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बिहार का एक गांव जहां 250 सालों से नहीं मनाई होली, रंग लगाते ही आता है बड़ा संकट, जानिए आखिर क्यों होता है ऐसा
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मुंगेर (Munger) जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर बसे असरगंज के सजुआ गांव में ढाई सौ साल से होली नहीं मनाई जाती। इस गांव को सती स्थान नाम से भी जानते हैं। होली का त्योहार जैसे ही नजदीक आता है घरों में पकवान नहीं बनाया जाता। कहा जाता है कि अगर किसी ने होली मनाया तो सती का गुस्सा सहना पड़ेगा।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि इस गांव में करीब 250 साल पहले सती नाम की एक महिला के पति की होलिका दहन के दिन मौत हो गई थी। पति के निधन के बाद सती अपने पति के साथ जल कर सती होने की जिद करने लगी। लेकिन गांव वालों ने इसके लिए मना कर दिया। जब वह जिद छोड़ने को राजी न हुई तो उसे घर में बंद कर गांव वाले पति का अंतिम संस्कार करने श्मशान जाने लगे।
इस बीच एक वाकये ने सभी को चौंका दिया। कहा जाता है कि गांव के लोग पति को कंधे पर लेकर जैसे ही श्मशान की ओर जाते शव नीचे गिर जाता। जब कई बार ऐसा हुआ तो गांव वालों ने सती को भी साथ ले जाने का फैसला किया। जब सती गांव वालों के साथ श्मशान जाने लगी तो फिर शव एक बार फिर नहीं गिरा।
गांव के लोग बताते हैं कि इसके बाद गांव वाले चले आते हैं लेकिन जब करीब 100 साल बाद अंतिम संस्कार वाली जगह खुदाई की जाती है तो वहां दो मूर्तियां मिलती है। गांव वालों ने इसे सती की ही मूर्ति मानकर एक मंदिर बना दिया। यह मंदिर सती स्थान के नाम से जाना जाता है।
श्मशान घाट पहुंचने पर अंतिम संस्कार के लिए चिता तैयार की गई। जब सती पति के साथ चिता पर बैठी तो उसकी कानी उंगली यानी कनिष्ठ उंगली से चिंगारी निकलती है और चिता में खुद ब खुद आग लग जाती है। यह देख गांव वाले आश्चर्यचकित होते हैं और पति के साथ सती भी जलकर राख हो जाती है।
इस मंदिर में गांव के लोग ही नहीं दूर-दराज से भी लोग अपने लंबी उम्र के लिए पूजा करने पहुंचते हैं। तब से लेकर आज तक इस गांव में होली नहीं मनाई जाती। गांव वाले बताते हैं कि अगर कोई होली खेलता है और अपने घर मे होली के दिन पुआ, पूड़ी बनाता है तो उसके परिवार पर कोई न कोई संकट आ ही जाता है। कहीं घर में आग लग जाती है तो कहीं किसी को कोई बीमारी हो जाती है। यह सब देख कर ग्रामीणों ने होली मनाना बंद कर दिया है और गांव का नाम भी सतीस्थान रख दिया है।