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7 तस्वीरों में देखिए झारखंड का मिनी शिमला: 700 पहाड़ियों से घिरा है एशिया के सबसे बड़े साल के पेड़ों का जंगल
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झारखंड और ओडिशा बार्डर पर स्थित सारंडा फॉरेस्ट 700 पहाड़ियों का समूह है जिसके कारण इसे देश मिनी शिमला कहा जाता है। यह लगभग 850 वर्ग किलोमीटर में फैला सघन वन है। जिसको देखने पर ही सैलानी मोहित हो जाते है।
ऐसे अनेक झरने जिनका लुत्फ उठाने से नहीं चूकते पर्यटक
सात सौ पहाड़ियों से घिरा विश्व प्रसिद्ध सारंडा फॉरेस्ट व चिरिया माइंस से सटे सारंडा वन क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य को देखते हुए यहां पर्यटन स्थल की असीम संभावनाएं हैं। घने साल वृक्षों से आच्छादित जंगलों के चारों ओर हरे रंग की चादर ओढ़े एवं कंटीले झाड़ियां और पत्थरों के बीच से गुजरता झरना पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसे देखते ही पर्यटक यहां खींचे चले आते हैं। यहां ऐसे अनेक झरने मिल जाएंगे जिनका पर्यटक लुत्फ उठाना चाहते हैं।
जंगलों में इतने घने वृक्ष की सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंचती
यहां भरपूर घने वनों के साथ पहाड़ियां, घाटियां, झरनें एवं कई सरी प्राकृतिक संसाधन देखने को मिलते हैं। साल वृक्ष यहां सबसे अधिक मात्रा में मौजूद हैं। आबनूस, कुसुम, महुआ, करंज, अमलतास, सेमर, सागवान, आम, जामुन, केंदुब, भीष्म, गम्हार, आसन, पियार, खैर, पलाश, अर्जुन, नीम, ढेला, पैसार जैसे कई घने वृक्ष सारंडा वन में देखने को मिलते हैं। यह वन इतना घना है कि यहां पर सूर्य की किरणें भी नीचे नहीं पहुंच पाती है। इतने सारे वृक्षों की संख्या और उनकी ऊंचाई की देखकर अरिसा लगता है मानो प्रकृति का का अनमोल उपहार झारखंड राज्य को प्राकृतिक वनों के रूप में मिला है।
जिस प्रदेश के नाम में ही जंगल – झार से हो वहां जंगल होना तो अनिवार्य ही है। जी हां हम बात कर रहे हैं अपने भारत के छोटे से राज्य झारखंड की । जिसके नाम का अर्थ ही है – जंगल झार वाला स्थान । झारखंड में जंगल – झार , पहाड़ – पर्वत , नदी – नाले , झरनें आदि प्राकृतिक वस्तुएं , सभी मनमोहक हैं। यहां का हर एक कोना प्राकृतिक रत्नों से भरा पड़ा है । जिस कारण इसे भारत का रूह प्रदेश भी कहा गया है ।
देश के उन स्थानों में से एक जहां मिलती है लुप्तप्राय उड़ने वाली छिपकली
सारंडा वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में पशु, पक्षी और सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं। यह दुनिया के उन कुछ स्थानों में से एक है, जहां लुप्तप्राय उड़ने वाली छिपकली रहती है। वन अपने साल के पेड़ों के लिए प्रसिद्ध है, यह बड़ी संख्या में जड़ी-बूटियों और अन्य पेड़ों का उत्पादक भी है। सारंडा की पहाड़ियों में आप किरीबुरू का जादुई सूर्योदय और सूर्यास्त का शानदार दृश्य देख सकते है।
कई राज्यों के लोग आते हैं घूमनें
यहां एक नहीं ऐसे अनेक झरने हैं, जिसके आसपास के इलाकों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। वहीं, रांची, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, कटक, भुवनेश्वर, शहरों से आए पर्यटक इस कल-कल बहते पानी का लुत्फ उठाने से नहीं चूकते हैं। सारंडा वन क्षेत्र में ऐसे अनेक स्थान हैं मसलन पम्पु, रानी डूबा, डाकू लता, मुनि पहाड़, दुरदूरी नाला पिकिनिक स्पॉट आदि जिन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।
यह क्षेत्र सारंडा कि सात सौ पहाड़ीयों से घिरा सुरम्य व रमणीक पर्यटक क्षेत्र बन सकता है। लेकिन इसके बावजूद पर्यटन विभाग की नजर से यह क्षेत्र अब तक कोसो दूर है। सिर्फ इस क्षेत्र को पर्यटक के तौर पर आधुनिक रूप से विकसित करने की जरूरत है, ताकि यह अतिपिछड़ा क्षेत्र पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित हो सके।
ऐसे पहुंचे : झारखण्ड की राजधानी रांची से इसकी दूरी 90 किलोमीटर है। वहीं रांची से कुछ दूर स्थित खूंटी नामक स्थान से इसकी दूरी मात्र 20 किलोमीटर है। पर्यटक अपने निजी वाहन से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।