नुकसान होने पर रातभर चैन से नहीं सो सका किसान, देसी तकनीक से बना दी यह मशीन
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सत्यवान के पास 4 एकड़ जमीन है। 8 साल पहले वे मैकेनिक थे। फिर खेती-किसानी करने लगे। पहली बार 2012 में उन्होंने धान की फसल उगाई। पहली बार मजदूर मिल गए। लेकिन 2014 में मजदूर नहीं मिलने से काफी दिक्कत हुई। नुकसान भी उठाना पड़ा। इसके बाद सत्यवान ने एक छोटी-सी मशीन बनाई। यह बिजली की मोटर से चलती थी। यह मशीन उतनी सफल नहीं रही। इसके बाद उन्होंने एक पुराना थ्रेसर खरीदा। उसके अंदर के सभी पार्ट निकालकर धान झाड़ने वाली मशीन का निर्माण किया। इस मशीन के निर्माण पर करीब 4 लाख रुपए खर्च हुए। आगे पढ़ें-इंजीनियर नहीं तो क्या, ट्रैक्टर के पुराने टायर का और क्या इस्तेमाल हो सकता है, कोई इनसे सीखे
भिवानी, हरियाणा. जब बिजली से चलने वाली मशीन से चारा काटा जाता है, तो चारे के कण हवा में उड़ने लगते हैं। यह सिर्फ न पॉल्युशन फैलाते हैं, बल्कि सांस के जरिये चारा काटने वाले के फेफड़ों में जाकर बीमारी भी पैदा कर सकते हैं। यही नहीं, असावधानी से अगर मशीन के ब्लेड के पास आ गए, तो शरीर कटने का डर भी बना रहता है। इस किसान ने इसका देसी जुगाड़ निकाला। उसने मशीन के ब्लेड वाले हिस्से को ट्रैक्टर के पुराने टायर से कवर कर दिया। इससे अब न चारा हवा में उड़ता है और न दुर्घटना का खतरा। यह हैं बलियाली के किसान बलविंद्र। बलविंद्र अकसर कृषि मेलों में जाते रहे हैं। यहां तरह-तरह के मशीनों को देखकर उनके मन में कुछ अलग करने का विचार आता रहा। उन्होंने सबसे पहले अपने घर में यह प्रयोग किया। उनका यह देसी जुगाड़ दूसरे पशु पालकों को भी पसंद आ रहा है। आगे पढ़िए...11वीं पास किसान चलाता है देसी जुगाड़ वाला वर्कशॉप, मशीनें बेचकर कमाता है 2 करोड़ सालाना
जोधपुर, राजस्थान. 11वीं पास इस इस किसान ने अपना खुद का एक वर्कशॉप बनाया हुआ है। इसमें देसी तकनीक से खेती-किसानी से जुड़ीं मशीनें तैयार करते हैं। इनकी डिमांड देश के अलग-अलग राज्यों के अलावा दूसरे देशों से भी आने लगी है। यह हैं जोधपुर जिले के मथानिया में वर्कशॉप चलाने वाले अरविंद सांखला। बताते हैं कि ये इनका सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। आगे जानिए और क्या-क्या किए आविष्कार...
अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े अरविंद बताते हैं कि 1991 में उन्होंने 11वीं पास की थी। वे आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मां-बाप उन्हें पढ़ा सकें। लिहाजा पढ़ाई छोड़कर खेतों में काम करने लगे। 1993 में एक घटना हुई, जिसने अरविंद साखला की किस्मत बदल दी। उनके खेत के कुएं की मोटर खराब हो गई। इसके बाद उन्होंने बोरिंग कराई। लेकिन आमतौर पर जब मोटर खराब होती है, तो उसे रस्सी से ऊपर खींचना और वापस अंदर रखना पड़ता है। इसमें समय और मेहनत दोनों काफी लगती है। इससे फसल को समय पर पानी नहीं मिलने से भी नुकसान होता है। यही देखकर उन्होंने देसी जुगाड़ से एक मशीन बनाई। यह मशीन मोटर को ऊपर लाने और नीचे ले जाने में कुछ मिनट का समय लेती है। साखला की यह मशीन लोगों को पसंद आई और इसकी खूब बिक्री हुई।
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इस तरह सामने आई गाजर धोने की मशीन
पहले अरविंद अपने खेतों में मिर्च की फसल उगाते थे। मथानिया मिर्च उत्पादन में पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। लेकिन सांखला ने देखा कि मिर्च की फसल को रोग लगने लगा है। जलस्तर भी नीचे जा रहा था। लिहाजा उन्होंने मिर्च के बजाय गाजर की फसल लेना शुरू कर दी। देखते-देखते यहां से करीब 25 ट्रक गाजर जाने लगी। अब समस्या गाजर की मिट्टी साफ करके धोने की थी। हाथ से ऐसा करने पर काफी समय और मेहनत लगती थी। इस तरह सामने आई ड्रम और इंजन के जुगाड़ से बनी गाजर धोने की यह मशीन।
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जब लोरिंग और गाजर धोने वाली मशीन की डिमांड बढ़ी, तो सांखला ने विजयलक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स के नाम से कृषि यंत्र बनाने की वर्कशॉप खोल ली। इसके बाद उन्होंने लहसुन, पुदीना और मिर्च निकालने-साफ करने की मशीन भी बनाई।
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अरविंद सांखला ने लहसुन निकालने के लिए यह मशीन बनाई। आमतौर पर हाथों से लहसुन निकालना कठिन होता है। इससे हाथों में जलन भी होती है। अब करीब 15000 रुपए की लागत से बनी यह मशीन आसानी से लहसुन निकाल देती है।
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यह यह है मिर्च साफ करने की मशीन। इस मशीन से 250 किलो मिर्च सिर्फ एक घंटे में साफ हो जाती है। यह मशीन 4000 से 75000 रुपए तक में बिकती है।
अरविंद साखला ने यह साबित किया कि कुछ करने के लिए क्रियेटिव होना जरूरी है। आज अरविंद देसी तकनीक से कृषि यंत्र तैयार करने वाले सबसे सफल बिना डिग्री वाले इंजीनियर हैं।