सार
बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक बार फिर रेपो रेट में 0.50% की बढोतरी कर दी है। आरबीआई द्वारा रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट इजाफे के बाद यह 5.40% से बढ़कर 5.90% हो गई है। रेपो रेट बढ़ने का सीधा मतलब ये है कि सभी तरह के लोन महंगे हो जाएंगे।
Repo Rate increased: बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक बार फिर रेपो रेट में 0.50% की बढोतरी कर दी है। आरबीआई द्वारा रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट इजाफे के बाद यह 5.40% से बढ़कर 5.90% हो गई है। रेपो रेट बढ़ने का सीधा मतलब ये है कि बैंकों को अब रिजर्व बैंक से ज्यादा ब्याज दरों पर पैसा लेना होगा, जिससे सभी तरह के लोन महंगे हो सकते हैं। इसका असर कहीं न कहीं आपके लोन की किश्तों पर भी पड़ता है।
इस साल 4 बार बढ़ चुका रेपो रेट :
बता दें कि इस वित्त वर्ष 2022-23 में रिजर्व बैंक अब तक चार बार रेपो रेट बढ़ा चुका है। मई में हुई मीटिंग में 40 बेसिस प्वाइंट की बढोतरी की थी। इसके बाद जून और अगस्त में भी इसमें 50-50 बेसिस प्वाइंट का इजाफा किया। अगस्त में हुई मीटिंग में रेपो रेट को 4.90% से बढ़ाकर 5.40% कर दिया गया था।
उम्मीद है इस कदम से महंगाई 6% पर आएगी :
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा- आज महंगाई 7 फीसदी के आसपास है। हमें उम्मीद है कि साल की दूसरी छमाही में यह 6 फीसदी पर बनी रहेगी। बता दें कि देश में रिटेल महंगाई दर लगातार आठवें महीने में रिजर्व बैंक की तय लक्ष्य सीमा से ऊपर बनी हुई है। बीते दिनों जारी किए गए खुदरा महंगाई के आंकड़ों को देखें तो अगस्त में यह एक बार फिर से 7% पर पहुंच गई है( इससे पहले जुलाई महीने में खुदरा महंगाई में कमी दर्ज की गई थी और यह 6.71% थी।
क्या पहले से चल रहे लोन पर पड़ेगा असर?
होम लोन की ब्याज दरें 2 तरह से होती हैं। पहली फ्लोटर और दूसरी फ्लेक्सिबल। फ्लोटर कैटेगरी में आपकी ब्याज दर एक जैसी रहती है। जब तक आप उस लोन को पूरा चुका नहीं देते। मतलब आपको एक सामान EMI ही देना होगी। इसका रेपो रेट बढ़ने-घटने से कोई वास्ता नहीं होता है। वहीं, फ्लेक्सिबल कैटेगरी में अगर आपने लोन लिया है तो आपको लोन पर रेपो रेट बढ़ने का असर जरूर पड़ेगा। इससे आपकी पहले की EMI बढ़ जाएगी।
RBI रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है?
RBI मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान बढ़ती महंगाई पर कंट्रोल करने के लिए रेपो रेट बढ़ाता है। इससे उसके द्वारा बैंकों को मिलने वाला ब्याज महंगा हो जाता है, जिससे मार्केट में लिक्विडिटी (मनी फ्लो) कम हो जाती है। जब बाजार में पैसा कम होता है, तो सभी चीजों की डिमांड कम हो जाती है और महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। ठीक इसी तरह जब अर्थव्यवस्था में मंदी होती है तो रिजर्व बैंक रेपो रेट घटा देता है। इससे बैंकों को सस्ती दरों पर पैसा मिलता है और वो ग्राहकों को भी कम दरों पर लोन बांटते हैं। मार्केट में लिक्विड मनी बढ़ने से लोग जमकर खरीदारी करते हैं।
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