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महामारी में 2 योद्धाओं को सलाम: रोजा रखकर ये मुस्लिम हिंदुओं का कर रहे अंतिम संस्कार, अपनों ने छोड़ा साथ
भोपाल (मध्य प्रदेश), कोरोना की इस दूसरी लहर ने देश में हाहाकार मचाकर रखा है। जिंदा में अस्पतालों में खाली बेड नहीं मिल रहे तो मरने के बाद श्मशानों में कतार लगी हुई है। लेकिन इन सबके बाद भी लोग कोरोना संक्रमण से लड़ाई में हर कोई अपने स्तर से शासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है। कुछ ऐसी भी तस्वीरें सामने आई हैं जहां लोग अपना धर्म और जात-पात भूलकर मदद करने के लिए आगे आए हैं। जो कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी हुई हैं। वहीं मध्य प्रदेश में मुश्लिम युवक पिछले एक साल से अपने दोस्त के साथ मिलकर महामारी में मारे गए अनजान हिंदू भाई-बहनों के शवों का अंतिम संस्कार करने में जुटे हुए हैं। खासकर ऐसे लोगों के लिए वह मदद करते हैं जिनके अपनों ने मुंह मोड़ लिया है।
| Published : Apr 28 2021, 07:46 PM IST / Updated: Apr 28 2021, 07:48 PM IST
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दरअसल, आपदा की इस भयावह हालात में राजधानी भोपाल के फायर कर्मचारी सद्दाम कुरैशी और दानिश सिद्दीक़ी हिंदू शवों का पूरी रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर रहे हैं। वह सही मायने में इंसानियत का पैगाम लोगों को दे रहे हैं। जहां एक तरफ लोग घरों में कैद हैं, वहा यह दोनों रमजान के पवित्र माह में रोजा रखकर यह नेक काम कर रहे हैं।
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सद्दाम और दानिश ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि कई ऐसे लोग हैं जो हमको कॉल करके अपने मृत लोगों का अंतिम संस्कार करवाते हैं। वह कहते हैं कि इस महामारी की वजह से हम शव को हाथ नहीं लगा सकते हैं, इसलिए आप हमारी बताई विधि से चिता को आग दे दीजिए। साथ हमसे वीडियो कॉल के जरिए अंतिम दर्शन भी करते हैं।
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बता दें कि यह दोनों शव को अस्पताल से लेकर भदभदा श्मशान घाट तक लाते हैं। दोनों पीपीई किट पहनकर और पूरी तरह से पेक होकर रोजाना सैंकड़ों शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। उनका कहना है कि कभी-कभी तो ऐसा वक्त भी आया कि चिता जलाने के लिए श्मशान घाट में जगह कम पड़ गई थी।
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वहीं यह बालाघाट के सोहेल खान हैं, जो अपने दोस्तों के साथ मिलकर पिछले एक साल से हिंदू भाई-बहनों के शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। उनके इस नेक काम की हर कोई तारीफ करता है। जब उनसे पूछा कि कोरोना शवो का अंतिम संस्कार करने में डर नहीं लगता तो सोहेल ने बहुत ही शानदार जवाब दिया। कहा कि जिसे ऊपर वाले का डर है वह किसी ने नहीं डरता है। नेक काम में कोई डर नहीं, बल्कि खुशी होती है कि हमको ऐसा करने का मौका मिला है।
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सोहेल ने बताया कि कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि परिवार के लोग शवों को जानवरों की तरह श्मशान में फेंककर चले जाते हैं। ऐसे लोगों पर तरस आता है। ऐसे लोगों को समझाना बहुत मुशिकल होता है। हम तो निस्वार्थ भाव से अपने पैसे खर्च कर हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर देते हैं।
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