सार

संगीत वो है जो पैरों को थरकने के लिए मजबूर कर दे, संगीत वो जो अंतरा के अंतर के मिटा दे,  संगीत वो  जो बिना कुछ कहे सब कह दे। संगीत वो जो मन में उमंगों को भर दे। संगीत वो जो तन में तरंगों को हिलोर दे। यदि वाकई में ये सब महूसस करना चाहते तो फिर आपको बप्पी लाहिरी का ही संगीत सुनना पड़ेगा।

Bappi Lahiri Superhit Song : भारत के प्रसिद्ध संगीतकार बप्‍पी लाहि‍री ने देवलोक गमन किया है। इस महीने लता मंगेशकर के बाद संगीत जगत ने दूसरा बड़ा सितारा खो दिया है। बप्पी भले ही अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी बनाई हुई सदाबहार धुनें सदा हमारे बीच उनकी मौजूदगी को बनाए रखेंगी। बप्पी दा को डिस्को किंग कहा जाता रहा है। उन्होंने 70 और 80 के दशक में राहुल देव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे म्यूजिक डॉयरेक्टर होने के बावजूद उन्होंने अपनी नई पहचान बनाई । बप्पी दा को भारत का गोल्डमैन भी कहा जाता है। वो हमेशा सोने के गहनों से लदे दिखाई देते थे। चलिए आपको बताते हैं, उनके चुनिंदा सुपरहिट गीतों के बारे में...

डिस्को सांग से किया जादू
संगीत वो है जो पैरों को थरकने के लिए मजबूर कर दे, संगीत वो जो अंतरा के अंतर के मिटा दे,  संगीत वो  जो बिना कुछ कहे सब कह दे। संगीत वो जो मन में उमंगों को भर दे। संगीत वो जो तन में तरंगों को हिलोर दे। यदि वाकई में ये सब महूसस करना चाहते तो फिर आपको बप्पी लाहिरी का ही संगीत सुनना पड़ेगा,  देश के के युवाओं को अपने म्यूजिक से आंदोलित करने वाले बप्पी दा अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनका  संगीतबद्ध किया साहेब फिल्म का गीत आज भी उतना ही पसंद किया जाता है। 

गीत के बोल--यार बिना चैन कहां रे...

भारतीय संगीत जगत में एक समय ऐसा भी था जब बप्पी लाहिड़ी का नाम आते ही लोगों के जहन में झुमते हुए गानें और बेहतरीन म्यूजिक घूमता था. ..सोने के गहनों से लदे बप्पी लाहिरी के संगीत में अगर डिस्को की चमक-दमक नज़र आती है तो उनके कुछ गाने सादगी और गंभीरता से लबरेज हैं। 
गीत के बोल--ये नैना ये काजल, फिल्म -दिल से मिले दिल

ये नैना ये काजल ( दिल से मिले दिल)

बप्पी दा का जन्म 27 नवंबर 1952 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुआ था। उनके पैरंट्स भी मशहूर सिंगर थे और उनका बंगाली क्लासिकल म्यूजिक से काफी लगाव था। यही वजह है की अलोकेश ने तीन साल की उम्र में ही  तबला बजाना शुरू कर दिया था, आपको बता दें कि बप्पी दा का बचपन का नाम अलोकेश लाहिरी है। बचपन से किशोरावस्था में कदम रखते ही केवल 14 साल की उम्र में अलोकेश ने पहली बार किसी गीत को संगीतबद्ध किया था।
प्यार कभी कम नहीं करना (प्रेम प्रतिज्ञा)

बप्पी दा का लिविंग स्टाइल औरों से जितना अलग हैं, उनका म्यूजिक भी उतना ही जुदा है। बप्पी लाहिरी ने संगीत जगत में उस समय अपनी पहचान बनाई जब आर डी बर्मन जैसे संगीतकारों का सिक्का बोलता था। बप्पी लाहिड़ी 70 के दशक में बॉलीवुड में आए और 80 के दशक तक छाए रहे। 90 का दशक उनके लिए कुछ खास नहीं रहा, लेकिन वह काम करते रहे। बप्पी ने 2011 में रिलीज 'डर्टी पिक्चर' में ऊ ला ला ऊ लाला.. गाया था, जो कि बेहद सुपरहिट हुआ। संगीतकार और गायक और रियलिटी शो में बतौर गेस्ट जज उनका क्रेज आज भी बरकरार है। उनके कुछ गाने अब रिमिक्स के जरिए नई पीढ़ी को लुभा रहे हैं...
दिल में हो तुम ( सत्यमेव जयते)

