सार

नशे ने पंजाब के लोगों की खुशियों पर किस तरह से ग्रहण लगा दिया है, यह राजकुमार के घर की रुला देने वाली कहानी को सुनकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। राजकुमार कहते हैं कि मेरे दोनों बेटे मेरे सामने दम तोड़ गए। मैं कुछ नहीं कर पाया। मेरे से अभागा बाप और कौन होगा? कॉलोनी में नशा माफिया ने मेरा सब कुछ लूट लिया है।

मनोज ठाकुर, अमृतसर। मेरी एक आंख खराब है। दूसरी आंख से कम दिखता है। देखना भी अब क्या? इससे ज्यादा और देखूंगा भी क्या? यह कंधे ढलती उम्र की वजह से नहीं झुके। दो-दो बेटों की लाशों के वजन उठा चुके हैं। मेरी जिंदगी में अंधेरा है। अब आंखों का इलाज करा कर किसे देखना है। क्या सिसकते आंगन को? या भूख से बिलबिलाते छोटे बच्चों को। बेटी की मौत हुई तो उसकी पत्नी भी चल बसी। अब छोटे बेटे की बहू है। जो घरों में कुछ काम कर कमा लाती है। इससे सभी का पेट पल रहा है। यह कहना है अमृतसर की विधवा कॉलोनी ‘मकबुलपुर’में रहने वाले 70 साल के बुजुर्ग राजकुमार का। पढ़ें Asianet News Hindi की रिपोर्ट का Part 2...

नशे ने पंजाब के लोगों की खुशियों पर किस तरह से ग्रहण लगा दिया है, यह राजकुमार के घर की रुला देने वाली कहानी को सुनकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। राजकुमार ने बताया कि उनका बड़ा बेटा सोनू (41 साल) पता नहीं कैसे नशे की गिरफ्त में आ गया और चिट्‌टा नशा लेने लगा था। बहुत समझाया, लेकिन नहीं माना। हाथ जोड़े। अपनी उम्र का वास्ता दिया। परिवार का वास्ता दिया। सारे प्रयास बेकार साबित हुए। ऐसा भी नहीं उसने छोड़ने की कोशिश नहीं की। कई बार छोड़ा। लेकिन, एक दिन बाद ही हालत ऐसी हो जाती थी कि जैसे अभी दम तोड़ देगा। फिर उसी रास्ते पर आना पड़ा। 

बेटे की मौत का सदमा पत्नी नहीं बर्दाश्त कर पाईं
राजकुमार का कहना था कि नशा करने के बाद सोनू ठीक हो जाता था। हम समझ रहे थे, शायद वह ठीक हो जाएगा।  क्या पता था, जिसे हम ठीक होना समझ रहे थे, वह तो धीरे-धीरे मौत की ओर जा रहा था। एक रात वह सोया। सुबह उठा ही नहीं। डॉक्टर बुलाया। पता चला- अब वह नहीं उठेगा। बेटे की मौत का सदमा मेरी पत्नी भी बर्दाश्त नहीं कर पाईं। वह भी बीमार हुई। इलाज तो कराया, लेकिन ठीक नहीं हुईं। फिर एक दिन वह भी मुझे अकेला छोड़कर चली गईं। 

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एक दिन छोटा बेटा लड़खड़ाते आया, तब बहू ने बताया
पूरे परिवार पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया। अब घर में छोटा बेटा था। उसने सब कुछ संभाला। कुछ दिनों बाद हम सब भूल कर अपनी जिंदगी में लग गए। लेकिन, एक दिन छोटा बेटा बिट्‌टू (30 साल) भी लड़खड़ाते हुए घर आया। इसे क्या हुआ? हम यह सोच ही रहे थे। बीमार हो गया क्या? समझ नहीं पाए। बाद में उसकी पत्नी रजनी ने बताया कि बिट्‌टू भी नशा करता है। मैं समझ नहीं पा रह था, मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? अब मैं कैसे अपने बेटे को समझाऊं?

