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बाप रे बाप...400 अफसरों संग मॉर्निंग वॉक पर निकलती है ये IAS अफसर, डरते नहीं सैल्यूट करते हैं लोग
नई दिल्ली. आईएएस ऑफिसर डॉ प्रियंका शुक्ला (IAS Priyanka Shukla) महिला सशक्तिकरण की अनोखी मिसाल हैं। 2009 बैच की इस प्रशासनिक ऑफिसर की कहानी युवा पीढ़ियों के लिए एक मिसाल है। हरिद्वार में जन्मीं और पली-बढ़ी प्रियंका के पिता की चाहत थी कि डीएम के नेमप्लेट पर उनकी बेटी का नाम हो। पिता के सपने को पूरा करने के लिए उनकी दिलचस्पी भी इस ओर हुई लेकिन प्रोफेशनल डिग्री की वजह से उन्हें मेडिकल फील्ड चुनना पड़ा। लेकिन फिर उनकी जिन्दगी में एक ऐसी घटना घटी जिसने उन्हें देश का एक युवा आईएएस बना दिया। IAS सक्सेज स्टोरी में हम आपको एक डॉक्टर से अफसर बनने की उनकी इंस्पारिंग स्टोरी सुना रहे हैं।
| Published : Apr 14 2020, 11:27 AM IST / Updated: Apr 14 2020, 12:07 PM IST
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लखनऊ के किंग्स जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इंटर्नशिप करना शुरू किया। इंटर्नशिप के दौरान उन्हें पास के एक स्लम में इलाज़ के लिए जाना होता था। यहाँ दौरान उनकी मुलाकात एक महिला से हुई, जो इलाज़ के लिए यहां आया करती थी।
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इलाज़ के दौरान प्रियंका उसे साफ़-सफाई के लिए हमेशा सावधान रहने की हिदायत दिया करती थी। एक दिन जाँच के दौरान प्रियंका ने उसे गंदे पानी का सेवन करते देखा। हिदायत के बावजूद उसे ऐसा करते देख प्रियंका को गुस्सा आ गया और वह उस महिला पर भड़क उठीं। बदले में महिला कि जो प्रतिक्रिया थी उसने प्रियंका की आंखें खोल दी। महिला गरीबी और सुविधाओं के अभाव में उसी पानी का सेवन करने को मजबूर थी
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बस इसी बात से प्रेरित होकर प्रियंका ने प्रशासनिक ऑफिसर बनने का तय कर लिया ताकि समाज में लोगों की दशा और दिशा बदल सके। समाजसेवा की प्रेरणा से ओतप्रोत प्रियंका यूपीएससी की तैयारी में दिलोजान से जुट गईं और साल 2008 में वह इसमें सफलता भी पाईं। जशपुर के जिला कलेक्टर के रूप में उन्होंने कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की।
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बस इसी बात से प्रेरित होकर प्रियंका ने प्रशासनिक ऑफिसर बनने का तय कर लिया ताकि समाज में लोगों की दशा और दिशा बदल सके। समाजसेवा की प्रेरणा से ओतप्रोत प्रियंका यूपीएससी की तैयारी में दिलोजान से जुट गईं और साल 2008 में वह इसमें सफलता भी पाईं। जशपुर के जिला कलेक्टर के रूप में उन्होंने कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की।
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जुलाई 2016 में उन्होंने उच्च माध्यमिक और उच्च विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा फैलाने के लिए अपने मिशन संकल्प के तहत 'यशस्वी जशपुर' नामक एक पहल की शुरूआत की। ट्रस्ट जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) द्वारा जमा किए गये फंड की सहायता से उन्होंने स्कूलों में व्यापक स्तर पर कई कार्यक्रम करवाएं, जिससे छात्रों के बीच जागरूकता उत्पन्न हुई और अच्छे रिजल्ट भी आए।
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इसके अलावा उन्होंने पिछले साल एक और उल्लेखनीय शुरुआत की। पिछले अगस्त, स्थानीय प्रशासन ने एक स्व-सहायता समूह की स्थापना की जिसमें मानव तस्करी के पीड़ितों को शामिल किया गया था, जिन्हें जशपुर जिले के कंसबेल शहर में अपनी बेकरी खोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया। बेकरी को 'बेटी जिंदाबाद' नाम दिया गया और इसे 20 लड़कियों ने शुरू किया है। बच्चे अफसर शुक्ला से काफी प्रभावित रहते हैं। जब वो निकलती हैं तो लोग डरते नहीं बल्कि स्माइल के साथ सैल्यूट करते हैं।
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ब्यूरोक्रेसी में एक बात कही जाती है- "अगर कोई आईएएस इनोवेशन नहीं करता...कुछ नया नहीं करता....लीक पर चल रहे सिस्टम को बदलने की कोशिश नहीं करता तो उसमें और किसी बाबू (क्लर्क) में कोई फर्क नहीं है।" मगर प्रियंका शुक्ला देश की उन चुनिंदा आईएएस अफसरों में शुमार हैं, जो अपने इनोवेशन के लिए जानीं जातीं हैं।
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इस वजह से अब तक दो-दो बार राष्ट्रपति से लेकर कई पुरस्कार हासिल कर चुकीं हैं। जशपुर-एक प्रण अभियान के साथ इस अफसर ने लोगों को मतदान के प्रति जागरूक किया। उन्होंने मोटरसाइकिल पर रैली निकाली और लोगों से वोट डालने की अपील की।
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डॉ. प्रियंका शुक्ला ने जब जमपुरनगर में कार्य शुरू किया तो नई पहल शुरु की है। अपने साथ मॉर्निंग वॉक में वे जिले के 400 अफसरों-कर्मचारियों को ले जाती थीं। वे ऐसा पूरे स्टाफ को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए कर रही हैं। हालांकि, शनिवार को करीब 6 किलोमीटर तक पैदल चलने के दौरान स्टाफ के कई लोगों का दम फूल गया। दरअसल आईएएस बनने के पहले डॉक्टर रह चुकीं प्रियंका शुक्ला ने कैंप लगवाकर स्टाफ के लोगों का मेडिकल चेकअप कराया था।
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प्रियंका सच में एक जुझारू ऑफिसर हैं, जो सभी के सशक्तिकरण में विश्वास रखती हैं। एक डॉक्टर के साथ-साथ एक सफल प्रशासनिक ऑफिसर के रूप में उनकी उपिस्थिति वाकई में समाज को मजबूती प्रदान कर रही है।