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World Civil Defense Day: अबॉर्शन करवाने से लेकर लिव-इन में रहने तक, हर महिला को पता होना चाहिए ये 10 कानून
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जीरो एफआईआर
जीरो एफआईआर या प्राथमिक सूचना किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में इसे पुलिस स्टेशन के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर "शून्य प्राथमिकी" के रूप में दर्ज किया जा गया है। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि किसी स्थान पर किसी व्यक्ति के साथ अपराध हो गया हो और उसके बाद व्यक्ति शिकायत दर्ज कराना चाहता हो, ऐसे में यह जीरो एफआईआर किसी भी नजदीकी पुलिस थाने में दर्ज करवा सकता है।
महिलाओं को वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए कानून
जिस जगह महिलाएं काम करती है, वहां अगर वह यौन उत्पीड़न का शिकार होती है, तो उनके लिए (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के तहत कार्यस्थल पर विभिन्न सुरक्षा और अधिकार दिए जाते है। यदि कोई महिला 10 से अधिक कर्मचारियों वाले संगठन में काम कर रही है, तो कार्यालय में एक आंतरिक शिकायत समिति होती है जिससे वह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न या उसके साथ हुई ऐसी किसी भी घटना के खिलाफ संपर्क कर सकती है।
महिलाओं को गर्भपात का अधिकार
अबॉर्शन का अधिकार भारत में हर महिला के लिए उपलब्ध है। गर्भपात से संबंधित इस अधिकार का प्रयोग महिलाएं यदि चाहें तो कर सकती हैं। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 2020 में प्रावधान है कि यदि महिला 12 सप्ताह तक गर्भवती है तो 1 डॉक्टर के परामर्श से और 12 सप्ताह से अधिक और 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था के मामले में गर्भपात के लिए दो डॉक्टरों की राय के साथ अबॉर्शन करवा सकती है।
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बच्चे पैदा करने से लेकर गोद लेने तक मेटरनिटी लीव
भारत में हर महिला को लगभग 26 सप्ताह के लिए मातृत्व अवकाश या मेटरनिटी लीव लेने का अधिकार है। यह अधिकार मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के तहत उपलब्ध है। यदि आप एक बच्चे को गोद ले रहे हैं तो भी इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। बच्चे को गोद लेने के मामले में, आप अपने काम से 12 हफ्ते की मेटरनिटी लीव से सकते हैं।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
आज भी हमारे देश में कई जगह लड़कियों को बहुत कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। जिसके कारण 2006 में बाल विवाह एक्ट बनाया गया। इसके तहत अगर दूल्हा 21 वर्ष से कम उम्र का है और दुल्हन की आयु 18 वर्ष से कम है तो यह शादी बाल विवाह अधिनियम के तहत आएगी।
घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार को ना कहने का अधिकार, 2005
घरेलू हिंसा से संबंधित यह कानून न केवल उस स्थिति में लागू होता है जब आप विवाहित हैं, बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए भी उपलब्ध हैं। घरेलू हिंसा में शारीरिक शोषण, आर्थिक हिंसा और यौन हिंसा, मौखिक दुर्व्यवहार और मानसिक शोषण शामिल हैं।
महिलाओं को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता
किसी पुरुष पुलिस अधिकारी को आपके शरीर को छूने या आपको हिरासत में लेने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं है। सीआरपीसी की धारा 46 (4) में प्रावधान है कि किसी महिला को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, लेकिन कठोर अपराधियों के मामले में, एक महिला पुलिस अधिकारी न्यायिक मजिस्ट्रेट से महिला की गिरफ्तारी का आदेश ले उसे गिरफ्तार कर सकती है।
महिलाओं को स्टॉक, साइबर बुलिंग करने का कानून
महिला को स्टॉक करना (धारा 354डी आईपीसी), साइबर धमकी या जब कोई महिला अपराध की शिकार होती है, जहां व्यक्ति उसको कोई परेशान करने की कोशिश करता है (धारा 354 आईपीसी) के मामले में अपराधी को दंडित करने का अधिकार है। महिला के पास कानूनी कार्रवाई करने और कानून की अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार होता है।
महिलाओं की पहचान की सुरक्षा
यदि आप यौन उत्पीड़न, बलात्कार आदि की शिकार है, तो भारतीय कानून महिला के नाम को उजागर होने से बचाता है। आईपीसी की धारा 228 A के तहत महिला की सहमति के बिना उसकी पहचान का खुलासा करने का अधिकार नहीं है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम
आमतौर पर देखा जाता है कि लड़के ही माता-पिता या अपनी पैतृक संपत्ति के हकदार होते है, जबकि, 2005 में आए इस अधिनियम में देश की महिलाओं को यह हक दिया है कि अगर कोई वसीयत नहीं बनाई गई है तो अपनी पैतृक संपत्ति पर वो समान अधिकार रखती हैं।
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