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ऐसी भी बेबसीः पति का शव नहीं आया तो मिट्टी का पुतला बनाकर मनाया मातम, उसी पर तोड़ीं सुहाग की चूड़ियां
रांची (झारखंड). लॉकडाउन लागू हुए दो से ज्यादा का वक्त हो गया, लेकिन अभी भी मजदूरों का दर्द कम नहीं हुआ है। अभी मजदूर हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव पहुंच रहे हैं। तो किसी की घर पहुंचने पहले ही मौत हो जा रही है। इस दौरान देश के हिस्सों से मार्मिक कहानियां सामने आ रही हैं। झारखंड से ऐसी ही एक हृदयविदारक घटना सामने आई है जिसका दर्द सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी। जहां एक मजदूर की नेपाल में मौत हो गई, जब उसका शव गांव नहीं आ पाया तो परिवार ने मिट्टी का पुतला बनाकर उसकी रस्में निभाई।
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दरअसल, मजदूर परिवार की मजबूरी की यह तस्वीर गुमला जिले के सिसई छारदा गांव की है। जहां एक महिला अपने पति की मौत के बाद मिट्टी का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार की रस्में निभा रही है। वह मिट्टी के पुतले में ही अपने पति को देख रही है और उसको एकटक देख रही है। मृतक के बच्चे और परिजन उसका आखिरी बार चेहरा तक नहीं देख सके। बता दें कि 23 मई को खद्दी उरांव नाम के श्रमिक की नेपाल में मौत हो गई थी। लॉकडाउन के चलते उसका शव घर नहीं पहुंच पाया तो परिजनों इस तरह पुतला बनाकर विधि-विधान से उसका क्रिया-कर्म किया।
मृतक कुछ महीने पहले अपने छोटे भाई विनोद उरांव के साथ रोजी रोटी कमाने नेपाल गया था। जहां वह नेपाल के परासी जिले में ईंट-भटटे में काम करने लगा था। पांच दिन पहले अचानक उसकी तबीयत बिगड़ गई, जहां उसका छोटा भाई उसे अस्पताल लेकर गया, लेकिन वह नहीं बचा सका। लॉकडाउन के चलते वह अपने बड़े भाई का शव गांव नहीं ला पाया तो उसने नेपाल में ही दाह-संस्कार कर दिया।
यह तस्वीर झारखंड की राजधानी रांची से बुधवार के दिन सामने आई है। जहां श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर जाने के लिए निकले 19 साल का युवक की मौत हो गई। बेबस पिता रोते हुए बोला-कल ही तो बेटे ने फोन कर कहा था-ट्रेन में बैठ गया हूं जल्दी घर पहुंच जाऊंगा। लेकिन, वह इस तरह अपने घर आएगा ऐसा नहीं सोचा था।
यह तस्वीर रायपुर से सामने आई है। जहां हिफजुल नाम के एक मज़दूर की घर पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। वह ईद के दिन मुंबई से बस में बैठकर हावड़ा के लिए निकला था। जैसे ही वह रायपुर पहुंचा तो वह बस बदलने के लिए उतरा, लेकिन 44-45 डिग्री भीषण गर्मी में वह सड़क पर गिर पड़ा और इसके बाद उठ ही नहीं सका।
बेबसी की यह तस्वीर राजस्थान के सिरोही की है, जहां मासूम बच्चे 45 ड्रिग्री तापमान में नंगे पर पैदल चल रहे हैं। घर जाने की जिद में तीखी धूप भी उनको सुकून दे रही है।