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पहले बीजेपी अब जेडीयू ने तोड़ा गुप्तेश्वर पांडेय का सपना, पूर्व हवलदार से हार गए बिहार के पूर्व डीजीपी
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बताते चले कि गुप्तेश्वर पांडेय ने 11 साल पहले भी राजनीतिक मैदान में किस्मत आजमाने के लिए 2009 में वीआरएस ले लिया था। उस समय लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चाएं तेज थीं। कहा जाता है कि गुप्तेश्वर पांडेय, बक्सर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे।
राजनीति के जानकार भी बताते हैं कि उस समय खुद गुप्तेश्वर पांडेय को उम्मीद थी कि बक्सर से बीजेपी के तत्कालीन सांसद लालमुनि चौबे को पार्टी दोबारा से प्रत्याशी नहीं बनाएगी। लेकिन, उनके नाम की घोषणा होने से पहले ही बीजेपी नेता लालमुनि चौबे ने बागी रुख अख्तियार कर लिया था। नतीजन बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए उन्हें ही मैदान में उतारने का फैसला किया था। ऐसे में गुप्तेश्वर पांडेय दोबारा से पुलिस सर्विस में वापसी कर गए थे।
दिलचस्प बात यह है दोबारा से इसी बक्सर सीट पर चुनावी मैदान में उतरने के लिए गुप्तेश्वर पांडेय ने डीजीपी का पद छोड़ा है। लेकिन, इस बार जेडीयू में चले गए। ऐसे में उनके बक्सर सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें काफी दिनों से थी। उन्होंने खुद को बक्सर का बेटा और बिहार के सिपाही के तौर पर सोशल मीडिया में प्रचार कर दिया था।
गुप्तेश्वर पांडेय इस बार भी उम्मीद लगाए थे कि गठबंधन कोटे से ये सीट जेडीयू के पाले में आएगी। लेकिन, ऐन वक्त पर ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में बीजेपी ने हवलदार रहे परशुराम चतुर्वेदी को अपना प्रत्याशी घोषित किया। बताते हैं बक्सर सीट परंपरागत तौर पर बीजेपी की रही है। लेकिन, 2015 के चुनाव में आरजेडी ने जीत दर्ज की थी।
टिकट आवंटन के बाद लोगों के फोन कॉल्स पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के पास आने लगे, जिसे लेकर वे परेशान हो गए। आखिर में उन्हें अपने फेसबुक पेज पर लिखना पड़ा कि 'मैं अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं।
गुप्तेश्वर पांडेय आगे लिखते हैं कि मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा। लेकिन, मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें, मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा। कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करे। बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है।'