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दो वक्त की रोटी को तरसता था यह किसान, फिर दिमाग में आया एक आइडिया और अब कमा रहा लाखों

चाईबासा, झारखंड. सफलता का सिर्फ एक ही मूल मंत्र है, सही दिशा में मेहनत (Hard work)। भारत कृषि प्रधान देश है। एक बड़ी आबादी गांवों में रहती है। लेकिन युवा खेती-किसानी छोड़कर कुछ हजार रुपए की नौकरी-चाकरी या मजदूरी करने शहरों को भागते हैं। जबकि अगर वे खेती-किसानी में ही प्रयोग करें, तो अच्छा-खासा पैसा कमा सकते हैं। चाईबासा के खूंटपानी ब्लॉक के रांगामाटी गांव के किसान राम जोंको ने यही उदाहरण पेश किया है। वे पहले दो वक्त की रोटी को लेकर परेशान रहते थे। लेकिन आज उनके खेत में लाखों रुपए के पपीते उगे हुए हैं। राम जोंको ने अपने खेत में 800 पपीते के पेड़ लगाए हुए हैं। इन पर 8-10 लाख रुपए के फल लगे हुए हैं। बता दें कि लॉकडाउन (Lockdown) में बेरोजगारी (Unemployment) एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। राम जोंको भी पहले अपने काम-धंधे को लेकर चिंतित थे। फिर उन्होंने आत्मनिर्भर होने की ठानी। 4 महीने पहले उन्होंने खेत में पपीते के पेड़ लगाए और आज 50 टन पपीते की उपज तैयार कर ली।

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Asianet News Hindi
Published : Sep 18 2020, 12:17 PM IST
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राम जोंको बताते हैं कि उनकी फसल तैयार है। अब वे उसे मंडी में बेचने वाले हैं। वे बताते हैं कि बाजार में पपीता 40 रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है। अगर वे अपनी फसल आधी कीमत पर भी बेचे, तो 8-10 लाख रुपए कमा सकते हैं। आगे पढ़ें राम जोंको की ही कहानी...

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राम जोंको लॉकडाउन में काम-धंधे को लेकर तनाव में थे। फिर उन्होंने जेटीडीएस नामक संस्था से संपर्क किया। इसके बाद खेत में 3000 पपीते का पौधा लगाया। इसमें से 800 में फल आ गए हैं। आगे पढ़ें इसी किसान की कहानी...

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जेटीडीएस संस्था के जेईई दानिश कमर बताते हैं कि उनकी संस्था किसानों को फसल के लिए हर मदद उपलब्ध कराती है। अगर किसान सही दिशा में काम करें, तो उन्हें दूसरों की नौकरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

आगे पढ़ें- बेरोजगारों में यह खबर जोश भर देगी

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जबलपुर, मध्य प्रदेश. वंदना अग्रवाल और उनकी ननद डॉ. मोनिका अग्रवाल ने 12 साल के अंदर अपना काम-धंधा ऐसा जमाया कि आज इनका सालाना टर्न ओवर करीब 2 करोड़ रुपए है। भाभी-ननद मिलकर डेयरी चलाती हैं। उनकी डेयरी टोटली हाईटेक है। डिलीवरी, पेमेंट से लेकर मेंटेनेंस तक सभी हाईटेक है। ये 400 घरों तक दूध और पनीर, खोया आदि की डिमांड पूरी करती हैं। 44 वर्षीय वंदना एनवायरमेंटल साइंस से मास्टर्स हैं। वहीं, 36 वर्षीय मोनिका वेटनरी डॉक्टर। ये दोनों चाहतीं, तो कोई अच्छी-सी जॉब कर सकती थीं, लेकिन इन्होंने खुद का कुछ करने का ठानी और आज जबलपुर की नामचीन डेयरी चलाती हैं।

आगे पढ़ें- फसलों को कीटों और रोगों से बचाने किसान ने देसी जुगाड़ से निकाली यह तरकीब

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झाबुआ, मध्य प्रदेश. मौसम की मार से अकसर फसलों को नुकसान पहुंचता है। कभी कीट-पतंगे, तो कभी अन्य रोग लगने से फसलें खराब हो जाती हैं। झाबुआ के रहने वाले युवा किसान मनीष सुंदरलाल पाटीदार खुद भी इसके भुक्तभोगी रहे हैं। फिर उन्होंने देसी जुगाड़ (desee jugaad)  से अपनी फसलों को सुरक्षा की चादर ओढ़ दी। किसान ने अपने खेतों को करीब 400 साड़ियों से ढंक दिया है। इससे फसलों का बचाव हो रहा है। सुंदरलाल का कहना है कि उनका यह प्रयोग सफल रहा है। अब फसलें 100 प्रतिशत सुरक्षित हैं। उनकी पैदावार (production) भी बढ़ गई है। सुंदरलाल अपने खेतों में हाईब्रिज मिर्च उगाते हैं। उनका यह प्रयोग दूसर किसानों को भी पसंद आ रहा है।

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