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अपने जीवन पर आधारित फिल्म बनाकर इस डायरेक्टर ने की थी सबसे बड़ी गलती, बनी डिप्रेशन और फिर मौत की वजह
एंटरटेनमेंट डेस्क. 9 जुलाई को वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण उर्फ गुरु दत्त की 97वीं जन्मतिथि है। सिनेमा के स्कूल माने जाने वाले गुरु दत्त ने 'प्यासा', 'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'बाजी' और 'साहिब बीबी और गुलाम' जैसी कई शानदार फिल्में दी थीं। मात्र 39 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए इस कलाकार की असल कहानी भी इसकी फिल्मों की तरह त्रासद ही थी। इस खबर में हम आपको बता रहे हैं गुरु दत्त के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...
| Published : Jul 09 2022, 07:34 AM IST / Updated: Jul 09 2022, 07:39 AM IST
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1. सत्रह साल की उम्र में डांस सीखने पहुंचे अल्मोड़ा
9 जुलाई 1925 को कर्नाटक में जन्मे वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण चार भइयों और एक बहन में सबसे बड़े थे। परिवार ने बचपन में ही उनका नाम बदलकर गुरु दत्त पादुकोण कर दिया था जिसे बाद में उन्होंने सिर्फ गुरु दत्त कर लिया। पिता हेडमास्टर और बैंकर थे और मां टीचर व लेखक थी। 17 साल की उम्र में गुरु दत्त डांस और कोरियोग्राफी सीखने के लिए अल्मोड़ा स्थित उदय शंकर स्कूल पहुंचे पर दो साल बाद ही उन्हें वहां से निकाल दिया गया। वे डांस कंपनी की मालिक से ही प्यार कर बैठे थे। इसके बाद वो कलकत्ता गए और वहां टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी जॉइन कर ली।
2. प्रभात फिल्म कंपनी के साथ साइन किया 3 साल का कॉन्ट्रैक्ट
गुरु दत्त जल्द ही कलकत्ता वाली नौकरी को भी छोड़कर मां-बाप के पास बम्बई आ पहुंचे। यहां आकर उन्होंने पुणे स्थित प्रभात फिल्म कंपनी के साथ 3 साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया। यहीं उन्हें अपने जीवन के दो जिगरी यार देव आनंद और रहमान मिले। 1945 में गुरु दत्त ने एक छोटे से रोल से डेब्यू किया। 1946 में उन्होंने देव आनंद की एक्टिंग डेब्यू फिल्म 'हम एक हैं' में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर और डांस कोरियोग्रफर काम किया। 1947 में जब उनका तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया तो उन्होंने बतौर फ्रीलांस असिस्टेंट के तौर पर काम किया। इस जॉब से भी उन्हें अफेयर के चलते निकाल दिया गया। अगले 10 महीने तक गुरु दत्त ने एक अखबार के लिए शॉर्ट स्टोरीज लिखीं।
3. देव आनंद ने दिया डायरेक्टोरियल डेब्यू का मौका
1947 में गुरु दत्त वापस मुंबई लौटे और अलग-अलग बैनरों के साथ काम करने लगे। इसी बीच उन्हें देव आनंद ने अपने नए बैनर नवकेतन फिल्मस के लिए एक फिल्म डायरेक्ट करने का ऑफर दिया। दोनों ने एक एग्रीमेंट साइन किया जिसके मुताबिक अगर गुरु दत्त कोई फिल्म बनाएंगे तो उसमें देव आनंद हीरो होंगे और अगर देव आनंद कोई फिल्म प्रोड्यूस करेंगे तो उसमें गुरु दत्त डायरेक्टर होंगे। इस एंग्रीमेंट के मुताबिक दोनों ने 1951 में 'बाजी' और 1952 में 'जाल' जैसी हिट फिल्में दीं। हालांकि, बाद में देव आनंद के बड़े भाई चेतन आनंद के साथ क्रिएटिव डिफरेंसेज हो जाने के बाद दोनों ने आगे साथ काम नहीं किया।
