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पंजाब चुनाव: रामरहीम तेरे कितने चेहरे, अध्यात्म गुरू, पॉप सिंगर और रेप में फंसा तो हीरो बना, अब याद आई सियासत
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गुरमीत रामरहीम बार-बार नए-नए किरदार में क्यों सामने आ रहा है? डेरों की सियासत पर शोध करने वाले पूर्व पत्रकार राजकुमार भारद्वाज इस सवाल का जवाब कुछ यूं देते हैं- वह कंट्रोवर्सी से बचने के लिए ऐसा करता है। लेकिन, एक कंट्रोवर्सी से बचने की कोशिश में दूसरी कंट्रोवर्सी खड़ी कर देता है। आज वह पूरी तरह से विवादित है। रेप मामले में 20 साल की सजा सीबीआई कोर्ट ने सुना रखी है। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के आरोप में आजीवन सजा सुनाई गई है।
2017 में जब उसे रेप मामले मे जब सजा सुनाई जानी थी तो उसके समर्थकों ने पंचकूला शहर को बंधक-सा बना लिया था। स्टेट की सुरक्षा एजेंसियां जब फेल हो गईं तो सीआरपीएफ लगानी पड़ी। कानून व्यवस्था को काबू रखने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी। 25 अगस्त 2017 को पुलिस की गोली से 6 लोगों की मौत हुई थी, जबकि कुल 31 लोग मार गए थे। इसमें 29 पंचकूला और 2 सिरसा में। हरियाणा और पंजाब में कई जगह हिंसक झड़प हुईं थीं।
यही वजह है कि गुरमीत को सजा के बाद लंबे समय तक पैरोल नहीं मिली। 4 से ज्यादा बार पैरोल की अर्जी लगाई। लेकिन, हर बार खारिज हो गई। अर्जी खारिज करने का आधार भी हिंसा का ही बनाया जाता था। अब उसके समर्थकों को भी महसूस होने लगा था कि वह जेल से बाहर नहीं आ सकता। ऐसे में अचानक फिर चमत्कार हुआ और रामरहीम को फरलो मिल गई।
राजनीतिक समीक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता हरपाल सिंह सोढ़ी ने बताया कि पंजाब के चुनाव में उसके समर्थक गुरमीत के लिए राहत की किरण देख रहे हैं। यही वजह है कि 9 जनवरी को बठिंडा जिले की रामपुरा फूल विधानसभा क्षेत्र के सलाबतपुरा डेरा में डेरा सच्चा सौदा सिरसा की बैठक हुई, इसमें जबरदस्त भीड़ जुटी। इस आयोजन में भाजपा के शीर्ष नेता हरजीत ग्रेवाल, सुरजीत ज्याणी, मंत्री विजयिंदर सिंगला, पूर्व मंत्री साधु सिंह धर्मसोत, कांग्रेस नेता जस्सी और कई अन्य राजनीतिक नेताओं ने हिस्सा लिया।
दावा किया जा रहा है कि इस आयोजन में 15 से 20 लाख श्रद्धालु सलाबतपुरा पहुंचे थे। इस आयोजन के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि गुरमीत राम रहीम पंजाब चुनाव से पहले पैरोल पर आ सकता है। ठीक हुआ भी ऐसा ही। पिछले दिनों उसे हरियाणा सरकार ने 21 दिन की फरलो दे दी।
अब डेरा के रणनीतिकार गुरमीत का नया किरदार गढ़ने की तैयारी में हैं। वह है- राजनीति में सीधा हस्तक्षेप। हालांकि ऐसा नहीं है, डेरे में राजनेता नहीं जाते। हरपाल सिंह सोढ़ी ने बताया कि जब डेरा प्रमुख पर रेप और हत्या के आरोप लगे थे, इसके बाद भी नेता और यहां तक कि हरियाणा सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा उसके डेरे में पहुंचते रहे हैं।
गुरमीत अपने किरदार के लिए स्वयं कुछ नहीं करता। बस, इच्छाभर प्रकट करता है। बाकी का काम तो उसके लाखों अनुयायी देखते ही देखते पूरा कर देते हैं। इसलिए अब उनके समर्थक उसे चाणक्य की तरह पेश करना चाह रहे हैं। पंजाब का समागम इसी कड़ी का हिस्सा भर है।
जानकारों का कहना है कि पहले समागम और फिर डेरा मुखी का फरलो मिलना महज संयोग नहीं है। इसके पीछे सधी हुई कोशिश है। वह यह है कि डेरा समर्थकों को अब लगने लगा है कि गुरमीत को कड़ी कैद से राहत एक ही वजह से मिल सकती है। वह है- राजनीति। यदि डेरा वोट की अपनी ताकत दिखा दें तो निश्चित ही उसे राहत मिल सकती है। इस सोच के चलते ही पंजाब चुनाव से ऐन पहले उसे फरलो मिली है।
भले ही हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर दावा करते हैं कि पंजाब चुनाव से इसका कोई संबंध नहीं है। यह फरलो हरियाणा के जेल नियमों के अनुरूप ही दी गई है। सीएम मनोहर लाल का यह दावा तो सही है। लेकिन इससे यह सवाल खत्म नहीं हो जाता कि पंजाब चुनाव से पहले ही फरलो क्यों?