महज 17 साल की उम्र से ही बप्पी संगीतकार बनना चाहते थे और उनकी प्रेरणा बने एसडी बर्मन। बप्पी टीनएज में एसडी बर्मन के गानों को सुना करते और उन्हें रियाज किया करते थे। जिस दौर में लोग रोमांटिक संगीत सुनना पसंद करते थे उस वक्त बप्पी ने बॉलीवुड में 'डिस्को डांस' को इंट्रोड्यूस करवाया।
याद आ रहा है ( डिस्को डांसर)
बप्पी साहब एक अलग आवाज और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा उनकी एक और पहचान हैं, वो है सोने के ढेर सारे गहने पहनना। अगर कोई भी ज्यादा गहने पहने नजर आता है तो लोग बोलते हैं कि बप्पी लाहिड़ी हो गए हो क्या। वो गहने को लेकर एक मुहावरे की तरह हो गए हैं। लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि बप्पी लाहिड़ी को इतने सोने की ज्वेलरी पहने का शौक कहा से आया। दरअसल, मशहूर सिंगर को गोल्ड से लगाव इसलिए क्योंकि वो इसे अपना लक यानी भाग्य मानते हैं। 
माना हो तुम
बप्पी लाहिड़ी के शरीर पर ढेरों ज्वेलरी दिखाई देते हैं। गले  में ढेर सारे चेन और हाथ अंगूठियों से भरी होती है। सिंगर को ज्यादा गहने पहनने की प्रेरणा अमेरिकन रॉकस्टार एल्विस प्रेस्ली से मिली थी। बप्पी लाहिड़ी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हॉलीवुड गायक एल्विस प्रेस्ली सोने की चेन पहनते थे और मुझे वह काफी पसंद थे। उस वक्त मैं सोचता था कि जब मैं सफल इंसान बन जाऊंगा  तो अपनी अलग छवि बनाउंगा।  उसके बाद मैंने सोना पहना। गोल्ड मेरे लिए लकी है।  

आओ तुम्हें चांद पर ले जाएं (जख्मी)

 संगीत घराने से ताल्लुक रखने वाले बप्पी दा के पिता अपरेश लाहिड़ी भी प्रसिद्ध बंगाली गायक थे और उनकी माता बांसरी लाहिड़ी संगीतकार थीं।  बप्पी दा ने चित्रानी के साथ 1977 में शादी की थी।  बप्पी दा ने तीन साल की उम्र में तबला सीखना शुरू किया और तभी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी. उन्होंने संगीत अपने माता-पिता से ही सीखा और उन्होंने पहली बार बंगाली फिल्म में गाना गाया था। बॉलीवुड में नाम कमाने के लिए बप्पी लाहिड़ी ने 19 साल की उम्र में कोलकाता छोड़ दिया था. उन्हें पहली बार 'नन्हा शिकारी' में संगीत देने का मौका मिला था. वो साल 1973 था।

जवानी जानेमन (नमक हलाल)

बप्पी दा ने जितने भी गाने संगीतबद्ध किए, उनमें ज्यादातर किशोर कुमार और विजय बेनेडिक्ट ने गाए। बप्पी दा ऊषा उत्थप और अलीषा चिनॉय की आवाज को भी बेहद पसंद करते थे।  फिल्म म्यूजिक में पॉप का मिक्चर करने का श्रेय बप्पी दा को ही जाता हैं, उनके इस प्रयोग ने बॉलीवुड की दिशा बदलकर रख दी।  बप्पी दा एक दिन में सबसे ज्यादा गीत रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान भी बना चुके हैं। 
डिस्को स्टेशन (हथकड़ी)

50 साल के करियर में बप्पी दा को सैकड़ों पुरुस्कार मिल चुके हैं। 1982,83,85,91,2018 में उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नॉमीनेट किया गया था। शराबी फिल्म के लिए बप्पी दा को फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया है।
इंतहा हो गई ( शराबी)

साल 2012 में उन्हें डर्टी पिक्चर के ऊलाला गाने के लिए Mirchi Music Awards दिया जा चुका है।  बप्पी दा भले ही अब इस दुनिया में लेकिन उनके गाए औऱ संगीतबद्ध गीत हमेशा उन्हें हमारे बीच मौजूद रखेंगे।
चलते- चलते मेरे ये गीत....(चलते- चलते)...