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दूसरों की नौकरी करने की जरूरत क्या है, सीखिए इन किसानों से अच्छी-खासी कमाई कैसी की जाती है

रांची, झारखंड. बेरोजगारी देश की एक बड़ी समस्या है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे दूर करने लोगों से आत्मिनर्भर होने की अपील की है। यानी अपना खुद का कुछ करने की पहल। खासकर, जिन लोगों के पास अपने साधन हैं, जैसे कि जमीन आदि...उन्हें नौकरी से ज्यादा अपने खुद के काम पर फोकस करा चाहिए। इन किसानों ने भी नौकरी करने के बजाय खुद कुछ करने की ठानी और आज कोई करोड़पति है, तो किसी को रोटी के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ रहा। पहली कहानी झारखंड के रांची जिले के देवडी गांव है। इसे लोग एलोवेरा विलेज के रूप में जानते हैं। यहां 2 साल पहले तक गांववाले रोटी-रोटी को मोहताज थे। फिर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की एक एक परियोजना के तहत लोगों को एलोवेरा की खेती करने को प्रोत्साहित किया गया। शुरुआत में किसानों को लगा कि पता नहीं इससे कमाई होगी कि नहीं, लेकिन आज वे खुशहाल जिंदगी गुजार रहे हैं। बता दें कि एलोवेरा का एक पौधा 15-30 रुपए तक में बिकता है। इस गांव में अब आयुर्वेद और कास्मेटिक बनाने वालीं कई बड़ी कंपनियां आने लगी हैं। आगे पढ़ें सैनिटाइजर ने बढ़ाया उपयोग...

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Asianet News Hindi
Published : Aug 21 2020, 11:10 AM IST
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कोरोना काल में सैनिटाइजर की काफी डिमांड बढ़ी है। ऐलोवेरा सैनिटाइजर बनाने में काम आता है। इसे घृत कुमारी या ग्वारपाठा भी कहते हैं। यह एक औषधीय पौधा है। यह मधुमेह, रक्त शुद्ध करने मे कारगर है। वहीं कॉस्मेटिक बनाने में इस्तेमाल होता है। कहने का आशय इसकी डिमांड अधिक होने से किसानों को फायदा भी हो रहा है। आगे पढ़ें..ये वकील साब डेढ़ लाख रुपए महीने कमाते थे, जब किसान बने, तो लोगों ने मजाक उड़ाया, आज देखने आते हैं इनके खेत

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मुक्तसर, पंजाब. यह हैं फिरोजपुर जिले के गांव सोहनगढ़ रत्तेवाला के रहने वाले एडवोकेट कमलजीत सिंह हेयर। वे पहले वकालात करते थे। हर महीने इनकी इनकम करीब डेढ़ लाख रुपए महीने होती थी। लेकिन एक दिन ये सबकुछ छोड़कर अपने गांव आ गए और खेतीबाड़ी करने लगे। तब लोगों ने इनके फैसले का खूब मजाक उड़ाया। जैसे-जैसे समय बीता, खेती-किसानी के इन तौर-तरीके फेमस होते गए। आज ये अपनी पहली कमाई से कई गुना ज्यादा कमाते हैं। ये जैविक खेती करते हैं। आगे पढ़ें...MBA पास इस युवक ने किसानी के लिए छोड़ी अच्छी-खासी जॉब और अब कमा रहा लाखों रुपए
 

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यह हैं छत्तीसगढ़ के जशपुरनगर जिले के दुलदुला ब्लॉक के एक छोटे से गांव सिरिमकेला के रहने वाले अरविंद साय। MBA करने के बाद ये पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहे थे। सैलरी अच्छी-खासी थी, लेकिन इन्हें आत्मनिर्भर बनना था। ये नौकरी छोड़कर गांव आए और खेती किसानी करने लगे। आज इनके साथ 20 लोगों की टीम है। सबका खर्चा निकालने के बाद अब ये डेढ़ करोड़ रुपए सालाना का टर्न ओवर हासिल कर चुके हैं। अरविंद बताते हैं कि उनके पिता पारंपरिक तरीके से खेती-किसानी करते थे। लेकिन उन्होंने इसके तौर-तरीके बदल दिए। आगे पढ़िए ऐसे ही सक्सेस किसानों की अन्य कहानियां...

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पत्थर से निकाला सोना
हरियाणा के फतेहाबाद के किसान राहुल दहिया एक मिसाल है। जिस जमीन पर घास का तिनका तक नहीं उगता था, उस पर आज ये सेब, बादाम सहित 40 तरह के फल उगाकर खूब मुनाफ कमा रहे हैं। यही नहीं, इनके 14 एकड़ में फैले इस बाग ने 20 लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है। दहमान गांव के रहने वाले राहुल ग्रेजुएट हैं। ये 16 साल पहले टेंट का कारोबार करते थे। लेकिन धंधा फ्लॉप हो गया। इनके पास 14 एकड़ जमीन है। लेकिन तब यह रेतीली और बेकार थी। इन्होंने इस पर बागवानी करने की ठानी। आज यह रेतीली जमीन सालाना करोड़ों रुपए का टर्न ओवर दे रही है। आगे पढ़िए..लॉकडाउन में नौकरी गंवाकर लोग घर पर बैठ गए, इस कपल ने खड़ा कर दिया करोड़ों का बिजनेस
 

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यह हैं राजस्थान के नागौर के रहने वाले राजेंद्र लोरा और उनकी पत्नी चंद्रकांता। ये किसानों के लिए एक स्टार्टअप फ्रेशोकार्ट चलाते हैं। इसके तहत यह कपल किसानों को एग्री इनपुट जैसे-कीटनाशक, पेस्टीसाइड और अन्य प्रकार की दवाओं की होम डिलीवरी करता है। इस समय इस स्टार्टअप से 30 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं। इस स्टार्टअप ने इस साल करीब 3 करोड़ रुपए का कारोबार किया है। राजेंद्र बताते हैं कि वे अकसर किसानों से मिलते थे, तो मालूम चलता था कि उन्हें फसलों-सब्जियों पर छिड़काव के लिए समय पर दवाएं नहीं मिल पाती थीं। इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने यह ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध कराया। आगे पढ़िए इन्हीं की कहानी..

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राजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने 4 साल पहले इस स्टार्टअप की शुरुआत की थी। उनकी पत्नी चंद्रकांत भी बराबर की इसमें में सहयोगी हैं। लॉकडाउन में उनका स्टार्टअप किसानों के लिए काफी मददगार रहा। राजेंद्र बताते हैं कि उनके पास करीब 45 लोगों की टीम है। राजेंद्र के इस स्टार्टअप से अभी 30 हजार से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। इस साल उनके स्टार्टअप ने 3 करोड़ रुपए का बिजनेस किया है। उनकी कंपनी किसानों को 10 हजार रुपए तक फाइनेंस भी देती है। वहीं कंपनी किसानों को मार्केट रेट से 5-10 फीसदी कम पर कीटनाशक मुहैया कराती है। राजेंद्र लोरा ने जबलपुर ट्रिपल आईटी से इंजीनियर किया हुआ है। उनकी पत्नी एमबीए-पीएचडी हैं।

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