने के लिए मजबूर कर किया दिया था। फिल्म यह भी बताती है कि वो सिर्फ एक पलायन नहीं बल्कि नरसंहार था। फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री है। उन्होंने फिल्म में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से लेकर कश्मीर के इतिहास और पौराणिक कथाओं पर भी बात की है। बता दें कि करीब 30 साल बाद भी कश्मीरी पंडित अभी भी न्याय की उम्मीद करते हैं। ये फिल्म उनकी पीड़ा और आवाज को सामने लेकर आई है। फिल्म में दिखाया कि किस तरह राजनीतिक कारणों से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को सालों साल दबा कर रखा गया।
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म 1990 से शुरू होती है और मौजूदा साल तक पहुंचती है। दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रीनगर आता है। कश्मीर के अतीत से बेखबर वो अपने परिवार से जुड़ी सच्चाई की खोज में लग जाता है। यहां उसकी मुलाकात दादाजी के चार दोस्तों से होती है। उनके बीच धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की चर्चा शुरू होती है और कहानी पहुंचती है 1990 में। दिखाया गया कि किस तरह कश्मीर की गलियों में आतंकी बंदूकें लेकर घूम हैं और कश्मीरी पंडितों को ढूंढ-ढूंढकर मारते हैं। वे किसी को नहीं छोड़ते। फिल्म कश्मीरी पंडितों पर हुए तमाम हिंसा को दिखाती है। इसमें राज्य के अपंग प्रशासन के सामने सभी असहाय भी दिखाया गया है। एक बार फिर अनुपम खेर ने अपनी अदाकारी से सभी का दिल जीत लिया। वहीं, मिथुन चक्रवर्ती ने शानदार काम किया है। इनके अलावा फिल्म में दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, प्रकाश बेलावड़ी, पुनीत इस्सर, अतुल श्रीवास्तव, चिन्मय मांडलेकर, भाषा सुंबली भी है।
थोड़ा सा चूके डायरेक्टर
विवेक अग्निहोत्री ने सालों रिसर्च कर इस फिल्म की कहानी पर काम किया है जो स्क्रीन पर साफ नजर आता है। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और नरसंहार की इस कहानी में निर्देशक ने कई मुद्दे उठाए हैं। निर्देशक ने खासतौर पर तीन किरदारों के जरीए कश्मीरी पंडितों की पीड़ा दिखाने की कोशिश की है। फिल्म में हालांकि भावनात्मक पक्ष दिखाए है लेकिन थोड़ी कमियां भी नजर आती हैं। कहानी में कई चीजों को दोहराया गया। फिल्म में कई सारे मुद्दे एक के बाद एक सामने आते हैं जिसकी वजह से इसके कुछ किरदारों को छोड़कर किसी से खास जुड़ने का मौका नहीं मिलता।
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