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रघुवंश पर कभी नहीं लगा भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी का आरोप,फिर भी 3 बार जानी पड़ी थी जेल, मनरेगा की किए थे शुरूआत
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रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री ली थी। साल 1969 से 1974 तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में प्रोफेसर के तौर काम करते रहे। पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद शिक्षक आंदोलन के दौरान जेल गए। साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान भी वह जेल गए।(फाइल फोटो)
साल 1974 के जेपी आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने हिस्सा था, जिसपर तत्कालीन बिहार में कांग्रेस सरकार ने उन्हें जेल में भेज दिया था। साथ ही उन्हें प्रोफेसर पद से बर्खास्त कर दिया था। इस बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा और कर्पूरी ठाकुर, जय प्रकाश नारायण के रास्ते पर चल पड़े थे।(फाइल फोटो)
छात्रों के बीच उस समय कुछ किताबें, एक जोड़ी धोती-कुर्ता और एक गमछे के अलावा संपति के नाम रघुवंश प्रसाद सिंह के पास कुछ नहीं था। रघुवंश प्रसाद के करीबी बताते हैं कि तनख्वाह इतनी भी नहीं थी कि घर पर खर्च भेजने के बाद दोनों समय कायदे से खाना खाया जा सके। (फाइल फोटो)
(फाइल फोटो)
जून 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह सीतामढ़ी की बेलसंड सीट से निर्वाचित हुए। उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा। 1996 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के कहने पर वैशाली से लोकसभा चुनाव लड़ गए और जीतने में कामयाब रहे। इस तरह वह पटना से दिल्ली आ गए। (फाइल फोटो)
केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई। देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने। रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए। अप्रैल 1997 में देवेगौड़ा को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। इंद्र कुमार गुजराल नए प्रधानमंत्री बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया।(फाइल फोटो)
1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया था।(फाइल फोटो)
रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने सियासी जिंदगी में कई ऐसे काम किए, जो मिसाल बन गए, चाहे वह मनरेगा और नरेगा हो या फिर मुल्क में हर जगह सड़क पहुंचाने का काम। जिसके कारण काम की चर्चा हमेशा होती रही।
(फाइल फोटो)