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शहीद पिता की वर्दी को एकटक ताकती रही 4 साल की बेटी, कहती कहां गए पापा..3 दिन पहले साथ था जवान
रायपुर (छत्तीसगढ़). 4 दिन पहले शनिवार को बीजापुर के जंगल में हुए नक्सली हमले में 23 जवान शहीद हो गए। वहीं 31 जवान घायल हुए हैं, जिनका इलाज चल रहा है। अब शहीदों की शव अंतिम संस्कार के लिए घर आने लगे हैं। इस हमले में शहीद हुए जवान रमेश कुमार जुर्री की शव जब तिरंगे से लिपटे एक ताबूत में घर आया तो सैकड़ों की संख्या में मौजूद लोगों की आखें नम थीं, तो वहीं परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल था। लेकिन सबकी निगाहें जवान की 4 साल की बेटी पर थीं, जो ताबूत में चिपकी पापा की तस्वीर को एकटक निहार रही थी। वह चुप थी और उसकी आंखों में कोई आंसू नहीं थे, शायद उसके मन में यही सवाल थे कि हमले के तीन दिन पहले तक उसके पापा साथ थे, जो अब कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। सिर्फ लोग उनकी फोटो को देख रोए जा रहे हैं।
| Published : Apr 06 2021, 01:58 PM IST / Updated: Apr 06 2021, 02:05 PM IST
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दरअसल, 35 साल के शहीद जवान रमेश कुमार जुर्री कांकेर जिले के पंडरीपानी गांव के रहने वाले थे। वह डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड के प्रधान आरक्षक थे। जिनके गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। वहीं घर में जवान की बुजुर्ग मां सत्यावती को लोग उनको सांत्वना देकर चुप करा रहे हैं। जैसे ही बेटे का शव आया तो वह दहाड़ें मारकर रोने लगीं। वहीं जवान की पत्नी सुनीता बार-बार पति की तसवीर देख बेसुध हो रही थी। मासूम बेटी सेहल सिर्फ एकटक मां और पिता को देखे जा रही है।
मासूम बेटी इसिलए पिता की तस्वीर को देखे जा रही है कि गांव के लोग उसके पिता की फोटो पर आखिर फूल क्यों चढ़ा रहे हैं। कल जिस वर्दी को पापा पहनते थे अब मां और दादी-चाचा उसे देखकर क्यों रो रहे हैं। यह दिल को झकझोर देने वाला दृष्य जिसने भी देखा उसकी आंखें नम हो गईं। (शहीद की बेटी सेहल)
वहीं शहीद की मौसी विद्या ने बताया कि बहू सुनीता (रमेश की पत्नी) ने हमले वाले दिन लगातार बेटे को फोन लगा रही थी, लेकिन उसका फोन नहीं लगा। कुछ पता भी नहीं चल रहा था, आखिर वहां क्या चल रहा है। सभी लोग चिंतित थे। तभी टीवी पर खबर चली कि मुठभेड़ हुई है और कई लोग मारे गए हैं। तब हमें पता चला कि हमारा रमेश भी शहीद हो गया। (शहीद की पत्नी सुनीता)
बता दें कि शहीद रमेश 2015 में सुनीता के साथ शादी हुई थी। दोनों की एक चार साल की बेटी सेजल है। दो भाइयों में रमेश बड़े और संजय जुर्री छोटे हैं। पिता के निधन के बाद रमेश ने अपने परिवार के खर्चे की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी। घर में वह अकेले ही कमाने वाले थे, जिनकी सैलरी से परिवार का खर्चा चलता था। घटना के दो दिन पहले ही सुनीता की रमेश से फोन पर बात हुई थी, वह अपने घर से वापस ड्यूटी पर पहुंचे हुए थे। बीजापुर पहुंचने के बाद रमेश ने कहा था कि वह ठीक से आ गए हैं, चिंता की कोई बात नहीं है। लेकिन उसे क्या पता था कि यह उनकी आखिरी बात है। (शहीद की मां)
शहीद के परिवारवालों ने रोते हुए कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही रमेश ने अपने ट्रांसफर घर के पास करने के लिए जगदलपुर में पुलिस अधिकारियों को आवेदन दिया था। वह अपनी बूढ़ी मां और पत्नी के साथ रहना चाहता था। वह कहता था कि पास रहकर सेहल की पढ़ाई भी अच्छे से कराऊंगा। लेकिन सब सपने बिखर गए। यह सुनते ही पत्नी सुनीता जोर जोर से रोने लगी।
शहीद जवान रमेश की कब्र उसके पिता की कब्र के बगल में बनाई गई है।