सार

यह फोटो निशब्द करता है। 2 साल की उम्र के बच्चे भले ठीक से बोल नहीं सकते। दुनियादारी समझ नहीं सकते, लेकिन दिल तो उनका भी धड़कता है। अपनों को खोने का दर्द उनको भी होता होगा।

नारायणपुर, छग. यह तस्वीर हिंसा के बूते देश-दुनिया बदलने वालों के लिए एक सबक है! अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, यह तस्वीर यही दिखाती है। यह फोटो निशब्द करता है। 2 साल की उम्र के बच्चे भले ठीक से बोल नहीं सकते। दुनियादारी समझ नहीं सकते, लेकिन दिल तो उनका भी धड़कता है। अपनों के चले जाने की कमी उन्हें भी खलती है।

यह मूर्ति है शहीद सब इंस्पेक्टर मूलचंद्र कंवर की। कंवर 24 जनवरी 2018 को नारायणपुर में हुए एक नक्सली हमले में शहीद हो गए थे। 13 दिसंबर कंवर का जन्मदिन था। 1986 में कोरबा जिले के घनाडबरी गांव में जन्मे कंवर महज 33 साल की उम्र में अपने फर्ज पर मर मिटे। यह है उनकी दो साल की बेटी। घनाडबरी में कंवर की एक आदमकद मूर्ति स्थापना की गई है। यहां हर साल उनके जन्मदिन पर गांववाले इकट्ठा होते हैं। अपने गांव के बहादुर को नम आंखों से याद करते हैं। इस बार जब शहीद की विधवा अपनी दो साल की बेटी के साथ श्रद्धांजलि देने पहुंची, तो बेटी मूर्ति के पास जाने की जिद करने लगी। मां उसे लेकर मूर्ति के पास गई। बेटी उछलते हुए मूर्ति से लिपट गई और प्यार करने लगी। यह दृश्य देखकर वो लोग भी रो पड़े, जो खुद को हर परिस्थिति में मजबूत रखते हैं। बता दें कि कंवर ने बीएससी(गणित) के बाद 12 अगस्त 2013 को सब इंस्पेक्टर के पद पर पुलिस में भर्ती हुए थे। उनकी पहली पोस्टिंग नारायणपुर में हुई थी।