4. कई फिल्मों में एक ही टीम के साथ किया काम
बतौर एक्टर-डायरेक्टर 'बाज', 'आर पार' और 'मिस्टर एंड मिसेज 55' जैसी फिल्में देने के बाद गुरु दत्त ने अपनी दूसरी फिल्म 'सीआईडी' प्रोड्यूस की जिसमें देव आनंद लीड रोल में थे। गुरुदत्त ने बतौर डायरेक्टर, राइटर, एक्टर, प्रोड्यूसर और कोरियोग्राफर भी फिल्म इंडस्ट्री में अपना योगदान दिया। वे अपनी ज्यादतर फिल्मों में एक ही टीम के साथ काम करने पर यकीन रखते थे। उनकी इस टीम में वे खुद डायरेक्टर, जॉनी वॉकर (एक्टर-कॉमेडियन), वहीदा रहमान (एक्ट्रेस), वीके मृर्ति (सिनेमेटोग्राफर), अबरार अल्वी (राइटर-डायरेक्टर) और राज खोसला (राइटर) शामिल थे। इस टीम के साथ उन्होंने 'प्यासा', 'कागज के फूल', 'चौदहवीं का चांद' और 'साहिब बीवी और गुलाम' जैसी फिल्में कीं।
5. दोस्ती ऐसी की याद रखकर निभाया वादा
गुरुदत्त और उनके दोस्त एक्टर रहमान जब पूना के प्रभात स्टूडियो में संघर्ष कर रहे थे तब दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया। यह वचन था कि फिल्मों में जिसको भी पहला अवसर मिलेगा वह दूसरे को भी एक अवसर दिलाएगा। उनकी मित्रता इतनी गहरी थी कि गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में रहमान को महत्वपूर्ण भूमिकाएं दीं। 'साहब बीवी और गुलाम' में रहमान ने अय्याश और ठरकी जमींदार की भूमिका निभाई और 'प्यासा' में एक अमीर प्रकाशक की जिसकी शादी शायर की प्रेमिका से हुई थी।
6. युवा कलाकारों को देते थे मौका
कुमकुम और जॉनी वॉकर दोनों को ही गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों से इंट्रोड्यूज किया था। जहां जॉनी वॉकर ने 1951 में 'बाजी' से डेब्यू किया वहीं कुमकुम ने 1954 में 'आर पार' से अपने कॅरिअर की शुरुआत की। फिल्म 'गांधी' के लिए ऑस्कर जीतने वाली पहली भारतीय भानु अथैया को भी फिल्मों में काम करने का पहला मौका गुरु दत्त के साथ 1956 में रिलीज हुई फिल्म 'सीआईडी' के जरिए मिला था।
7. वहीदा से अधूरा रह गया प्यार
गुरु दत्त ही वो शख्स थे जिन्होंने 1956 में वहीदा रहमान को देव आनंद स्टारर 'सीआईडी' के जरिए बॉलीवुड में डेब्यू करने का मौका दिया था। यह उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया जैसे 'प्यासा','चौदहवीं का चांद' और 'साहिब बीबी और गुलाम'। जैसे - जैसे उनकी फिल्में रिलीज होती रहीं, वैसे - वैसे उनका प्यार भी परवान चढ़ता गया। हालांकि, ये प्यार कभी मुक्कमल ना हो सका। गुरु दत्त पहले से ही शादीशुदा थे और वहीदा के चलते उनके और उनकी पत्नी (गीता दत्त) के बीच दूरियां आने लगी थीं। वहीदा को लेकर दोनों के बीच अक्सर झगड़ा होता था। 1957 में गुरुदत्त और गीता की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग रहने लगे। वहीं वहीदा के परिवार वाले भी उनके और गुरुदत्त के एक होने के खिलाफ थे। ऐसे में दोनों कभी एक न हो सके।
