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10 में ग्रेजुएशन 22 की उम्र में बने देश के सबसे यंग प्रोफेसर, तथागत की प्रतिभा से दुनिया भी हो गई थी हैरान
पटना (Bihar) । यकीन नहीं करेंगे। लेकिन ऐसा ही है। तथागत अवतार तुलसी ने कड़ी मेहनत और प्रतिभा की बदौलत 9 साल में हाईस्कूल, 12 साल में नेट और 22 की उम्र में देश के सबसे यंग प्रोफेसर बनकर दुनिया के लोगों को भी हैरान कर दिए थे। उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है। जिनके बचपन से लेकर अब तक की पूरी कहानी आज हम आपको बता रहे हैं। हालांकि इस इन दिनों वह कुछ संकट में हैं। वे पीएम मोदी से लेकर राष्ट्रपति रामनाथ को कोविंद तक इंसाफ की गुहार लगाए हैं। दरअसल क्लाइमेट के विपरीत असर के कारण आईआईटी मुंबई से दिल्ली तबादला चाहते थे। लेकिन, प्रबंधन ने एक्ट का हवाला देते हुए तबादले से भी इंकार कर दिया और फिर इन्हें नौकरी से टर्मिनेट कर दिया।
(बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावी हलचल के बीच हम अपने पाठकों को 'बिहार के लाल' सीरीज में कई हस्तियों से रूबरू करा रहे हैं। इस सीरीज में राजनीति से अलग राज्य की उन हस्तियों के संघर्ष और उपलब्धि के बारे में जानकारी दी जाएगी जिन्होंने न सिर्फ बिहार बल्कि देश दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। ये हस्तियां खेल, सिनेमा, कारोबार, किसानी और ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी होंगी। बिहार के चुनाव और उसके आसपास की खबरों के लिए हमें पढ़ते रहें।)
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परिवार के लोग बताते हैं कि 6 साल की उम्र में ही तथागत अवतार तुलसी गणित के बड़े सवाल बिना पेन और पेंसिल के ही बड़ी आसानी से हल कर लेता था। साल 1994 को जब मीडिया की सुर्खियों में आया तो तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने अपने आवास पर निमंत्रित किया और पुरस्कार राशि और कंप्यूटर देने की घोषणा की। इन सब का अवतार तुलसी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
9 सितम्बर 1993 को तथागत अवतार तुलसी के 16वें जन्मदिन पर उनके पिता पिताजी तुलसी नारायण ने प्रोफेसर स्टीफेन हाकिंग का प्रसिद्ध किताब गिफ्ट में दिए थे। अवतार तुलसी के मुताबिक ये किताब देने के पीछे उनके पिताजी का कारण ये था कि मैं बार-बार उनसे ब्रम्हांड, पृथ्वी, तारे के बारे में प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें परेशान करता रहता था। हालांकि तीन ये किताब तीन दिन में पढ़ डाली। इससे वह ब्लैक होल्स ,आइंस्टीन थ्योरी ,क्वांटम मैकेनिक्स के बारे में जानने लगे। वे हमेशा वैज्ञानिक प्रश्नों के बारे में सोचते।
जब तथागत अवतार तुलसी आठ साल के थे तो नियम के अनुसार 6 क्लास की परीक्षा देने की इजाजत नहीं थी। लेकिन, काफी अनुरोध पर स्कूल प्रशासन ने परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी। स्कूल के वार्षिकोत्सव में के दिन परिणाम सुनाया गया, जिसमें उनका नाम नहीं था। लेकिन, बाद में स्कूल ऑथिरिटी ने बताया कि तथागत अवतार तुलसी ने न सिर्फ क्लास में टॉप किया है बल्कि पूरे स्कूल में टॉप किया है। मगर, उसे प्रोमोट नहीं कर सकते, क्योंकि वह अभी अंडर एज है।
तथागत अवतार तुलसी सातवीं क्लास पढ़ाई नहीं करना चाहते थे। इसलिए वह सेल्फ स्टडी के बल पर सेल्फ स्टडी के बल पर सातवीं, आठवीं नौंवी और हाई स्कूल के कोर्स की पढ़ाई कर लिए थे। उनके पिता ने 10वीं क्लास की परीक्षा बेटे को दिलाने के लिए सीबीएसई से बोर्ड से मांगी। लेकिन, इजाजत नहीं मिली। हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना के बाद यह मौका मिल गया।
तथागत अवतार तुलसी को 28 अप्रैल 1998 को पटना विश्वविद्यालय के एक ऑफिसियल इंटरव्यू के बाद डायरेक्ट बीएससी की परीक्षा देने की इजाजत मिल गई। लेकिन, वह तीनों साल की परीक्षा एक साथ देना चाहते थे। इसके लिए पटना उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा।
कोर्ट ने योग्यता को देखते हुए ये नियम तोडा और वह 10 वर्ष की अवस्था में ग्रेजुएट की परीक्षा पास कर सके। फिर जनवरी 1999 में एमएसी में एडमिशन लिए। इस बार बिहार के राज्यपाल श्री बीएम लाल ने एक साथ परीक्षा देने की अनुमति प्रदान किया, जिससे पहली बार कोई लड़का 11 साल की उम्र में परीक्षा पास किया।
एमएससी करने के तुरंत बाद तथागत अवतार तुलसी का लक्ष्य नेट (National Eligibility Test) क्वालीफाई करने का था। यहां जूनियर फेलोशिप एंड लेक्चररशिप के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 19 वर्ष थी। लेकिन, उनकी उम्र 12 वर्ष ही थी। हालांकि थोड़ी दिक्कत के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तरफ से परीक्षा में बैठने की इजाजत मिल गई। लेकिन ये इजाजत National Physical Laboratory (NPL). के इंटरव्यू कमेटी की पॉजिटिव रिकमेन्डेशन पर अधारित थी। इसके चलते उन्होंने दिसम्बर 2000 में परीक्षा दी, जिसका परिणाम मई 2001 में निकला और इस तरह पहली बार कोई 12 साल का लड़का राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा पास की थी और छा गया।
पीएचडी करने के तुरंत बाद यानि वर्ष 2010 में ही ये IIT मुंबई के प्रोफेसर बन गए थे। लेकिन, वहां का क्लाइमेट इनपर विपरीत असर कर रहा था जिस वजह से ये बीमार रहने लगे। बीमार रहने के दौरान 4 साल तक ये लगातार छुट्टी पर रहे और फिर पांचवें साल इन्होंने प्रबंधन को छुट्टी के लिए आवेदन दिया, लेकिन इसबार छुट्टी की मंजूरी नहीं मिली। इसके बाद तथागत ने संस्थान के निदेशक को IIT दिल्ली में तबादला करने के लिए आवेदन दिया ताकि वहां पढ़ाने के अतिरिक्त वे रिसर्च भी कर सकें। लेकिन, प्रबंधन ने एक्ट का हवाला देते हुए तबादले से भी इंकार कर दिया और फिर इन्हें नौकरी से टर्मिनेट कर दिया।