सार

मोस्ट अवैटेड फिल्म 'खुदा हाफ़िज़ चैप्टर 2 : अग्नि परिक्षा' में एक बार फिर विद्युत जामवाल एक्शन का तड़का लगाते नज़र आ रहे हैं। फिल्म पहले पार्ट के आगे की कहानी बयां करती है। अगर आप भी फिल्म देखने का मन बना रहे हैं तो पहले इसका रिव्यू पढ़ लीजिए।

एंटरटेनमेंट डेस्क. विद्युत जामवाल (Vidyut Jammwal) स्टारर एक्शन थ्रिलर फिल्म 'खुदा हाफ़िज़ चैप्टर 2 : अग्नि परिक्षा' (Khuda Haafiz: Chapter II – Agni Pariksha) सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। 2020 में आए फिल्म के पहले पार्ट की तरह ही इस बार भी इसकी कहानी फारुक कबीर ने लिखी है और निर्देशन भी उन्होंने ही किया है। चूंकि फिल्म का पिछला पार्ट लोगों को खूब पसंद आया था। इसलिए दूसरे पार्ट से भी काफी उम्मीदें जताई जा रही हैं। तो इससे पहले कि आप फिल्म देखने जाएं, हम आपको बता रहे हैं कि आखिर यह फिल्म कैसी है?

एशियानेट रेटिंग3/5
डायरेक्शनफारुक कबीर
स्टार कास्टविद्युत जामवाल, शिवालिका ओबेरॉय, शीबा चड्ढा, राजेश तैलंग और दिव्येंदु भट्टाचार्य
प्रोड्यूसर्सकुमार मंगत पाठक, अभिषेक पाठक, स्नेहा बिमल पारेख, राम मीरचंदानी
म्यूजिक डायरेक्टरअमर महीले, मिथुन, विशाल मिश्रा, शब्बीर अहमद
जॉनरएक्शन थ्रिलर

क्या है फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहला पार्ट ख़त्म हुआ था। समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) अपनी पत्नी नरगिस (शिवालिका चौधरी) को नोमान में जिस्म फरोशी का धंधा करवाने वालों के चंगुल से छुड़ाकर लखनऊ ले आया है। नरगिस के साथ नोमान में जो कुछ हुआ, उसका उस पर गहरा प्रभाव पड़ा है और वह डिप्रेशन में है। समीर उसे संभालने की कोशिश करता है और जब वह इसमें असफल होता है तो एक बच्ची गोद ले लेता है, जिसके बाद उनकी बेरंग सी जिंदगी में फिर से रंग भर जाते हैं। हालांकि, उनकी ये खुशियां कुछ समय के लिए ही रहती हैं। समीर और नरगिस की गोद ली हुई 5 साल की बच्ची का अपहरण हो जाता है और गैंग रेप के बाद उसे मार दिया जाता है। एक बार फिर नरगिस टूट जाती है और समीर को सौगंध देती है कि उसे अपनी बेटी के कातिल को मारना होगा। हालांकि, आरोपी शहर की दबंग ठाकुर जी (शीबा चड्ढा) का पोता है। ऐसे में समीर कैसे नरगिस की सौगंध को पूरा कर पाता है? फिल्म में क्या ट्विस्ट और टर्न आते हैं? यह सब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

पहला आधा घंटा उबाऊ है

फिल्म के निर्देशन की बात करें तो शुरुआती आधा घंटा आपको उबाऊ लग सकता है, जिसमें समीर और नरगिस की जिंदगी की नई शुरुआत के पहले के संघर्ष को दिखाया गया है। हालांकि, इसके बाद फिल्म रफ़्तार पकड़ती है और सस्पेंस और थ्रिल के साथ आगे बढ़ती है। कहानी कुछ कमज़ोर है। लेकिन डायरेक्शन बेहतर है।

एक्टिंग में सब पर भारी शीबा चड्ढा

विद्युत जामवाल अपने एक्शन के लिए जाने जाते हैं और फिल्म में उनका यह अवतार बखूबी निखरकर आया है। उन्होंने जबरदस्त काम किया है। शिवालिका ओबेरॉय के हिस्से में ज्यादा कुछ है नहीं, लेकिन जितने सीन में वे दिखी हैं, उनमें बेहतरीन काम किया है। ठाकुर जी के रोल में शीबा चड्ढा की एक्टिंग सबसे शानदार है और उनके गुर्गे के किरदार में दिव्येंदु भट्टाचार्य ने भी कमाल का परफॉर्मेंस दिया है। राजेश तैलंग ने भी बढ़िया काम किया है। कुल मिलाकर एक्टिंग के लेवल पर फिल्म बेहतर बन पड़ी है।

फिल्म का संगीत ठीक-ठाक ही है

फिल्म का म्यूजिक कुछ खास नहीं है। 'छैयां में तोरे सैयां जी' सुनने में कुछ हद तक अच्छा लगता है। 'रूबरू' भी ठीक-ठाक है। बाकी दो गाने 'आजा वे' और 'जूनून है' धीमे प्रतीत होते हैं। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की तारीफ़ करनी होगी। ड्रोन सीन्स का काफी उपयोग हुआ है, जो फिल्म को अलग लेवल पर लेकर जाते हैं। जेल के छोटे-छोटे बाथरूमों और छोटी-छोटी जगहों पर कमाल के एक्शन सीन फिल्माए गए हैं। 

आप यह फिल्म देख सकते हैं यदि...

- पहला पार्ट आपने देखा था और वह आपको पसंद आया था तो आगे की कहानी जानने के लिए। 
-विद्युत जामवाल के फैन हैं और पर्दे पर उन्हें एक्शन करते देखना पसंद करते हैं तो। 
- फिल्म समाज में बदलाव का संदेश देती है और अगर आप इस तरह की फिल्मों को देखने में रुचि रखते हैं तो।

हाँ, फिल्म में खून-खराबा बहुत ज़्यादा दिखाया गया और अगर आप इस तरह के सीन झेलने के आदी नहीं हैं तो आप यह फिल्म बिल्कुल न देखें।

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