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इंदौर का राहतउल्ला कुरैशी ऐसे बना राहत इंदौरी, 19 साल की उम्र में पढ़ा पहला शेर, एक मौके से बदली लाइफ
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राहत साहब के बारे में उनके चाहने वाले बताते हैं कि राहत साहब का शायरी पढ़ने से पहला शोक चित्रकारी था। जिसके लिए वह पागल थे, वह स्कूल से छुट्टी होने के बाद पेंटिंग करने लगते थे, उन्होंने 10 साल की उम्र से साइन-चित्रकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। वह रुपयों के लिए ट्रकों के पीछे तक पेंटिंग बनाने लगे थे। लेकिन जब उनके पिता की नौकरी चली गई तो उन्होंने पढ़ाई के साथ ही मजदूरी करने लगे और चित्रकारी का शौक उनसे छूट गया। फिर वो शायरी लिखने लगे और दोस्तों को छुट्टी के बाद सुनाते थे। बताया जाता है कि राहत इंदौरी ने महज 19 साल की उम्र में 1969 से शायरी पढ़ना शुरू कर दिया था।
राहत इंदौरी अपने माता-पिता की वो चौथी संतान थे, उनकी स्कूलिंग इंदौर के नूतन स्कूल से हुई इसके बाद उन्होंने वहीं से हायर सेकेंडरी की पढ़ाई की। इसके बाद 1973 में इंदौर के ही इस्लामिया करीमिया कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर मास्टर की पढ़ाई करने भोपाल आ गए थे। एक इंटरव्यू के दौरान राहत साहब ने कहा था कि मैंने स्कूल के दिनों में शेर पढ़ना शूरू कर दिया था। लेकिन शायरी का सही शौक 70 के दशक कॉलेज के दिनों में लगा था। एक बार हमारे कॉलेज में गीतकार जावेद अख्तर के पिता प्रसिद्ध शायर जान निसार अख्तर आए हुए थे। अचानक में उनके सामने पहुंच गया और उनसे कहा-मुझे भी शायरी पढ़नी है। इसके बाद वह बोले अगर तुमको शायरी करनी है तो कम से कम एक-दो हजार शायरी मुंब जुबानी याद होना चाहिए। मैंने उनसे कहा सर मुझको इतनी शायरी याद हैं। इसके बाद मैंने पढ़ना शुरू कर दिया और उन्होंने कहा-अब इसको ही अपना करियर बना लो।
राहत इंदौरी को करीब से जानने वाले इंदौर के इरफान बताते हैं कि राहत साहब ने अपना पहला मुशायरा देवास में पढ़ा था। इससे पहले वह छोटे-मोटे मंच पर ही शायरी किया करते थे। लेकिन जब वह देवास पहुंचे तो यहां की कमेटी के मेंबर उनके मामा ही थी, उन्होंने मां से कहा था कि आप मामा जी से कहिए की मुझे एक बार मंच पर पढ़ने का मौका दें।
बता दें कि राहत इंदौरी ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उन्होने महज 19 वर्ष की उम्र में उन्होने शेर-शायरी और गीत लिखना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे उनकी शायरी देश-विदेश में पसंद की जाने लगी।