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जंगलों में पला बढ़ा आदिवासी लड़का बना IAS अफसर, बिना कोचिंग अंग्रेजी में पेपर दे पास की परीक्षा

रायपुर. भारत एक ग्रामीण देश है ऐसे में कई हिस्से आज भी अति पिछड़े हैं। इस वजह से गांवों में लोग सुविधाओं की कमी में जीवन गुजारने को मजबूर है। खासतौर पर आदिवासी और अति पिछड़े इलाकों में युवाओं को शिक्षा और सुविधाओं को लेकर बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे ही एक राज्य है छत्तीसगढ़ जिसे नक्सल क्षेत्र माना जाता है। यहां अधिकतर हिस्से आदिवासी इलाके के हैं जहां लोग जंगलों में रहते हैं। यहां स्कूलों और मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। बावजूद इसके यहां से भी आईएएस अफसर बनकर युवा निकलते हैं और नाम रोशन कर देते हैं। ऐसे ही एक आदिवासी लड़के के संघर्ष की कहनी हम आपको सुनाने जा रहे हैं जिसने परिवार को पालने के लिए फुल टाइम  नौकरी करते हुए बिना कोचिंग के यूपीएससी की परीक्षा पास कर कीर्तिमान रच दिया। 

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Asianet News Hindi
Published : Feb 07 2020, 10:53 AM IST| Updated : Feb 07 2020, 11:12 AM IST
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ये काबिल और होनहार शख्स है छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े इलाके के सुरेश जगत। नक्सल समस्या से ग्रस्त राज्य में सुरेश ने एक जनता स्कूल से पढ़ाई करके भी 90 फीसदी अंक हासिल किए थे। इसका मतलब है कि वे शुरुआत से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे। इसी गांव के बीच से एक युवा ने निकल यूपीएससी की परीक्षा पास कर IAS बन कर दिखा दिया। सुरेश जगत राज्य के गठन के 18 वर्षों के बाद पहले आदिवासी हैं, जो आईएएस बने हैं।
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सुरेश का जन्म कोरबा जिले के परसदा गांव में हुआ है। यह एक अति पिछड़ा ट्राइबल (आदिवासी) गांव है। मीडिया से बात करते हुए सुरेश बताते हैं कि, शुरू से ही उनकी रुचि पढ़ने-लिखने में ज्यादा थी। शुरुआती पढ़ाई यही हुई पर अधिकारी बनने के सपने को पूरा करने के लिए वे अपने जिले से बाहर निकल आए। यहीं से उन्होंने यूपीएससी जैसी परीक्षा की तैयारी की।
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सुरेश बताते हैं कि हाई स्कूल तक की मेरी पढ़ाई काफी मुश्किलों भरी रही। कुछ कक्षाओं में एक भी शिक्षक नहीं थे। मेरी पढ़ाई गांव के जनभागीदारी स्कूल से हुई। ये स्कूल गांव की जनता चलाती है जिसमें कभी टीचर होते हैं कभी कोई नहीं होता, कोई सिस्टम नहीं होता। यहां कोई हाई-फाई प्राइवेट स्कूल नहीं थे। अंग्रेजी पढ़ाने वालों को भारी कमी थी।
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किसी तरह से सुरेश ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की। दसवीं में सुरेश ने 90 फीसदी अंक पाए। इससे उन्हें आगे बढ़ने का हौसला मिला। आगे की पढ़ाई के लिए उनके भाइयों ने काफी मदद की और बिलासपुर के भारत माता हिंदी माध्यम स्कूल में मेरा दाखिला कराया। वहां भी सुरेश के लिए मुश्किलें कम नहीं थी।
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सुरेश ने बताते हैं कि, 12वीं में उन्हें टॉपर बच्चों में राज्य में 5वां स्थान मिला था। उसके बाद उन्हें आगे कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास मिला। गांव के बच्चों में विश्वास की कमी होती है। अंग्रेजी और गणित के विषय में कमजोर होना भी एक समस्या है। इसलिए सुरेश ने इन दोनों विषयों पर खास ध्यान दिया। इसके बाद उनके मन में कही से सुनकर IAS अधिकारी बनने की इच्छा जागी।
