अंडे बेंचे, बार-बार परीक्षा में हुआ फेल, 5वें प्रयास में अफसर बना था बिहार का ये लाल
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मनोज कुमार जब वह स्कूल जाते थे तो उनके घर पर यही बताया जाता था कि पैसा कमाना शिक्षित होने से ज्यादा जरूरी है। इसलिए उन्हें पैसा कमाने पर ध्यान देना चाहिए न कि बहुत पढ़ने पर। इसी सोच के साथ मनोज 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर 1996 में नौकरी की तलाश में दिल्ली पहुंच गए। आम गरीब बिहारी परिवारों में बच्चों के जवान होने पर उम्मीद की जाती है कि वो भी घर चलाने में मदद करेंगे। (फाइल फोटो)
गांव से बड़े शहर में रहने का बदलाव मनोज के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था। नौकरी पाने में असफल रहने पर उनका हौसला नहीं टूटा। उन्होंने चुनौती का सामना किया और अंडे और सब्जी की दुकान खोलने का फैसला किया।(फाइल फोटो)
मनोज ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राशन पहुंचाने का काम भी शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात वहां के एक छात्र उदय कुमार से हुई, जो सुपौल के ही थे। दोस्ती होने पर उदय कुमार ने मनोज को पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी। मनोज को लगा कि डिग्री हासिल करने से मुझे एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी। इसके बाद उन्होंने अरबिंदो कॉलेज (इवनिंग) में एडमिशन ले लिया और अंडा-सब्जियां बेचते हुए 2000 में ग्रैजुएशन पूरा किया।(फाइल फोटो)
मनोज बताते हैं कि उदय ने सुझाव दिया कि वह यूपीएससी की परीक्षा दें। लेकिन, उनके पास वित्तीय संसाधन नहीं थे। तभी, 2001 में एक दूसरे दोस्त ने पटना विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में पीएचडी प्रोफेसर राम बिहारी प्रसाद सिंह से उनकी मुलाकात करा दी। मनोज ने भूगोल विषय को यूपीएससी के लिए वैकल्पिक के रूप में लिया और आगे की तैयारी के लिए पटना चले आए।(फाइल फोटो)
मनोज ने पटना में तीन साल तैयारी की और 2005 में पहली बार यूपीएससी के लिए एग्जाम दिया। इस दौरान उन्होंने स्कूल के छात्रों का निजी ट्यूशन लिया, ताकि वे खुद का खर्चा निकाल सकें।(प्रतीकात्मक फोटो)
मनोज दुर्भाग्यवश, पहली बार की परीक्षा को पास नहीं कर सके, और बिहार से वापस दिल्ली चले गए। लेकिन, तैयारी बंद नहीं किए। नतीजा रहा कि 2010 में पांचवें प्रयास में वह यूपीएससी परीक्षा पास कर लिए। वह अपनी सफलता का श्रेय उनके दोस्तों द्वारा समय-समय पर देते हैं, जो सही गाइड किए। (फाइल फोटो)