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250 किमी पैदल चलकर घर पहुंचने को थे मजदूर, तभी अड़चन बन गई नदी, घबराकर लगा दी छलांग

सुकमा, छत्तीसगढ़. दिल दहलाने वाली यह तस्वीर लॉकडाउन में फंसे मजदूरों की दयनीय हालत को दिखाती है। ऐसी कई तस्वीरें सामने आती रही हैं, जिनमें सैकड़ों मजदूरों को पैदल ही अपने घरों की ओर जाते देखा गया। ये 6 मजदूर काम-धंधा बंद हो जाने पर आंध्र प्रदेश से पैदल चलकर अपने घर को निकले थे। ये सभी ओडिशा के रहने वाले हैं। जब ये 250 किमी पैदल चलकर छत्तीसगढ़ के सुकमा पहुंचे, तो देखा कि सामने शबरी नदी बह रही थी। जब उन्हें वहां से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा, तो उन्होंने नदी में छलांग मार दी। उन्हें उम्मीद थी कि वे तैरकर नदी पार कर लेंगे, लेकिन सभी मझधार में फंस गए। करीब 2 घंटे वे यूं ही फंसे रहे। गनीमत रही कि समीप के गांव में रहने वाले मछुआरों तक यह खबर पहुंची और उन्होंने सबकी जान बचा ली।

2 Min read
Amitabh Budholiya
Published : Apr 24 2020, 11:27 AM IST
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ये मजदूर ओडिशा के मलकानगिरी के रहने वाले हैं। ये आंध्र प्रदेश के जंगारेड्डीगुडम स्थित किसी ऑयल फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन होने से ये सभी पैदल ही अपने घर को निकल पड़े थे। बताते हैं कि नदी में नहा रही एक युवती ने जब इन्हें नदी में फंसे देखा, तो उसने आंध्र कल्लेर घाट पर मौजूद मछुआरों को इसकी सूचना दी। इस बीच 5 मजदूर मशक्कत के बाद खुद तैरकर किनारे तक पहुंच गए, लेकिन एक फंस गया। वो नदी के बीच एक झाड़ को पकड़कर बैठा रहा। बाद में उसे भी मछुआरों ने निकाल लिया। सभी को ओडिशा के मोटू क्वारेंटाइन केंद्र में भेजा गया है।

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और वो घर पहुंचने से पहले मर गई: यह मामला छत्तीसगढ़ के ही बीजापुर का है। एक गरीब और लाचार परिवार को लॉकडाउन की कीमत अपनी इकलौती 12 साल की बेटी को खोकर चुकाना पड़ी। यह मजदूर बच्ची तेलंगाना के पेरूर गांव से पैदल अपने गांव के लिए निकली थी। बच्ची बीजापुर जिले के आदेड़ गांव की रहने वाली थी। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो जाने पर यह बच्ची गांव के ही 11 दूसरे अन्य लोगों के साथ घर को लौट रही थी। ये लोग 3 दिनों में करीब 100 किमी चल चुके थे। अचानक बच्ची का पेट दु:खने लगा। घर से 14 किमी पहले बच्ची ऐसी गिरी कि फिर उठ न सकी। 

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यह तस्वीर पिछले दिनों मप्र के सतना जिले में सामने आई थी। यह मजदूर फैमिली महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित अपने गांव के लिए साइकिल पर निकली थी। पत्नी की गोद में सालभर का बच्चा था। यह दम्पती नागपुर में मजदूरी करता था। काम बंद होने से रोटी की फिक्र होने लगी। कुछ दिन जैसे-तैसे चलता रहा, लेकिन फिर सब्र जवाब दे गया। इसके बाद इस फैमिली ने साइकिल से ही अपने घर निकलने की ठानी। महिला ने कहा कि वो लोग कब तक इंतजार करते..ऐसे तो भूखे ही मर जाते।

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वृंदावन में एक पुल पर बैठा साधू। लॉकडाउन के कारण उसे और कहीं रहने को जगह नहीं मिल पाई।
 

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यह तस्वीर गुरुग्राम की है। लॉकडाउन में सबसे ज्यादा दिक्कतें दिहाड़ी मजदूरों को हो रही हैं।

About the Author

AB
Amitabh Budholiya
बीएससी (बायोलॉजी), पोस्ट ग्रेजुएशन हिंदी साहित्य, बीजेएमसी (जर्नलिज्म)। करीब 25 साल का लेखन और पत्रकारिता में अनुभव। एशियानेट हिंदी में जून, 2019 से कार्यरत। दैनिक भास्कर और उसके पहले दैनिक जागरण और अन्य अखबारों में सेवाएं। 5 किताबें प्रकाशित की हैं

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