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सुरेश ने बताया कि AIEEE पास करके मुझे NIT रायपुर में दाखिला मिला और वहां भी अपनी मेहनत से 81% के साथ मैकेनिकल की डिग्री हासिल की। सुरेश गरीब किसान परिवार से हैं ऐसे में उन्हें परिवार को पालने के लिए नौकरी करनी पड़ी। परिवार उनकी कोचिंग और पढ़ाई का पूरा खर्च नहीं उठा सकता था। ऐसे में आर्थिक रूप से सक्षम होने के लिए सुरेश ने ONGC में कैंपस सेलेक्शन में मिली नौकरी को ज्वाइन कर लिया। GATE एग्जाम से सुरेश का NTPC में सेलेक्शन हो गया तो उन्होंने NTPC जॉइन कर लिया। इस फुल टाइम नौकरी को करते-करते सुरेश ने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया।
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NTPC में 3 साल काम करके सुरेश ने सोचा अब सिविल सेवा की परीक्षा देनी चाहिए। इसके बाद सुरेश ने भारतीय इंजीनियरिंग सेवा की परीक्षा पास की जिसके बाद उन्हें केंद्रीय जल आयोग भुवनेश्वर में पोस्टिंग मिल गई। हालांकि सुरेश का दिल्ली जाकर तैयारी करने का सपना अधूरा रह गया। परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी उन पर थी इसलिए वे फुल टाइम नौकरी करते रहे।
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नौकरी करते-करते सुरेश ने दो प्रयास में हिंदी माध्यम से एग्जाम दिए। उसके बाद उन्हें लगा कि अब अंग्रेज़ी माध्यम से परीक्षा देनी चाहिए। अंग्रेजी से पढ़ाई को सुरेश एक चुनौती की तरह लेते थे।
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हालांकि सुरेश ने एक बार यूपीएससी क्लियर कर लिया था लेकिन वे आईएएस ही बनना चाहते थे। वे बताते हैं कि 2016 की परीक्षा में मुझे सफलता मिली और मुझे IRTS मिला, लेकिन IAS की चाह में चौथे प्रयास में मुझे आईएएस मिला। ये सारे प्रयास मैंने फ़ुलटाइम नौकरी करते हुए दिए और किसी भी चरण में कोचिंग का सहारा नहीं लिया।
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गांव का एक गरीब लड़का होने की वजह से सुरेश गांव की समस्याओं को अच्छे से जानते थे। वे बताते हैं कि, IAS अफसर जो हमारे गांव में आते थे, उन्हें देखकर मन में सवाल उठते थे। घर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति ठीक नहीं होना भी एक कारण था। दादाजी मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं, उनकी मेहनत और कोर्ट-कचहरी के चक्कर ने मुझे इस दिशा में प्रयास करने के लिए विवश कर दिया।
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सुरेश ने अपनी सक्सेज स्टोरी और संघर्ष में अपनी गलतियों को भी बताया। उन्होंने बताया कि कैसे मैंने हिंदी माध्यम से तैयारी की पूरी कोशिश नहीं की। अगर हिंदी साहित्य विषय से परीक्षा देता तो सफलता पहले ही मिल गई होती, नोट्स नहीं बनाना दूसरी गलती थी। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके से आने वाले सुरेश के चार प्रयास में आईएएस अफसर बनने की संघर्ष की कहानी सभी स्टूडेंट्स के लिए प्रेरणा है। आज सुरेश पश्चिम बंगाल में कलेक्टर के पद पर तैनात हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो सफलता जरूरत मिलती है मुश्किलें चाहे कितनी आएं लक्ष्य से डगमगाना नहीं चाहिए।

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