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छोटे बेटे ने भी मेरे सामने दम तोड़ा
बड़े बेटे की मौत याद आने लगी। हम डर रहे थे। पूरा परिवार सहम गया। कोई कुछ करने की स्थिति में नहीं था। बस, चुप थे। हर सुबह आंख खोलने से भी डर लगता था। पता नहीं आज बेटा जिंदा उठेगा या नहीं। अब हमारा क्या होगा? हम सभी यह सोच रहे थे। सवा साल निकल गया। एक दिन बेटा घर आया। मुंह से खून आया। हम अस्पताल ले गए। उसकी हालत नाजुक होती जा रही थी। तीन दिन अस्पताल में रहा। देखते ही देखते उसने हमारे सामने दम तोड़ दिया। 

नशा माफिया के खिलाफ आवाज उठाने पर पिटाई होती है
मेरे दोनों बेटे मेरे सामने दम तोड़ गए। मैं कुछ नहीं कर पाया। मेरे से अभागा बाप और कौन होगा? कॉलोनी में नशा माफिया ने मेरा सब कुछ लूट लिया है। अपने घर के बाहर बैठे राजकुमार ने बताया कि यहां नशा माफिया का राज चलता है। यदि कोई उनके खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे धमकाया जाता है। कोई नहीं मानता है तो उसके साथ मारपीट कर देते हैं। इसलिए यहां लोग कुछ नहीं बोलते। यह इलाका बदनाम हो चुका है। यहां औसतन हर घर में एक विधवा है। जिसने नशे की वजह से अपने पति को खो दिया है। इसलिए इस कॉलोनी को विधवा कॉलोनी भी कहते हैं। 

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शर्म आती है मुझे, बहू की कमाई से रोटी खा रहे हैं
राजकुमार ने बताया कि सारी उम्र कड़ी मेहतन की। घर बनाया। सब ठीक चल रहा था। लेकिन, नशे की वजह से उसका सब कुछ खत्म हो गया। जब भी खाने की थाली मेरे सामने आती है। मैं ग्लानी से भर उठता हूं। सोचता हूं कि मैं कितना बदनसीब हूं। बहू मजदूरी कर घर चला रही है। हम तीन लोग उसकी मजदूरी की कमाई से रोटी खा रहे हैं। इससे ज्यादा तकलीफदेह मेरे लिए क्या हो सकता है? मैंने सारी उम्र किसी का अहसान नहीं लिया। खूब मेहनत की। हक हलाल की रोटी आई। अब उम्र के इस पड़ाव में बहू की मेहनत पर जिंदा हूं। जब भी प्लेट सामने आती है तो शर्म और जिल्लत से भर उठता हूं। लेकिन भूख बड़ी बेरहम है। वह हर बार इस जिल्लत पर भारी पड़ती है। 

नशे ने मेरा स्वाभिमान और खुशियां तक छीन लीं
नशे ने मेरे बेटे ही नहीं छीने, मेरा स्वाभिमान, मेरी खुशियां और मेरा सब कुछ छीन कर ले गए। बस, पता नहीं अब कब तक यह सांस चलेगी। अपनी कॉलोनी का मैं अकेला ऐसा बुजुर्ग नहीं हूं, जो इस हालत में हूं। मेरे जैसे कई बुजुर्ग हैं यहां? पर वे डरते हैं। बोलेंगे नहीं। क्योंकि उन्हें नशा माफिया से डर लगता है। नशा माफिया पर रोक लगाने के लिए यहां कुछ नहीं हुआ। कोई ऐसी संस्था नहीं है, जो युवाओं को यहां नशे की गिरफ्त से दूर रखे। यहां नशे के खिलाफ काम करने की जरूरत है। लेकिन, इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। 

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बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत
युवाओं को जागरूक करने के लिए कुछ नहीं हो रहा है। इनकी शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किशोरों के पास काम नहीं है। वह पढ़े-लिखे भी नहीं हैं। इसलिए आसानी से नशा माफिया की गिरफ्त में आ जाते हैं। जो चले गए, वह तो अब वापस नहीं आएंगे। लेकिन जो बचे हैं, उन्हें बचाया जाना चाहिए। उन्हें नशा माफिया से बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। नहीं तो उन पर भी नशा माफिया की नजर है। वह उन्हें भी अपनी चपेट में ले सकते हैं।

इस इलाके में कोई रहना नहीं चाहता
राजकुमार ने बताया कि इस इलाके में कोई रहना नहीं चाहता। जिसके पास थोड़ी सी भी गुंजाइश है, वह यहां से चला जाता है। यहां वही बाशिंदे रह गए, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। जो बाहर नहीं जा सकते। वह यहां इस विधवा कॉलोनी में रहने के लिए मजबूर हैं।

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