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जिससे घर का रोजगार चलता था उससे भी बाहुबली ने मांगी थी रंगदारी, शर्म से पिता ने कर ली थी खुदकुशी
पटना (Bihar ) । बिहार में सूरजभान सिंह का खौफ एक समय ऐसा था कि उसके क्षेत्र में लोग नाम से भी डरते थे। कभी अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह के शागिर्द रहे इस बाहुबली ने मोकामा से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा में दस्तक दी और नीतीश कुमार का मददगार बना। फिर, सूरजभान बलिया से निर्दलीय सांसद बनने के बाद रामविलास पासवान के साथ मिल गया और एलजेपी में बड़ी पोस्ट हासिल की। सूरजभान के पिता ने सुसाइड कर लिया था। कहते है कि जिस व्यक्ति की वजह से सूरजभान के परिवार का पेट भरता था, बाहुबली बनने के बाद उससे भी रंगदारी मांगने लगा। पिता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने गंगा में छलांग लगाकर जान दे दी। सूरजभान के ऊपर कई चर्चित आरोप दर्ज हैं। इनमें बिहार सरकार के मंत्री की हत्या समेत 30 से ज्यादा मामले हैं। एक मामले में आरोप सिद्ध होने पर कोर्ट ने उम्रकैद की सजा भी दी। बाद में निर्वाचन आयोग ने चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। बाद में पत्नी के जरिए राजनीति करने लगा।
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मोकामा के शंकरबार टोला में सूरजभान का मूल घर है। इनके पिता सरदार गुलजीत सिंह नामक एक व्यवसायी की दुकान पर काम करते थे। कहते हैं कि सूरजभान ने जब आपराध की दुनिया में कदम रखा तो मोकामा में रंगदारी की वसूलने लगे। उस व्यवसायी से भी रंगदारी मांगी जिससे सूरजभान के परिवार का भरण-पोषण होता था।
पिता के समझाने पर भी सूरजभान नहीं माना। मोकामा के कुछ लोग कहते हैं कि इस घटना से पिता इतने दुखी हुए कि गंगा में छलांग लगाकर जान दे दी। इस घटना के कुछ दिन बाद सीआरपीएफ में कार्यरत सूरजभान का सहोदर भाई ने भी आत्महत्या कर ली थी।
सूरजभान का नाम अपराध की दुनिया में तब उभरा जब मोकामा में कुख्यात नाटा सरदार से उनकी अदावत चली। इस अदावत में कई मौतें हुईं। मोकामा बाजार पर वर्चस्व और वसूली को लेकर यह टकराव साल 2000 तक जारी रहा।
उत्तर बिहार के डॉन माने जाने वाले अशोक सम्राट से भी इस बीच सूरजभान का टकराव हुआ। अशोक सम्राट ने सूरजभान पर मोकामा में जानलेवा हमला किया। हमले में पैर में गोली लगने के बावजूद सूरजभान बच गया। लेकिन, उनका चचेरा भाई अजय और पोखरिया निवासी शूटर मनोज मारा गया था।
हाजीपुर में पुलिस मठभेड़ में अशोक सम्राट के मारे जाने के बाद सूरजभान ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार शुरू कर दिया। सूर्यभान के चचेरे भाई मोती सिंह की कुख्यात नागा सिंह ने हत्या कर दी। इसके बाद सूरजभान का मोकामा विधायक दिलीप सिंह से अदावत बढ़ी और उस दौर में अपराधियों राजनीतिकरण में सूरजभान जैसे एक और डॉन का नाम जुड़ गया।
सूरजभान का राजनीतिक करियर ही नीतीश के संकटमोचक के रूप में शुरू हुआ। वह मोकामा से 2000 का विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बन गया। नीतीश कुमार की आठ दिनों की सरकार में उसके नेतृत्व में दबंग निर्दलीय विधायकों का एक मोर्चा बना, जिसने नीतीश को समर्थन दिया पर सरकार नहीं बच पाई थी।
बाहुबली विधायक बनने के बाद सूरजभान, नीतीश का साथ छोड़कर राम विलास पासवान के साथ हो गया। सूरजभान पर कई हत्याओं के आरोप थे। जनवरी 1992 में बेगूसराय के मधुरापुर गांव के रामी सिंह की हत्या हुई थी। इस केस में मुख्य गवाह और यहां तक कि सरकारी वकील रामनरेश शर्मा की भी हत्या हो गई थी। ऐसे में वह अन्य मामलों की तरह इसमें भी बरी हो जाता, लेकिन केस का एक गवाह नहीं टूटा। यह गवाह बेगुसराय के डॉन रह चुके कामदेव सिंह के परिवार से था।
बताते हैं कि सूरजभान के लोग उस गवाह को भी धमकाने गए थे। मगर जब कामदेव सिंह के परिवार को यह पता चला कि सूरजभान ने उनके किसी नातेदार को जान से मारने की धमकी दी है तो उसे उसी के अंदाज में संदेश भिजवाया। सूरजभान पीछे हट गया। आखिर में उसे निचली कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा मिली। इसी मामले में सजायाफ्ता होने के कारण सूरजभान पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगा है।
लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे सूरजभान ने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पत्नी वीणा देवी को आगे किया, जो 2014 के चुनाव में बिहार की मुंगेर सीट से लोजपा के टिकट से सांसद चुनी गई थीं। बाद में भाजपा में चली गई।
मुंगेर से सांसद वीणा देवी ने लोकसभा चुनाव के दौरान एक सभा में कहा था कि उन्होंने अपने पति सूरजभान के सामने दो विकल्प रखा था। पहला या तो वे रामविलास से अलग हो जाएं अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो हम उन्हें तलाक देकर भाजपा में चले जाएंगे।