डेरा मुखी की फरलो पर पंजाब के कई सियासी दलों की भौंहें तन रही है। तने भी क्यों ना? डेरा मुखी का इस वक्त जेल से आना किसी का भी सियासी समीकरण बिगाड़ सकता है। पंजाब में 2.12 करोड़ मतदाता है। 25 प्रतिशत लोग डेरे से जुड़े हुए हैं। प्रदेश में 12 हजार 581 गांव है। यहां 1.13 डेरों की शाखाएं हैं। जाहिर है डेरा का झुकाव जिस ओर भी हो जाएगा, उस पार्टी के लिए जीत का गणित आसान हो सकता है।
हालांकि इसे लेकर डेरा के रणनीतिकार दो गुटों में बंटे हुए हैं। एक गुट चाहता है कि जैसा पहले से चला आया है, इस बार भी ऐसा ही चलने दो। यानी की मतदान से एक दिन पहले गुपचुप तरीके से समर्थन दे दिया जाएगा। यह सोच रखने वालों का तर्क है, यदि डेरा सीधे राजनीति में आता है, किसी एक को समर्थन देता है, तो बाकी दल खुन्नस निकालेंगे।
दूसरा गुट चाहता है कि डेरा खुल कर राजनीति में हाथ आजमाएं। इनका तर्क है कि जितना नुकसान डेरे का होना था, हो चुका। क्योंकि डेरा मुखी को आजीवन कारावास हो गया। डेरे के कई लोगों पर केस बन गए। डेरे की स्थिति भी खराब है। अब भी यदि राजनीति से परहेज करते रहे तो स्थिति और ज्यादा खराब होगी। राजनीति में आने से हो सकता है, स्थिति में कुछ सुधार हो जाए।
इस तर्क की हिमायत करने वाले डेरा मुखी की फरलो का उदाहरण भी देते हैं। उनका दावा है कि नौ जनवरी के समागम के बाद ही डेरा मुखी की फरलो की रूपरेखा बनी है। पंजाब की राजनीति की समझ रखने वाले पंजाबी ट्रिब्यून के पूर्व पत्रकार बलविंदर सिंह ने बताया कि डेरे का झुकाव भाजपा की ओर है। डेरा मुखी की फरलो का अकाली दल ने विरोध किया। पंजाब कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू बेअदबी कांड को आधार बना कर डेरे पर निशाना साधते रहे हैं।
इस बार पंजाब में भाजपा बड़ी भूमिका में हैं। भाजपा को यदि डेरा का समर्थन मिलता है तो इसके दो लाभ होंगे। एक तो डेरा समर्थक गांवों में सबसे ज्यादा है। तीन कृषि कानून को लेकर भाजपा का गांवों में विरोध है। डेरा का भाजपा को समर्थन मिल जाता है तो उनकी गांव में भी अच्छी खासी पैठ हो जाएगी।शहरों में बीजेपी का वोटर है।
इस तरह से देखा जाए तो भाजपा और डेरा दोनो ही पंजाब चुनाव में अपना अपना फायदा देख रहे हैं। डेरा मुखी इस वक्त बुरी तरह से फंसा हुआ है। वह इन हालात से निकलना चाह रहा है। इसके लिए राजनीति ही एक रास्ता बचता है। क्योंकि बाकी के काम वह करके देख चुका है। उसे कोई फायदा नहीं मिला।
इसलिए डेरा का एक गुट चाहता है कि इस बार जिस भी पार्टी को समर्थन दिया जाए। बाकायदा इसका ऐलान किया जाए। यह सही कि डेरामुखी की फरलो में यह शर्त है कि वह किसी तरह की सभा, जलसा या समागन आदि नहीं करेगा। कोई बयान नहीं देगा।
लेकिन डेरा का काम करने का अपना एक तरीका है। गुरमीत बाहर है। इस वक्त वह जो भी बोल देंगे, समर्थक उसे गुरु का हुक्म मान कर उसका पालन करेंगे। डेरा की राजनीति विंग इसे लेकर संभावना तलाश रही है। बहरहाल, डेरा मुखी भले ही जेल की सजा काट रहा हो, लेकिन समर्थन उसका एक और किरदार गढ़ने की तैयारी में हैं। देखना दिलचस्प होगा कि उसका यह नया किरदार उसे क्या राहत दे सकता है।