सार

आने वाले कुछ वर्षों में अप्रेंटिसशिप वैकल्पिक करियर को भी समान मौके प्रदान करेंगे। यही नहीं, ये प्रतिभा की कमी को दूर करने के लिए युवाओं को रोजगारपरक बनाने और अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में भी काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे। 

एजुकेशन डेस्क। कौशल विकास यानी स्किल डेवलपमेंट के लिए दुनियाभर में डेवलप्ड इकोनॉमिकल इंस्टीट्यूट्स लंबे समय से अप्रेंटिसशिप पर निर्भर रहे हैं। हां, यह सही है कि समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए कांसेप्ट बदला है। पुराने समय में कारीगरों को ट्रेंड करने के लिए जो औपचारिक प्रशिक्षण शुरू हुआ, वह 1563 में ब्रिटेन जैसे देशों के हाईस्कूल के बाद एजुकेशन के अल्टरनेट कोर्स यानी वैकल्पिक पाठ्यक्रम के तौर पर विकसित हुआ। 

यूके अप्रेंटिसिशप प्रोग्राम का विस्तार रचनात्मक मीडिया यानी क्रिएटिव मीडिया, चाइल्ड केयर, ट्रेवल, हॉस्पिटेलिटी, बिजनेस, हेल्थकेयर, इंजीनियरिंग, खेलकूद जैसी बहुत सी विधाओं में हुआ। यह 16 साल के करीब दस लाख बच्चों को सक्षम बनाता है। इन्हें कॉलेज में हॉयर एजुकेशन जारी रखने या वर्कफोर्स यानी कार्यबल में शामिल होने के लिए जरूरी स्किल हासिल करने में मददगार साबित होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, यह सीखने के लिए बेहद लॉजिकल यानी तार्किक दृष्टिकोण है, क्योंकि यह उन विकल्पों के प्रति प्रतिबद्धता तय करता है, जो इन ट्रेनियों ने प्रयोग में लाए हैं। 

किन्हें होगा अप्रेंटिसशिप का फायदा 
चूंकि, हर कोई अकादमिक यानी एकाडिमीकली इच्छुक नहीं है, तो उस गैप को जल्दी खत्म करने की कोशिश रहती है, जिससे युवा ट्रेनी दिलचस्पी वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकें और करियर की शुरुआत करने का प्रयास कर सकें। यह विजन व्यक्ति और साथ ही अर्थव्यवस्था दोनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है, क्योंकि यह ट्रेंड लेबर्स की मजबूत पाइपलाइन बनाता है, जो आर्थिक तंत्र को चला सकते हैं। इसके अलावा, इस सिस्टम में उन लोगों को शामिल करने की तैयारी है, जो अभी अपने करियर में शुरुआत कर रहे हैं और वे भी जो करियर में एक नई दिशा लेना चाहते हैं या अपस्किल करना चाहते हैं। 

अगले आठ साल में जरूरी एजुकेशन और स्किल की कमी हो सकती है 
एक्सपर्ट्स के अनुसार, अगर हम युवाओं को शिक्षित और प्रशिक्षित नहीं कर पाए तो भारत अगले दशक में आर्थिक संकट के कगार पर खड़ा दिख सकता है। यूनिसेफ का अपनी 2019 की रिपोर्ट में अनुमान है कि 47 प्रतिशत भारतीय युवाओं के पास 2030 तक रोजगार के लिए जरूरी एजुकेशन और स्किल यानी कौशल नहीं होगा। वहीं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (National Education Policy 2020) और भारत का राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) रोजगार को बढ़ावा देने और विभिन्न उद्योगों में प्रतिभा की कमी को दूर करने के लिए कौशल विकास की आवश्यकता को पहचान रहा है। ये पॉलिसी स्किल डेवलपमेंट को उचित महत्व प्रदान करती हैं और शैक्षिक गतिविधियों तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के बीच एक सही बदलाव को सक्षम करने का प्रयास कर रही हैं। 

सरकार अपने स्तर पर क्या कर रही है 
यही नहीं, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) देशभर में कौशल विकास के सभी प्रयासों को सक्रिय रूप से साझा कर रहा है। यह ट्रेंड वर्कफोर्स की मांग और आपूर्ति के बीच सीधा संबंध तय करने की कोशिश कर रहा है और व्यावसायिक तथा तकनीकी प्रशिक्षण एवं कौशल विकास के लिए एक रूपरेखा भी तैयार कर रहा है। 
एमएसडीई न केवल मौजूदा नौकरियों के लिए बल्कि, भविष्य की नौकरियों के लिए भी नए कौशल और नए सोच के निर्माण के लिए जरूरी तैयारी कर रहा है। 

किन क्षेत्र में अप्रेंटिसशिप नए मौके के तौर पर दिख रहा 
बहरहाल, भारत एक राष्ट्र के रूप में प्रतिभा की कमी और युवा रोजगार के मुद्दों से जूझ रहा है। इन दोहरे मुद्दों से निपटने के लिए सही दिशा में स्किल्ड एजुकेशन एंड ट्रेनिंग प्रोग्राम पर फोकस करने की जरूरत है। यह स्किल गैप को खत्म करेगा साथ ही, मैनेजमेंट ट्रेनिंग से जुड़ी कमियों को भी दूर करने में मददगार साबित होगा। इस तरह, यह एक इंप्लायर और ट्रेनी के बीच तालमेल बनाने का भी प्रभावी तरीका होगा। आने वाले समय में अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम मैन्यूफेक्चरिंग, हॉस्पिटेलिटी, टेवल, स्वास्थ्य देखभाल, क्रिएटिव डिजाइनिंग, विज्ञान, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में डिग्री आधारित एजुकेशन प्रोग्राम के संबंध में गलत धारणाओं को दूर करेंगे और इन वैकल्पिक करियर को भी समान मौके प्रदान करेंगे। यही नहीं, ये प्रतिभा की कमी को दूर करने के लिए युवाओं को रोजगारपरक बनाने और अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने में भी काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे। 

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