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- बच्ची के दोनों पंजे नहीं: पैरों से बहता था खून..तब बनाया ये जुगाड़, गिलास को बनाया पंजा और दौड़ने लगी
बच्ची के दोनों पंजे नहीं: पैरों से बहता था खून..तब बनाया ये जुगाड़, गिलास को बनाया पंजा और दौड़ने लगी
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दरअसल, जोश, जुनून और जज्बे की यह कहानी उस बेटी की है जिसका जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ। इस बेटी का नाम गीता है जो कि मूल रूप से गरियाबंद जिले छुरा जनपद पंचायत की रहने वाली है। बचपन से ही गीता के दोनों पैरों के पंजे नहीं हैं। माता-पिता दोनों मजदूरी करते हैं, इस स्थिति में नहीं कि वह अपनी बेटी का इलाज करा पाते।
बता दें कि जब गीता बिना पंजों के पैदल चलती थी तो उसके पैरों से खून रिसता था। लेकिन फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती थी। जनपद पंचायत के अधिकारियों ने उसे हाथ से चलाने वाली ट्राइसिकिल दी, लेकिन इस साइकिल को उसने अपने गांव के एक जरूरतमंद दिव्यांग को दे दी। कहने लगी कि इसकी जरुरत मुझसे ज्यादा उसे है, मैं तो किसी तरह चल लूंगी।
जब कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो गीता ने खुद ही इसका इलाज तलाशा। गीता के पिता पिता देवीराम गोंड और उसकी मां मजदूरी करने के लिए चले जाते तो वह रोजाना चुपचाप से गिलास को अपने पैरों में फंसाकर चलने का प्रयास करती रहती। एक दिन जब पिता शाम को घर आए तो वह दौड़ते हुए गई और उनके गले लग गई। वह हैरान थे कि यह कैसे हुआ, उन्होंने जब उसके पैरों में पंजे की जगह गिलास देखे तो आंखों में आंसू आ गए और खुश भी हुए।
इन गिलास के साहारे गीता अपने घर का सारा कामकाज कर लेती है। चाहे फिर वह झाड़ू लगाना हो या बर्तन साफ करने से लेकर खाना बनाने तक। उसे अब ऐसा नहीं लगता कि वह बिना पंजों की है। इतना ही नहीं वह अब अपनी सहेलियों के साथ खेलती-कूदती भी है।
एक अखबार में खबर छपने के बाद अब राज्य सरकार बेटी की मदद करने के लिए आगे आई है। मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने कार्रवाई करते हुए गरियाबंद कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि वह जल्द से जल्द गीता को तुरंत इलेक्ट्रॉनिक साईकल मुहैया कराई जाए और प्रधानमंत्री आवास से उसके माता- पिता को घर दिया जाए। साथ ही ये भी निर्देश दिए हैं कि स्वास्थ विभाग की एक टीम गीता के गांव जाएगी और उसकी मेडिकल जांच कर इलाज कराएगी।इलाज का जो भी खर्ज आएगा उसे राज्य सरकार देगी।