सार
पंजाब विधानसभा चुनाव के बीच दो साध्वियों से दुष्कर्म मामले में जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने तीन हफ्ते की पैरोल की मांग की है। इससे पंजाब की सियासत और गरमा गई है। बाबा की इस पैरोल के कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं।
चंडीगढ़. पंजाब विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे ही नजदीक आ रही है, वैसी ही राज्य का सियासी पारा गर्म होते जा रहा है। इसी बीच तीन आपराधिक मामलों में जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने तीन हफ्ते की पैरोल की मांग की है। इससे पंजाब की सियासत और गरमा गई है। डेरा सिरसा ने हाल ही में विधानसभा चुनाव को लेकर बठिंडा के सलाबतपुरा में बैठक बुला कर अपनी ताकत दिखाई थ
राम रहीम की पैरोल के कई सियासी मायने
अब चुनाव के बीच राम रहीम की पैरोल मांगने के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस बार पंजाब चुनाव में डेरा सच्चा सौदा का मामला भी मुद्दा है। कांग्रेस खासतौर पर नवजोत सिंह सिद्धू बेअदबी के मामले में डेरा को घेरते रहे हैं। अभी हाल में पंजाब पुलिस की ओर से एक चार्जशीट दायर की गई है। इसमें डेरा सच्चा सौदा के संचालक राम रहीम को भी नामजद किया गया है। इस वजह से पंजाब में डेरा समर्थक कांग्रेस के खासे नाराज है। इस बार पंजाब का चुनाव हर पार्टी के लिए अहम बन गया है। एक एक वोट कीमती है। इस वजह से डेरा की पैरोल की अर्जी को अहम माना जा रहा है।
117 सीटों में से 56 पर डेरा का प्रभाव
पंजाब की 117 सीटों में से 56 पर डेरा का प्रभाव है। यहां उम्मीदवारों की जीत-हार में डेरा समर्थकों की बड़ी भूमिका होती है। हरियाणा के दो विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने अहम भूमिका अदा की है। 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में डेरा ने बीजेपी की मदद की। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि भाजपा की जीत में डेरा ने अहम भूमिका निभाई थी।क्या गुरमीत को इस वक्त पैरोल मिलने का लाभ पंजाब में भाजपा को मिल सकता है। इस सवाल पर पंजाब के सीनियर पत्रकार सुखदेव सिंह चीमा ने कहा कहा कि निश्चित ही। इसकी वजह यह है कि गुरमीत जब से जेल मे गया है, तब से उसे पैरोल नहीं मिली। हालांकि एक एक दिन की पैरोल उसे मिली है।
सिर्फ एक बार मां की बीमारी पर आया था बाहर
24 अक्टूबर, 2020 को, राम रहीम को एक दिन के लिए अपनी मां से मिलने के लिए गुड़गांव के एक अस्पताल में पैरोल पर ले जाया गया था। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने 18 मई 2021 को बीमार मां का हवाला देते हुए 21 दिन की पैरोल मांगी थी।10 जून 2021 को पैरोल पर डेरा प्रमुख ने गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में कोरोना का इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। लेकिन लंबी पैरोल उसे नहीं मिली। उसकी कोशिश है कि एक बार लंबी पैरोल मिल जाए।
डेरा का सॉफ्ट कॉर्नर बीजेपी के प्रति है...
जानकारों का कहना है कि गुरमीत को इसलिए पैरोल चाहिए, क्योंकि उसे जब सजा हुई थी, तब उसे यह अहसास नहीं था कि इतना लंबा जेल में जा सकता है। उसके जेल में जाने के बाद डेरा अस्त व्यस्त हो गया है। वह बाहर आकर चीजों को संभालना चाहता है। पंजाब चुनाव में क्योंकि बीजेपी इस बार अपने दम पर चुनाव मैदान में हैं। डेरा का सॉफ्ट कॉर्नर बीजेपी के प्रति रहता है। गुरमीत की कोशिश है कि शायद चुनाव के वक्त उसे पैरोल मिल जाए। जिससे उसकी जो चीजे खराब हो रही है, वह कुछ ठीक हो जाए। दूसरा यदि उसे इस वक्त पैरोल मिल जाती है तो पंजाब में डेरा अनुयायियों पर भी संदेश जाएगा कि उन्हे कहां वोट डालना है।
गुरमीत को पैरोल से बीजेपी को मिल सकता फायदा
डेरा को नजदीक से जानने वाले सिरसा हरियाणा के सीनियर पत्रकार हरबंस सिंह थिंड का मानना है कि यदि इस वक्त गुरमीत को पैरोल मिल जाती है तो निश्चित ही इसका लाभ बीजेपी को मिल सकता है। उन्होंने बताया कि डेरा की एक राजनीतिक विंग है। वह चुनाव में निर्णय लेती है, किस पार्टी को समर्थन देना है। जब तक गुरमीत राम रहीम बाहर थे, तब तक तो शत प्रतिशत वोट इनके इशारे पर डलती थी। क्योंकि तब यह माना जाता था कि वोट डालने का निर्णय गुरमीत राम रहीम का है। अब जब से वह जेल में हैं तो इस बात पर संशय रहता है कि डेरा का शत प्रतिशत वोट उस पार्टी या प्रत्याशी को मिला, जिसे समर्थन दिया गया था। इसलिए पंजाब चुनाव के मद्देनजर गुरमीत के पैरोल मांगने के राजनीतिक मायने माने जा सकते हैं।
इन मामलो में 2017 से है सलाखों के पीछे
बता दें कि डेरा सच्चा प्रमुख्य गुरमीत राम रहीम को दो साध्वियों से दुष्कर्म मामले में 20 साल की सजा मिली हुई है। सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबा दोषी करार दिया था। पत्रकार के हत्या के मामले में वह उम्रकैद की सजा काट रहा है। वह 25 अगस्त, 2017 से राम रहीम सलाखों के पीछे है।
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