सार

वायरल पोस्ट के मुताबिक, “690 से लेकर 699 तक से शुरू होने वाले बारकोड चीनी उत्पादों के हैं। क्योंकि यह संख्या चीन का कंट्री कोड है।” 

नई दिल्ली. लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष के बाद ‘मेड इन चाइना’ उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान किया जा रहा है। इसी बीच, सोशल मीडिया पर एक वायरल पोस्ट वायरल हो रही है, जिसमें बताया गया है कि किसी प्रोडक्टर का बारकोड देखकर कैसे अंतर करें कि वह प्रोडक्ट चीन में बना है या भारत में। 

फैक्ट चेकिंग में आइए जानते हैं कि आखिर सच क्या है? 

वायरल पोस्ट क्या है? 

वायरल पोस्ट के मुताबिक, “690 से लेकर 699 तक से शुरू होने वाले बारकोड चीनी उत्पादों के हैं। क्योंकि यह संख्या चीन का कंट्री कोड है।” पोस्ट में यह भी कहा जा रहा है कि “अगर कोई बारकोड 890 से शुरू होता है तो यह भारत का कंट्री कोड है। ”

क्या दावा किया जा रहा है? 

दावा किया जा रहा है कि इस बारकोड से हिंदुस्तानी मेड इन चाइना चीजों की पहचान कर सकते हैं। यह पोस्ट फेसबुक पर हैशटैग “#boycottchinaproducts” के साथ वायरल हो रही है। सोशल मीडिया पर ये वीडियो काफी शेयर किया जा रहा है। 

 

 

फैक्ट चेक

वायरल पोस्ट भ्रामक है, बारकोड संख्या के पहले तीन अंक उस देश की ओर इशारा नहीं करते, जहां उस प्रोडक्ट का निर्माण हुआ है। यह सही है कि बारकोड के शुरू में लगने वाले अंक (prefixes) 690 से 699 तक चीन को मिले हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जितने प्रोडक्ट्स में ये प्रीफिक्स जुड़े हों, वे सभी चीन में बने हैं।  

कैसे काम करता है बारकोड?

किसी प्रोडक्ट पर काली सफेद रेखाओं की एक पट्टी होती है, जिसे बारकोड कहते हैं। यह दुनिया भर में सभी कंज्यूमर प्रोडक्ट पर होता है। बारकोड्स, प्रोडक्ट के आंकड़े को विजुअल फॉर्म में पेश करने की एक विधि है जिसे मशीन द्वारा पढ़ा जा सके। आम तौर पर इसके ठीक नीचे प्रोडक्ट नंबर भी लिखा होता है। इस यूनीक नंबर को ग्लोबल ट्रेड आइटम नंबर (GTIN) कहते हैं, जिससे किसी प्रोडक्ट की पहचान होती है।

बारकोड के साथ इस्तेमाल होने वाले इस यूनीक नंबर को GS1 नाम की संस्था उत्पादकों को जारी करती है। यह संस्था एक वैश्विक गैर-लाभकारी संगठन है।

क्या दर्शाते हैं बारकोड प्रीफिक्स?

किसी बारकोड संख्या में पहले तीन अंक काफी अहम हैं। वे यह नहीं दर्शाते हैं कि प्रोडक्ट किस देश में निर्मित हुआ है, बल्कि यह दर्शाते हैं कि यह कंपनी किस देश में स्थित है। जब कोई कंपनी GS1 प्रीफिक्स के लिए आवेदन करती है तो वह सिर्फ यह बताती है कि वह कहां स्थित है और प्रीफिक्स प्राप्त करने के बाद वह दुनिया में कहीं भी अपने प्रोडक्ट का निर्माण कर सकती है।

इसका मतलब यह हुआ कि जहां के लिए उसे प्रीफिक्स नंबर मिला है, वहां उसका हेडक्वार्टर या दफ्तर है, लेकिन उसके प्रोडक्ट दूसरे देशों में भी बनाए जा सकते हैं।

GS1 की वेबसाइट के मुताबिक, “GS1 प्रीफिक्स यह नहीं बताते कि प्रोडक्ट विशेष तौर पर किस देश में बना है या किस विशेष कंपनी ने बनाया है; ये प्रोडक्ट दुनिया में कहीं भी बनाए जा सकते हैं।”

यह सही है कि GS1 प्रीफिक्स संख्या 690 से लेकर 699 तक चीन को मिली है और ‘890’ भारत को मिली है, लेकिन इन संख्याओं का यह मतलब नहीं है कि यह प्रोडक्ट इन्हीं देशों में बना है। GS1 कंपनियों को प्रीफिक्स का आवंटन कंट्री कोड के आधार पर करती हैं।

उदाहरण के लिए, अगर भारतीय कंपनी ने चीन से कोई प्रोडक्ट आयात किया और उसे ​रीपैकेज करके बांग्लादेश को निर्यात किया, तो इस प्रोडक्ट पर भारत का बारकोड होगा। ऐसे में एक बांग्लादेशी खरीदार को पता नहीं चलेगा कि दरअसल, इस प्रोडक्ट का निर्माण कहां हुआ है।

ये निकला नतीजा 

बारकोड के प्रीफिक्स से यह नहीं पता चलता है कि कोई प्रोडक्ट कहां बना है। इसलिए किसी प्रोडक्ट के बारकोड के तीन अंकों के आधार पर चाइनीज प्रोडक्ट का बहिष्कार करने का आह्वान भ्रामक है।