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पिछली बैंच पर बैठने वाला नालायक लड़का बना IPS अफसर, गांववाले तो क्या स्कूल के टीचर भी रह गए हैरान
| Published : Mar 31 2020, 12:53 PM IST / Updated: Mar 31 2020, 01:13 PM IST
पिछली बैंच पर बैठने वाला नालायक लड़का बना IPS अफसर, गांववाले तो क्या स्कूल के टीचर भी रह गए हैरान
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भारतीय पुलिस सेवा में शामिल होने के लिए अत्यधिक प्रतिष्ठित यूपीएससी परीक्षा को क्रैक करने वाले मिथुन कुमार एक साधारण छात्र थे। उनका सपना हमेशा अपने परिवार के लिए कुछ कर गुजरना था। 2016 बैच के आईपीएस ऑफिसर मिथुन कुमार की कहानी प्रेरणा से भरी है।
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वो बताते हैं कि "अपने बचपन के दिनों में, मैं एक औसत छात्र था, ठेठ बैकबेंचर, जिसे कक्षा के अन्य छात्र और टीचर नजरअंदाज कर देते थे। वहां शायद ही कोई था जो मुझ पर विश्वास करता था; अब जब मैं वापस देखता हूं तो उन सबके मुझे नकारा समझने को आशीर्वाद मानता हूं।
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मेरा मानना है कि सिविल सर्विसेज एग्जाम क्लियर करना या फिर जीवन में किसी और चीज मुश्किल चीज को हासिल करने में कोई असाधारण क्षमता या कौशल का इस्तेमाल नहीं होता, बस खुद पर विश्वास बनाए रखना चाहिए।
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स्नातक होने के बाद, सबसे बड़े बेटे होने के नाते, मुझे अपने माता-पिता की इच्छा के अनुरूप नौकरी करनी पड़ी। मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम कर रहा था, तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं इसके लिए पैदा नहीं हुआ हूं मुझे और कुछ करना है। तीन साल तक नौकरी करने के बाद मैंने इसे अलविदा करने का निर्णय लिया। तबतक मेरे छोटे भाई ने घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधे ले ली थी और इससे मुझे यह फैसला लेने में काफी सहूलियत हुई।
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मेरे पिता का भी सपना था कि मैं सिविल सेवक बनूं। मैं खुद भी हमेशा एक पुलिस अधिकारी बनना चाहता था। जब भी मैंने सड़क पर एक पुलिसकर्मी देखा, तो मेरे अंदर एक अलग तरह की चमक उत्पन्न हो जाती थी। जब मैंने चार बार फेल होने के बाद साल 2016 में 130 रैंक के साथ परीक्षा क्वालीफाई कर लिया, तो कइयों ने मुझसे पूछा कि प्रशासनिक सेवा क्यों नहीं?
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मेरे पास कोई जवाब नहीं था; मैं उन्हें समझा नहीं सकता कि इस वर्दी से मुझे प्यार है। मैंने हमेशा खुद को एक पुलिस ऑफिसर के रूप में सपने देखे।
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मैं यूपीएससी में विभिन्न चरणों में चार बार विफल रहा, हर बार एक अलग अनुभव और एक नया सबक सीखने को मिला। यह कठिन था, लेकिन यह मुझे एक व्यक्ति के रूप में ढाला। मैं सभी स्टूडेंट्स से कहूंगा कि, "आगे बढ़ने या हार मानने के लिए हमारा दिमाग तय करता है, आप वास्तव में नहीं जानते कि आप कब मंजिल तक पहुंच सकते हैं बशर्ते आपको अपनी कोशिश को जारी रखना है।"