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गरीब इतने थे कि खाने का भी था संकट,मुंबई में यूं खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी;ऐसी है बिहार 'किंग'महेंद्र की कहानी
पटना (Bihar) । बिहार की धरती से एक से बढ़कर एक शख्यित ने जन्म लिया, जिनकी चर्चा और पहचान पूरे देश में होती है। इनमें से एक हैं किंग महेंद्र प्रसाद सिंह (King Mahendra Prasad Singh), जो 1985 से आज तक राज्यसभा सदस्य के रूप में चुने जाते आ रहे हैं। लेकिन, इनकी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। बता दें कि कभी गरीबी और बेरोजगारी से वो इतने दबे थे कि खाने तक के संकट पैदा हो गए। लेकिन, मुंबई (Mumbai) जाकर ऐसी मेहनत किए कि करोड़ों की कंपनी खड़ी कर लिए। आज वे बिहार के इस लाल की गिनती देश के सबसे अमीर सांसदों में होती है। इतना ही नहीं अपनी पत्नी और लिव इन पाटर्नर उमा देवी के साथ दिल्ली (Delhi) स्थित आधिकारिक आवास में जीवन व्यापन करने के दौरान भी सुर्खियों में रहे। आइये जानते हैं इनकी पूरी कहानी।
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महेंद्र प्रसाद का जन्म साल 1940 में जहानाबाद जिले के गोविंदपुर गांव में हुआ था। उनके पिता वासुदेव सिंह किसान थे। ओकरी हाईस्कूल से ही उन्होंने मैट्रिक और पटना कॉलेज से इकोनॉमिक्स में बीए किया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बचपन के उनके मित्र राजाराम शर्मा ओकरी हाईस्कूल में टीचर बन गए थे। वे उनकी बेरोजगार देखकर शिक्षक बनने की सलाह दिया करते थे। मगर, महेंद्र प्रसाद यह कहते हुए मना कर देते थे कि मर जाना पसंद करूंगा, पर नौकरी नहीं करूंगा। बता दें कि उस समय शिक्षक की नौकरी आसानी से मिल जाती थी और वेतन बहुत कम होता था।
कहा जाता है कि साल 1963-64 में एक साधु ने महेंद्र सिंह को पुड़िया दी और कहा था कि नदी किनारे जाकर सपरिवार खा लेना। सारी दुख-दरिंद्रता मिट जाएगी। उस समय बीए कर बेरोजगारी झेल रहे महेंद्र को पता नहीं क्या सूझा और घर के लोगों को नदी किनारे ले जाकर पुड़िया दे दी और खुद भी खा लिए। इस पुड़िया को खाने के बाद परिवार के दो सदस्यों की मौत हो गई थी।
(फाइल फोटो)
महेंद्र प्रसाद, पिता वासुदेव और छोटे भाई के साथ अस्पताल से छुट्टी हुई तो वो छोटी उम्र में बड़ा सपना लेकर मुंबई चले थे। बताते हैं कि कड़ी मेहनत कर साल 1971 में उन्होंने अपनी खुद के फैक्ट्री की नींव रखी थी। धीरे-धीरे उन्होंने लगभग 4000 करोड़ रुपए की अपनी संपत्ति बना ली।
महेंद्र सिंह जब साल 1980 में घर लौटे तो उनके नाम के आगे किंग जुड़ गया था। वे इस साल पहली बार कांग्रेस की टिकट पर जहानाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद संसद पहुंचे थे। (फाइल फोटो)
महेंद्र प्रसाद को साल 1984 में अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। लेकिन, राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए साल 1985 में वह पहली बार राज्यसभा के लिए नामित हुए और फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।(फाइल फोटो)
बताते हैं कि 1985 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर राज्यसभा पहुंचे महेंद्र प्रसाद की जान बाल-बाल बची थी। हुा यह था कि जब पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच चुका था और उस वक्त कांग्रेस ने महेंद्र प्रसाद को अमृतसर की लोकसभा सीट के लिए एक आब्जर्वर के तौर पर भेजा था। बाटला में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक सभा थी और उनकी कार में धमाका हो गया। लेकिन, वह बाल-बाल बच गए थे। (फाइल फोटो)
बताते चले कि मैप्रा लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड और अरिस्टो फार्मास्यूटिकल कंपनी के मालिक किंग महेंद्र के पास 4000 हजार करोड़ की चल और 2910 करोड़ की अचल संपत्ति है। उन्होंने 1971 में अरिस्टो फार्मास्यूटिकल शुरू की थी, जो देश की 20 टॉप टेन दवा कंपनियों में शामिल है।