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राजद में दूसरे लालू थे रघुवंश, इस वजह से 20 साल के दुश्मन रामा सिंह की नहीं चाहते थे इंट्री
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लालू-रघुवंश की दोस्ती पूरे बिहार में नामी रही, उसी तरह रघुवंश बाबू और रामा सिंह की दुश्मनी भी राजनीतिक हलके में चर्चित थी। 20 साल से दोनों एक-दूसरे के कट्टर विरोधी थे।
1996 से लगातार 5 बार वैशाली सीट पर राजद का झंडा गाड़ने वाले रघुवंश सिंह का विजय रथ भी 2014 में लोजपा के रामा सिंह ने ही रोका था। उसके बाद 2019 में भी उनके खिलाफ ही रामा गोलबंदी में रहे, जबकि उनकी सीट पर लोजपा ने वीणा देवी को उतारा था। इतना ही नहीं वैशाली सीट पर रामा सिंह हमेशा उनके खिलाफ रहे।
20 साल की दुश्मनी और लगातार दो हार के कारण रघुवंश गुस्से में थे, जबकि लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में 2019 के लोकसभा चुनाव और फिर 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी तेजस्वी यादव रामा सिंह को राजद में लाने के लिए प्रयासरत थे। इसी के गुस्से में रघुवंश ने पहले उपाध्यक्ष का पद छोड़ा और फिर पार्टी से इस्तीफा दिया था।
(फाइल फोटो)
रघुवंश प्रसाद सिंह के सभी पार्टियों के साथ अच्छे रिश्ते थे। बीते दिनों जब वह बीमार थे तो पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें फोनकर हालचाल जाना थ। साथ ही जेडीयू चीफ और बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी कई बार आम मंचों से रघुवंश प्रसाद सिंह की तारीफ कर चुके हैं।
(फाइल फोटो)
1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया था।(फाइल फोटो)
राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा आम है कि रघुवंश जदयू में जा सकते थे, पर भाजपा और कांग्रेस भी उन्हें अपने पाले में मिलाने के लिए बेचैन नजर आ रही थी। खबरों के मुताबिक जदयू ने उन्हें विधानपरिषद का सभापति बनने का ऑफर दी थी।
(फाइल फोटो)
(फाइल फोटो)
खबर यह भी थी कि बीजेपी में आने पर उन्हें राज्यसभा सांसद या तत्काल राज्यपाल बनाने भी ऑफर था। बीजेपी आलाकमान लगातार उनके संपर्क में थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी उनकी निकटता जगजाहिर है।(फाइल फोटो)