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तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं, मासूमों के सवालों का क्या जवाब देती मां कि क्यों वे मारे-मारे फिर रहे
धनबाद, झारखंड. कोरोना को हराने दुनिया के पास लॉकडाउन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन हमारे देश में लॉकडाउन ने गरीबों की कमर तोड़ दी। उन्हें मीलों पैदल चलकर घर जाने को मजबूर होना पड़ा। क्या जवान और क्या बूढ़े..लाचार, दिव्यांग और बच्चों को भी नंगे पांव पैदल जाते देखा गया। पैरों में छाले और आंखों में मायूसी..सबने पढ़ी, लेकिन उतनी मदद नहीं मिल सकी, जितनी उन्हें जरूरत थी। पहली तस्वीर एक दु:खी मां लता की है। ये तमिलनाडु से अपने मासूम बच्चों के साथ धनबाद पहुंची थीं। इन्हें सरायकेला जाना था। बेशक उन्हें यहां तक आने के लिए श्रमिक ट्रेन मिली, लेकिन इस दौरान कितनी तकलीफें उठाईं, यह बताते हुए वे फूट-फूटकर रो पड़ीं। सबकुछ बेचने के बाद सिर्फ थोड़ा-बहुत घर-गृहस्थी का सामान बचा था। उसे वे सिर पर उठाकर ला रही थीं। जबकि इस सामान की कीमत कुछ सौ रुपए ही होगी। लेकिन उनके लिए अब यह सबकुछ था। बता दें कि गुरुवार को तमिलनाडु और कर्नाटक से करीब 3500 श्रमिक झारखंड लौटे।
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पहली तस्वीर लता की है। वहीं, दूसरी तस्वीर हरियाणा के गुरुग्राम से झारखंड लौटती एक प्रवासी मजदूर महिला की है। लता दु:खी हैं कि तमिलनाडु में मेहनत-मजदूरी करके उन्होंने थोड़ी-बहुत कमाई की थी, वो सब खत्म हो गई। घर लौटे तो खाली हाथ। वे अपने मासूम बच्चों के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही थीं, जो बार-बार पूछ रहे थे कि मां हम गांव क्यों लौट आए? लता चेन्नई में लोगों के घरों में काम करती थीं। शराबी पति छोड़कर चला गया। लॉकडाउन में जब रोटियों को तरसीं, तो घर के बर्तन तक बेचने पड़े। फिर किसी से श्रमिक ट्रेन की जानकारी दी, तो वो घर लौट आईं। हालांकि वे परेशान दिखीं कि आगे बच्चों को क्या खिलाएंगी? आगे देखिए प्रवासी मजदूरों की समस्याएं दिखातीं इमोशनल तस्वीरें..
हजारों प्रवासी मजदूरों को काम-धंधा बंद होने से घर लौटना पड़ा है। यह तस्वीर गुरुग्राम से झारखंड लौटते मजदूरों की है।
गुरुग्राम से झारखंड के लिए निकलते प्रवासी मजदूर।
झारखंड के प्रवासी मजदूरों को इस तरह सिर पर बोझ उठाकर अपने घर जाना पड़ा। यह तस्वीर गुरुग्राम की है।
यह पहली तस्वीर यूपी के प्रयागराज(इलाहाबाद) की है। साधन न मिलने पर अपने घरों के लौटतीं प्रवासी मजदूर महिलाओं ने अपने बच्चों को यूं ट्रॉली में बैठा लिया, ताकि उन्हें धूप से बचाया जा सके। पैदल न चलना पड़े। दूसरी तस्वीर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिफरा ओवरब्रिज के पास की है। अपने बच्चे को कंधे पर बैठाकर रायपुर जाता एक मजदूर पिता। यह शख्स झारखंड से निकला था।
यह तस्वीर नोएडा की है। घर जाने के लिए रेलवे स्टेशन पर खड़े बच्चे।
यह बच्चा ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले से छत्तीसगढ़ के जांजगीर पहुंचा था। करीब 215 किमी उसे पैदल चलना पड़ा। कहीं-कहीं लिफ्ट भी मिली। जब ये जांजगीर पहुंचा, तो उसके नंगे पैर देखकर बिर्रा थाने के प्रभारी तेज कुमार यादव भावुक हो उठे। उन्होंने बच्चे को नई चप्पलें दिलवाईं और उसके परिवार को खाना खिलवाया। इसके बाद गाड़ी का इंतजाम करके सबको घर तक पहुंचवाया।
यह तस्वीर जयपुर की है। जब बात मीलों पैदल चलने की हुई, तो जूते-चप्पलों ने भी दगा दे दिया।
यह तस्वीर भोपाल से सामने आई थी। यह मासूम बच्चा अपने मां-बाप और छोटे भाई के साथ 700 किमी दूर छत्तीसगढ़ के मुंगेली गांव जाता दिखाई दिया था। बच्चा पैदल ही नंगे पैर चला जा रहा था।
पहली तस्वीर में दिखाई दे रहा मजदूर यूपी के गोरखपुर का रहने वाला है। उसने घर जाने के लिए ट्रेन में सीट बुक कराई थी, लेकिन नहीं मिली। आखिरकार उसने बच्चों को पालकी में बैठाया और हिम्मत करके 1000 किमी दूर अपने घर के लिए निकल पड़ा। दूसरी तस्वीर आंध्र प्रदेश के कडपा जिले की है। यह मजदूर 8 लोगों के परिवार के साथ 1300 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ जाने के लिए निकला था। उसने अपने मासूम बच्चों को पालकी में बैठा रखा था।
पहली तस्वीर फरीदाबाद की है। एक पैर से विकलांग यह बच्ची अपने परिवार के साथ पैदल घर को निकली थी। दूसरी तस्वीर 10 साल की एक बच्ची की है। वो नंगे पांव चंडीगढ़ के पास से यूपी के उन्नाव के लिए जा रही थी।
यह तस्वीर मध्य प्रदेश से सामने आई थी। पश्चिम बंगाल के मालदा की खातून 2500 किमी का सफर पैदल करते दिखाई दी थीं। हैरानी की बात उनकी गोद में मासूम बच्चा था।
यह तस्वीर गाजियाबाद की है। कुछ ऐसे सफर करना पड़ रहा बच्चों को।
पहली तस्वीर फरीदाबाद की है। एक पैर से विकलांग यह बच्ची अपने परिवार के साथ पैदल घर को निकली थी। दूसरी तस्वीर 10 साल की एक बच्ची की है। वो नंगे पांव चंडीगढ़ के पास से यूपी के उन्नाव के लिए जा रही थी।