8. 'कागज के फूल' की वजह से उस दौर में हुआ था 17 करोड़ का नुकसान
1959 में गुरु दत्त और वहीदा रहमान की साथ फिल्म 'कागज के फूल' रिलीज हुई। इसे गुरु दत्त ने खुद डायरेक्ट किया। फिल्म की कहानी एक ऐसे निर्देशक की थी जो अपनी ही फिल्म की एक्ट्रेस से प्यार कर बैठता है। माना जाता है कि 'कागज के फूल' वहीदा रहमान और गुरुदत्त की अपनी प्रेम कहानी थी। भले ही आज इस फिल्म को क्लासिक कल्ट की श्रेणी में गिना जाता है पर रिलीज के वक्त यह फिल्म बहुत बड़ी डिजास्टर थी। हालांकि फिल्म को बेस्ट सिनेमेटोग्राफी और बेस्ट आर्ट डायरेक्शन का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था पर इस फिल्म के चलते गुरु दत्त को उस दौर में 17 करोड़ का नुकसान भी हुआ था। इस फिल्म के बाद गुरु दत्त ने अपने बैनर तले बनने वाली किसी भी अन्य फिल्म को डायरेक्ट नहीं किया। इसी फिल्म पर काम करते वक्त गुरु दत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त के बीच रिश्ते खराब हो गए थे और इस फिल्म के फ्लॉप होने के बाद गुरु दत्त डिप्रेशन में चले गए।
9. एसडी बर्मन ने कहा था - 'अपनी कहानी पर फिल्म मत बनाओ'
इस फिल्म का म्यूजिक सचिन देव बर्मन साहब ने कंपोज किया था। कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने गुरु दत्त से एक ऐसी फिल्म बनाने के लिए मना किया था जो उनकी ही कहानी को परदे पर बयां कर रही है। पर जब गुरुदत्त नहीं माने तो एसडी बर्मन ने उनसे कहा कि यह गुरुदत्त के साथ उनकी आखिरी फिल्म होगी। फिल्म का गाना 'वक्त ने किया क्या हसीन सितम' एवरग्रीन हिट रहा।
10. कमर्शियली सक्सेस तो मिली पर पर्सनली डिप्रेशन में चले गए
'कागज के फूल' के बाद भी गुरु दत्त ने वहीदा रहमान के साथ काम करना जारी रखा। दोनों की 1960 में रिलीज हुई फिल्म 'चौदहवीं का चांद' उस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली चौथी फिल्म बनी। इस फिल्म के जरिए गुरु दत्त ने 'कागज के फूल' से हुए नुकसान की भरपाई की। 1962 में रिलीज हुई फिल्म 'साहब, बीवी और गुलाम' भी सुपर डुपर हिट रही। इस फिल्म ने तो उस साल बेस्ट फिल्म कैटेगरी में नेशनल और फिल्मफेयर अवॉर्ड दोनों ही जीते। हालांकि, 'कागज के फूल' के बाद न तो गुरु दत्त ने कभी दोबारा किसी फिल्म का निर्देशन किया और न ही उनके टूटे हुए घर के हालात सुधरे। वे कई सालों तक पत्नी गीता से अलग रहे। आखिरकार 10 अक्टूबर 1964 की सुबह वे अपने किराए के अपार्टमेंट में मृत पाए गए। कुछ ने माना कि यह सुसाइड है क्योंकि वे इससे पहले भी दो बार खुद को मारने की कोशिश कर चुके थे। वहीं कुछ का मानना था कि शराब के साथ जरूरत से ज्यादा नींद की गोलियां खा लेने की वजह से उनकी मौत हुई। आज भले ही गुरु दत्त को क्लासिक डायरेक्टर और उनकी फिल्मों को क्लासिक कल्ट माना जाता है पर अगर ऐसा उसी दौर में हुआ होता तो महज 39 वर्ष की उम्र में गुरु दत्त हमारा साथ नहीं छोड़ते।
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